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Anil Chandak

Drama

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Anil Chandak

Drama

जानेवाला पल

जानेवाला पल

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जब भी मैं अपने पिछली जिन्दगी याद करता हूँ, मुझे मेरे माता पिता की याद से आँखों में आँसू झलकते हैं !

मेरी माँ ,जब अपनी जिन्दगी के आखरी दौर में थी,वो सब कुछ बेडपर ही होता था !

उस के बाल काटना,नाखुन काटना,खाना खिलाना ये सब मैं करता था !

उस को पँरालाईज होने की वजह से बोलना भी नही आता था ! मैं उस से कुछ कहाँ तो सर हिलाकर अपने को जो कुछ कहना है, हमें हाँ या ना में कहती थी ! उस के पाँव में संवेदना नही रही थी ! 

एक बार मैं उस के पाँव के नाखून निकाल रहा था, थोड़ी गड़बड़ी में था मैं उस दिन, मुझे कही फँक्शन में जाना था ! नाखुन निकालते हुए मेरी कैंची उस के पाँव में घुंस गयी ! वो कुर्सी पर थी,पाँव से नाखुन बहने लगा था,उस की आवाज न होने से मुझे पता नही चला ,जब मैने कुर्सी उस के बेड के पास ले जाने लगा,तब मुझे जमीन पर खुन दिखा,तब मेरा ध्यान गया ! मुझे तुरंत मेरी गलती का पता चला, मेरी आँखो में आँसु आ गये, मैं कितनी बार अपने आप को कोसता रहा ! पर माँ ने मुझे कुछ भी नहीं कहा था ! लेकिन माँ आखिर माँ ही होती है !

मेरे पिताजी पुना के फर्ग्युसन काँलेज में पढ़े हुए थे 

!उन के आखरी दिनो में मैं उन के साथ पुना में काँर्डियोलाँजिस्ट के पास लेकर गया था ! डाँक्टरने इसीजी वगैरे लिया ! बाद में रिपोर्ट मेरे को सौपकर कहाँ था," आप के पिताजी की तब्येत अब काच का भाँडा है,कब कुछ भी हो सकता है ! मैंने दो सालतक इन को जितना कर सकु उतना इलाज किया,जितने दिन रहे है,आनंद से गुजारो उन की !

पिताजी मुझे पुछ रहे थे,क्या बोले डाँक्टर? 

मैंने हँसकर कहाँ" आप जल्दी ही तंदरूस्त हो जायेंगे! गोलीया,दवा ठिक से लेते रहो ! आनंदी रहो" !

मुझे पता था पिताजी काँलेज के जमाने में पुना में पढे हुए थे ! 

पहले ही उन के जबान से पुना के रस्ते पे बायसिकल पे घुमना,पर्वती पर जाना,अलका थिएटर में इंग्लिश सिनेमा देखने की बाते सुनी थी ! मैंने पुना का हाँल्ट दो दिन बढाया और उन को राहल थिएटर में जँकी चेन की लेटेस्ट मुव्ही दिखायी ! पर्वती वो तो चढने से रहज,पर सारस बाग के गणेशजी के दर्शन जरूर करवाये ! दगडु हलवाई गणेश मंदीर,के दर्शन करवाये ! आज भी उन के चेहरे पर ,उन का झलकता आनंद,खुशीयाँ की तरंगे मुझे याद है !

उस के बाद वो दो तीन महिने में ही चल बसे !

पिताजी मेरे आदर्श थे,हिरो थे ! उन का समर्पित सामाजिक जीवन,दुसरों को मदत करने की सेवाभाव वृत्ती,आज भी मुझे प्रेरीत करती है !

वो एक अच्छे तैराक और व्हाँलीबाँल प्लेअर भी थे ! कितने को भी उन्होने तैरना सिखाया ! नदी में डुबने से बचाया ! साल के 365 दिन रोज गर्मी हो,बरसात हो,ठंडी हो,रोज नदी की तैराकी होती थी !

उन को फोटोग्राफी का भी शौक था,शादीब्याह के लिये मंगलाष्टक बनानेवाले एक कवि भी थे !

पर बचपन में हमे लाड प्यार की जगह लाड और पढाई के वक्त पढाई ही करनी पडती थी !

