ऊपरवाले की आवाज़
ऊपरवाले की आवाज़
आवाज़ चाहे किसी का भी हो अगर ओ गुमराह करनेवाली तो बिल्कुल मनमें गस्ती नही थी।ध्यान देनेवाली बात तो दिमाग में घंटी बजती थी! रुख के सुन लो तो सही बोलकर।
ऐसी बहुत सारे हैं मेरे जिंदगी में।
जब मैं गाव के स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़तीथी एक लड़का मुझ पर छोटी छोटी पत्तर फेंकता था।सुबह ,शाम विराम के समय पर पाठशाला के आगे बरामदे में बैठके मेरा इंतज़ार करता था।मैं दो तीन बार देखनेके बाद सबसे पीछे घर जाती थी।बस दो घर के स्कूल हैं मेरे।मा, पापा, भैया,दीदी लोग सबसे कही की एक लड़का पत्तर से मारता हैं मुझे।सब हँसे ओर छोड़दिए।मुझे लगा उसको सबक सिखाना हैं।
एक बार ओ लड़का पाम पेड़ पर चढ़ा चंचल में तो ओ चढ़ गए लेकिन नीचे आना बहुत मुश्किल लगा।ओ सही भी था बहुत लमभी होती हैं ये पेड़,साईकल टायर के इस्तेमाल करके चढ़ते हैं।मुझे तबलगा इसको साँप साँप कहके थोड़ी सी ओर डराऊ नीचे गिर जाएगा।उस समय मेरा इतना सोच था कि पत्तर की चोट से छुटकारा मिलेगा।बाद में पापा ओर कामवाला सभी के बातोंसे पता लगा की अगर वह से थोड़ा सा भी हिलता तो गिरके मर जाएगा।गाव के सब इकट्टा होगये ऊपर झांख रहा था कि जैसे विमान को चलते देख रहे हैं।
मुझमे जो इच्छा होगयी साँप करके पुकारने की ठीक तभी एक आवाज सुनाई दी।पहले बडों को बुलाओ।में ओर साथीगण गाव के अंदर गए और सबको पुकारे।तो सब आये उनके साथ एक बड़ी मछली पकडनेवाली जाल भी ले आये।नीचे खरीब बीस लोग बड़ी रूस्त पकड़े ओर बोले कि गिर जाओ। ओ वहां से रो रहाथा हिम्मत नहीं थीं खुदने की।तो में जोर से बोली भैया!खुद जाओ मेरे सुर में सुर मिलाय सब बच्चे भैया खूदो।भैया खूदो।उसको शायद लगा होगा कोई खेल हैं तुरंत छलांग मारा तो सीधे जाल में गिर गए।उसकी माँ बहुत रोई।सब अच्छा हैं तो रो क्यो रही हैं पता नही चला।
एक हफ्ताह बाद से ओ स्कूल आने लगा।मुझे फिर से डर शुरू हो गई।रोज की तरह सब के पीछे आ रही थी।वो वही बैठा था बस कुछ फेंका नही।बाद में बोला कि उसकी माँ कही उनकी करतूत पहले से पता हैं।छोटे हैं तो कुछ बोल नही पाए।तू जिसको रुलाई आज तुम्हारे हसी का कारण बन गई।
तबसे ओ मुझे बहन करके बुलाता था।आखिर शादी के वक़्त वही पेड़ के पत्तोंसे बड़ी चँदवा बनाया था।उस दिन मन की बात ना मानके उसको डराती तो सोच ही डरावनी लगती हैं।
ये सब ऊपरवाले की आवाज़ की महत्व बिना कुछ नहीं। इएलिये तो कहते हैं दिल की बात सुनो।