मेरे आदर्श

मेरे आदर्श

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जीवन एक बहती नदी समान है। हमारी जिंदगी के मायने अलग अलग दौर में अलग होते है। इसलिये जीवन में प्रेरणा किसी एक आदमी से मिली है, ऐसा नहीं होता है। पर कभी किसी दौर में, एक पल ऐसा आता है, वो अपनी जिंदगी का मोड़ बदल देता है।

माँ का हाथ पकड़ के हम छोटे से बड़े होते है, सो माँ ही हमारी प्रेरणा स्थान होती है। बच्चे बहुत अनुकरणशील होते है! बड़े जैसे करते है, वो ही वैसे करना सीखते है। इसलिये अच्छे संस्कारों की बहुत जरूरत होती है। हमारे घरवाले, पिता, दादाजी, ताउजी, बड़े भाई बहन से हम प्रेरणा लेकर कुछ न कुछ सीखते रहते है!

सो बचपन में मेरे आदर्श मेरे पिताजी ही थे, जिन्होंने मुझे तैरना सिखाया था। मुझे पढ़ाई का शौक उन से ही मिला था। तब वो ही मेरे प्रेरणा स्थान थे।

जैसा मैं बड़ा होता गया, मेरे बड़े भाई, क्रिकेट के बहुत बड़े खिलाड़ी थे! मैं बिल्कुल उन का अनुकरण करता था। वो जलदगती गोलंदाज थे, सो मैं भी डालने लगा था। स्कूल में हमारे दोस्त अपना प्रभाव डालते है। जैसी आदमी की संगत रहती है, वैसा ही वो गढ़ता है।

आठवीं से आगे मुझे मेरे गणित के शिक्षक से विज्ञान और गणित की रूची हुई, और मेरी काँलेज की फँकल्टी उसी दौर में फिक्स हो गई थी।

वैसे मुझ मे कला शाखा के उपजत गुण थे,पर मेरा उस में कोई प्रेरणा स्थान नहीं था, इसलिये मैं अपने गुण पहचान न सका था।


उस वक्त हमारी पढ़ाई मातृभाषा मराठी में होती थी। इसलिये जब हम काँलेज में अँग्रेजी मिडीयमवाले विज्ञान में पढ़ने गये तो, भाषा की वजह से पीछड गये। उस जमाने में हर पिता अपने बच्चों को डाँक्टर, इंजिनियर बनाने चाहते थे। सो अँग्रेजी के वजह से हम होने से रह गये थे।

बाद में मैंने मेरा अँग्रेजी सुधारने का मन में संकल्प किया था। मेरे बड़े भाईसाहब जेम्स हँडली चेस की इंग्लिश नाँवेल्स हमेशा पढ़ते थे। सो जब वो नहीं होते थे ,मैंने भी पढ़ना शुरू किया था। पहले-पहले थोड़ा कठीन था, बाद मे मैं आसानी से पढ़ने लगा था।


जैसे ही उमर बढती है,जवानी में सेक्स का आकर्षण बढ़ जाता है। जब दोस्तों में हम गप्पे हाँकते थे,तब लड़कियों के बारे में सोचते थे। हमारे जो सिनीयर लड़के होते थे, वो ही हमारे गुरू प्रेरणा स्थान होते थे। असल में उन की बहुत सी बातें झूठी होती थी, पर हम जवानी के जोश में तनकर चलते थे।

किताबें हम पर अच्छा खासा प्रभाव डालते है। हमे कौन से किताबों में रूची होती है, उस से हमारे आगे का जीवन गढ़ता है। जैसे मिट्टी में से कुम्हार घड़ा बनाता है, ठीक वैसे ही।

जब हम असली जिंदगी में काम करने लगते है, तब इस दुनिया के धूप छाँव का पता होता है। मुसीबतें आती रहती है, पर उस में से जो रास्ता निकाल पाता है, वो ही सिकन्दर बन पाता है।

मैंने एक रशियन वैमानिक की बुक पढ़ी थी। जंग में उन्होने अपने दोनो पैर खो दिये थे ,पर हिम्मत से अपनी दुर्बलता का सामना अपनी जवाँ मर्दी से कर के उस पर विजय पायी थी। उन्होने आर्टीफिशीयल हाथ पाँव से फायटर विमान चला के वापस दूसरे वर्ल्ड वार में भी हिस्सा लिया था। वो बात मुझे हमेशा बहुत प्रेरित करती थी।