वो अच्छे आँलराऊंडर क्रिकेटर भी थे !  

उन को पढने का बहुत शौक था, वो बिझनेस के साथ साथ लायबरी भी चलाते थे !मेरे लिये तो उन्होने बचपन में मेरे लिये चंदामामा,इंद्रजाल काँमिक्स बुक भी लगाये थे !

पर ऐसे मेरे पिताजी उनकी 52 वे साल में ही इस दुनिया से चल दिये !

एक बार मैं बहुत बिमार पड गया था ! मैं लगबग आठवी कक्षा में पढ रहा था ! मुझे टायफॉईड हो गया था ! ऐसे मेरे चाचा की शादी

जलगांव में थी ! मैंने भी जाने का हट किया ! फिर मैं दादाजी के साथ में गया था ! जलगांव में पहूँचने के बाद,हमारे दादाजी के वहाँ के रिश्तेदार भी साथ में थे ! 

मुझे नई पँट लेनी थी,पर पिताजी मानते नही थे ! मेरे को एक चाल सुझी,मैंने दादाजी को डरते डरते दम दे दिया,अगर मुझे पँट नही लायी तो मैं मँडप में पाँव नही रखुंगा ! वैसे घर पे होता तो दादाजी का मार जरूर खाने पडता,मैंने रिस्क तो ले लिया,पर मन पे डर जरूर था ! साथवाले रिश्तेदार बोले," अजी पोता बोल रहा तो,दिला दो ना उसे पँट " !

अब दादाजी के इज्जत का सवाल हो गया !

फिर तुरंत वहाँ कार ,एक कपडे की दुकान में गये, वहाँ, कल्याणी ड्रेसेस की एक रेडीमेड पँट खरेदी की थी !

बाद में पिताजी को जब मेरी बदमाशी मालूम हुई तो वो गुस्सा ह़ गये ! पर मेरी बिमारी की वजह से उन के मुँहपर ताला था ! उन की आँखो से ही,उन के गुस्से की मुझे मालुम पड गया था !

आज भी मुझे मेरे दादाजी की याद आती है ! वो बड़े ही रौबदार, यशस्वी व्यक्ती थे ! धार्मिक और नियम,शिस्तवाले व्यक्ती थे ! उन के जबान का लब्ज समाज में प्रमाण मानते थे !

मेरे जिन्दगी की भागदौड में मेरे बडे बाबाजी का योगदान बहुत अहम था! वो मेरे मार्गदर्शक, गुरू भी थे ! उन्होने ही मुझे व्यापार के गुर सिखाया ! मैं भी उन से पूँछू बगैर एक कदम भी नही डालता था ! 

 उन की तब्येत एक बार ठिक नही थी ! उन की चेकपर साईन लेने के बाद, मैं नये आँर्डर पर चर्चा कर रहा था,उन से मैने सलाह माँगी तो उन्होने मुझे डाटकर कहाँ" कितने दिन तू मुझ से,छोटी छोटी बाते पुछता रहेगा? तू कब बडा होगा ! " मेरे समझ में नही आ रहा था,आज बाबाजी ऐसे बर्ताव क्यु कर रहे है !

पर ये नियती का संकेत था ! उस दिन ही रात को हार्ट अँटक से उन का देहान्त हो गया था !

ऐसे कितने अनमोल पल बताऊ,जो मेरे नजदीक के लोग थे,आज बस यादे रह गयी है!

हमारा परिवार बहुत बडा था! एक घर में पचास आदमी एकसाथ रहते थे ! दादा दादी, चाचा चाची,बाबा,बुवाजी,सग्गे,चचेरे भाई बहन ,हम सब को एक सुत्र,एक कडी में में पिरोजने वाली हमारी बड़ी माँ थी ! वो हमारा इतना ध्यान रखती थी की, माता पिता से पहले हम उन को ही पूछते थे ! उन्होने हम सब पर अपार स्नेह, प्यार दिया था ! खासखर मेरे पिताजी अल्पायु में गुजर जाने के बाद, हम उन की कमी महसूस नहीं होने दिया ! यही हमारे परिवार की खासियत थी !

इसलिये तो शायर कह गये !

जाने वाले कभी नहीं आते है ! जाने वालों की याद आती है !


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