Harianiketh M

Abstract Inspirational

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Harianiketh M

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मेरा परिवार बहुत बड़ा हैं

मेरा परिवार बहुत बड़ा हैं

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मेरा परिवार इतना बड़ा हैं जिसमे उनको भरना देश में अब खाली नहींं। इसलिए कुछ लोगोंको विलायती भेज दी। वहां भी परिवार बढ़ती जा रही हैं। इतना भी सोच में मत डूबो लिपि भाई,

आज वैसे भी आपने पूछली की बचपन का याद भावगर्भित शब्द में लिखो। तब में बड़ी बेचैन भरी दिल से इंतजार करती थी कि, मेरी भारी कब आएगी। अय्यो रामा। फिर से गहरी सोच!?इंतज़ार इस चीज केलिए कि, पाठशाला का रिवाज हैं प्रतिजना सिर्फ ओ भी ले, कौन पांचवी कक्षा में हैं।

मुझे लगता था की वंदेमातरम मैं ही ठीक से गा सकती हूं। और राष्ट्रिय गीत 52 सेकण्ड्स में गाना भी सीख लिया। लेकिन क्या फायदा उम्र कम होगयी। भगवान से रोज मांगती थी कि हो सके तो हनुमान जैसे या तो कम से कम विष्णुजी की विस्वरूप का ताकत देकर, मुझे जल्दी पांचवी में भेज दे।

लेकिन ओ बोले कि, अरे सब तेरी परिवार है। तेरी दीदी, बहन, भाई गाते हैं तो क्यो पसंद नहीं लगती तुम्हें ? ऐसा सोचना भी गलत है सिर्फ मैं ही गावू ओर दूसरे की सुर कंकड समझना। गोर से सुनना सीखो तुम्हे उनकी प्रतिजना, ओर गांने में भी अपनापन मिलेगी।

तब से जैसे बोलते हैं भारत हमारा देश हैं। सब एक परिवार जैसे हैं। मुझे अछी लगी ये बात और वैसे पेशाने लगी तो, एक बार पांचवी के लड़का इंटरवेल में दीदी दीदी बुलाते आया और मेरी मा ने जो एक रूपये मीठाई खरीदने केलिए दी थीं, ओ पैसे मांगने लगा। मैं ने मना कर दिया। तो बोलने लगा रोज तेरी अक्का के साथ बोलते हो कि भारत के सब भाई, बहन हैं, तो तेरे भाई केलिए एक रूपये नहीं दे सकती हो। अटपटा तो लगी जरूर, पैसे भी नहीं दी, लेकिंन नानी से पूछा कि इसका मतलब क्या होता हैं?

हँसी मज़ाक में कहा होगा लेकिन पैसे से नहीं दिल से सबको अपना समझना चाहिए। तब से लेकर आजतक मुझे, आपनी इस जीवनयात्रा में जितने भी मिले सबको याद करती और पूजा के समय भगवान से ये भी मांगती की सब सुरक्षा रहे।

क्यो नहीं पूछती लिखा किसी ने भी हो, अच्छा प्रतिजन लिखा हैं बस याद करके, सबकी रक्षा मांगने से हमारा कुछ बिगड़ेगा क्या!?आखिर हम जिसने अमृत बांटा ओर खुद विष पिया उसका परिवार का हिस्सा हैं सब को परिवार समझेंगे जरूर।

ओर आखिर में इतनी सी प्रार्धना केलिए हमारा खर्च बस महीने में दो सौ की तेल, दस की बाती, दो रुपये की माचिस, थोड़ी सी पानी जिसको वो खुद मुफ्त मैं दिया हैं, प्रशाद हमारी प्यार के अनुसार। भगवान अगर इस बात से खुश हैं तो सूत समेत वापस देदेगा। यहां पूजा में बैठके कैलाश, वैकुंठ वासी को जब बुलाया जा सकता हैं, ओ हमारी पूजा पर खुश होंगे तो देशवासी को परिवार समझकर कुछ मांगेंगे तो उनको खुशी क्यो नहीं लगेगी!?

ओर उनके किसी की दुआ भी हमतक पहुंचेगी। जैसे हमारे घर के कोई दूर रहता हैं तो उसकेलिए कामना करें और कुछ अच्छा निकले। इसलिए में कहती हूं नहीं मेरे उपद्याय से कहा गया कि हमारा परिवार बहुत बड़ा हैं।

ओर हा जिस किसी ने मेरे चर्चा को विश करता हैं उन सभी को शुभकामनाएं उसी वक्त दे देती हूं। लिखके नहींं बल्कि मुह से। भगवान आप तक नहीं पहुँचय तो उनसे पूछ लेना, नहीं तो लिपि से, नहीं तो खुद से पूछ लेना। दिल से विष की या नहीं।

परिवार भरा नमस्ते


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