शहेनशाह औरंगजेब के बारे में, हम कभी अच्छा नही बोलते है,पर उन की बुध्दीमता के हम कायल हो जाते है! एक बार उन के एक बेटे अकबर ने बगावत कर के राजपूतों से साँठगाँठ बाँध के औरंगजेब के सैन्य को चारों तरफ से घेर लिया था, तब उन के पास अस्सी हजार सेना थी और औरंगजेब के पास सिर्फ पच्चीस हजार थी। उन की पराजय निश्चित थी। पर इस प्रसंग में उन्होने धैर्य नही खोया ,और एक कागज़ लेकर कलम से अपने बेटे को खत लिखा, उस में लिखा, बेटे अकबर हम दोनो के प्लान के अनुसार तुमने राजपूत सेना को अँधेरे में रखा है। अब हम दोनो मिलकर उन को हराकर फतह पायेंगे।

और उन्होने उस पत्र की बहुत सारी प्रती बनाकर ,राजपूत सेना के तम्बु के पास चारों तरफ डाल दी थी। जब राजपूत सेनानी ने वो पत्र पढ़ा तो, रात में ही अपनी सेना लेकर मैदान छोड़ दिया था। औरंगजेब की मुस्तैदी चाल से अकबर का पराजय हो गया था। और उसे दख्खन में भागना पड़ा था।

मेरी पिताजी की खुद की लायब्ररी थी, वो बन्द पड़ी थी,और मराठा रियासत के बहुत सारे बुक मैंने अपने काँलेज के दिनो में पढ़े थे। सो मेरा हिस्टरी सबजेक्ट आज भी अच्छा है। छत्रपती शिवाजी का संघर्ष, हिंदवी स्वराज्य की स्थापना, सर्वधर्मभाव, चरित्र हमेशा मुझे आकर्षित करता आया है। मैंने शिवशाहीर बाबासाहेब पुरन्दरे की लिखी हुई किताब का बार बार पठन किया है! राना प्रताप,सिखो के गुरू गोविंदसिंग, तेगबहाद्दुरजी और छत्रपती संभाजी का धर्म के लिये बलिदान मुझे प्रेरित करता आया है। ताराराणी और संताजी और धनाजी का पराक्रम, हमारे दिलो दिमाग पर ताज़ा है।

पहले बाजीराव पेशवा, वीर सावरकर ,झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे,लोकमान्य तिलक,नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, राजगुरू, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे स्वतंत्रता सेनानी हमारे आदर्श रहे है। इतिहास में अहिल्याबाई होलकर के समाजप्रती समर्पण हमें प्रेरित करता है!


मैंने दूसरे महायुध्द के व्हिलन अँडाल्फ हिटलर की आत्मकथा माय काम्फ पढ़ी है, उस से उस की देशभक्ती पर कोई शक नही कर सकता है!

भले ही उन्होने वंशवाद से प्रेरित हो कर नरसंहार जैसी घटनाओं को अन्जाम दिया हो। इस चरित्र से हम सिख मिलती है,भले ही व्यक्तिगत अच्छे हो,कर्म आप को ले डूबते है और जैसी करनी वैसी भरनी भी होती है।


बचपन से लेकर जवानी तक कितने की शिक्षक मेरे प्रेरणा स्थान थे। महात्मा गांधीजीं की अहिंसा,तत्वनिष्ठा, सत्य की राह पर चलने की कवायत,महात्मा फुले और उन की पत्नी सावित्रीबाई फुले के सामाजिक काम, राजर्षी शाहु महाराज के मन की विशालता, संतोषला में कबीर, तुलसीदासजी, नरसी मेहता, मीराबाई और महाराष्ट्र में ज्ञानदेव, तुकाराम,और सैकडो संतो की दी हुई शिक्षा ने हमे सहिष्णु बनाया है।

लाल बहादुर शास्री, इंदीरा गांधी, चाचा नेहरू, डाँ होमी भाभा, डाँ कोटनीस, मदर टेरेसा, अटलबिहारी वाजपेयी, वल्लभभाई पटेल, बाबासाहेब आंबेडकर, एक आम किसान से सहकार महर्षी बननेनाले विठ्ठलराव विखे पाटिल, यशवंतराव चव्हाण जैसे राजकारणी,साने गुरूजी,आचार्य अत्रे,पु.ल.देशपांडे, लता मंगेशकर मोहम्द रफी, मुकेश किशोर कुमार,दिलीप,राज और देवानंद,राजेश खन्ना,अभिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार,भीमसेन जोशी, छोटे गंधर्व,बालगंधर्व जैसे नामचीन गायक, कितनों के नाम लूँ ,ये कभी न कभी हमारे प्रेरणा स्थान बने है ! उन की सीख से ही हमारा जीवन परिपुर्ण और परिपक्व होता है!


ये हमारे पर उम्र के पड़ाव पर हम पर अपना प्रभाव डालते,ताकी जिंदगी में हम अपने आप को वैसे लायक बनाये। इन के गुणों में से कुछ भी गुण हम पा सके तो हमारी जिंदगी सँवर जायेगी।



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