मेरे दो अनमोल रतन

मेरे दो अनमोल रतन

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रीमा और राघव के जुड़वाँ बेटे थे, कमल और पवन। दोनों की ना सिर्फ शक्लें एक जैसी थी बल्कि हरकतें भी एक जैसी थी। दोनों सारा दिन घर में कोहराम मचाये रखते। कमल को भूख लगती तो पवन भी खाने की जिद्द करता और पवन को पॉटी आती तो कमल भी उसी समय पॉटी जाने की जिद्द करता। शरारतों के साथ साथ पढ़ने लिखने में भी दोनों का दिमाग घोड़ों की तरह दौड़ता। 


दोनों हँसते खेलते, लड़ते-झगड़ते कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला। दोनों भाइयों ने कॉलेज खत्म किया और MBA की डिग्री लेने दूसरे शहर चले गए। उन्हें गये कुछ महीने ही हुए थे कि राघव को व्यवसाय में जो कि पिछले कुछ समय से मंदी पर था बहुत बड़ा घाटा हुआ जिसे वो बर्दाश्त ना कर सके और बीमार पड़ गए। उनकी हालत में सुधार होता ना देख कमल और पवन ने वापस घर लौटने का फैसला लिया। घर लौट कर कमल लग गया अपने पापा की सेवा में और पवन ने व्यवसाय की डोर अपने हाथों में सम्भाली। पवन की कुशाग्र बुद्धि, नए विचारों और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से व्यवसाय के हालात सुधरने लगे वहीं दूसरी तरफ कमल और रीमा की सेवा से राघव की सेहत भी सम्भलने लगी। अब कमल ने भी पवन के साथ व्यवसाय में हाथ बटाना शुरू कर दिया। कभी कोई परेशानी होती या कुछ समझ ना आता तो वो दोनों घर पर राघव से सुझाव लेते जिससे राघव को भी अच्छा लगता। 


धीरे धीरे दोनों भाइयों की मेहनत रंग लाई और उनका व्यवसाय दूसरे शहरों में भी फैलने लगा। राघव ने भावुक होकर एक दिन दोनों बेटों को बुला कर गले लगाया और बोले "जब दो सकारात्मक सोच और मेहनत एक साथ मिल जाती है तो तरक्की दुगनी नहीं बल्कि सैकडों गुना बढ़ जाती है। ये दो सकारात्मक सोच कोई और नहीं मेरे दो अनमोल रतन है जो एक और एक मिलकर ग्यारह के बराबर है।"



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