मेरा गुनाह क्या था ?
मेरा गुनाह क्या था ?
आज शाम के नियम के हिसाब से मैं पार्क में जाकर बैठा ही था कि अचानक तीन महिलाओं को अपने सामने से दौड़कर जाते हुए देखा । उन महिलाओं ने जाकर एक युवक को पकड़ लिया और पीटना शुरू कर दिया।
" जरूर कुछ गलत हरकत की होगी। ऐसे लोगों के साथ यही होना चाहिए।" ऐसा सोचकर मैं अपने ख्यालों में खोने लगा।
तभी उस लड़के की आवाज ने मुझे चौंकाया।
"मुझे मेरी गलती तो बताओ। आखिर मेरा गुनाह क्या है ?" वह लड़का चीख - चीखकर कह रहा था।
दो औरतो के साथ -साथ अब 20-25 लोग और आ गए थे। सब अपने हाथ सेक रहे थे। कुछ लोग उस लड़के को घसीटते हुए मेरे पास वाली सीट पर ले आये ।
वो लड़का अभी भी बोल रहा था । "मेरा गुनाह क्या है ?"
तब तक मीडिया वाले आ गए। किसी ने शायद सूचना दे दी थी और फिर पुलिस आ गई।
लाइव प्रसारण शुरू हो चुके थे। वो लड़का अभी भी बोल रहा था : "मेरा गुनाह क्या है मुझे बताओ तो सही ?"
मेरे से अब रहा नहीं गया । अचानक मैने लड़के से कड़ाई से पूछताछ कर रहे दरोगा से पूछा : "भाई साहब इस लड़के ने किया क्या है ?"
जैसे पुलिस वालों की मदहोशी टूटी हो । उन्होंने महिलाओं और भीड़ की तरफ मुखातिब होकर पूछा : " क्या किया है इसने ?"
"मेरी बेटी को इसने एक घण्टे पहले छेड़ा है। हम इसको आज बताकर ही रहेंगे कि लड़कियों को छेड़ने वाले का हश्र क्या होता है ?" एक नीली साड़ी वाली महिला ने कहा।
"मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।" लड़के ने जोर देकर कहा।
" मेरी लड़की झूट नहीं बोलती। तुमने उसका पीछ कर तीन दिन से परेशान कर रखा है। " उस महिला ने कहा।
"अरे मैं ऐसा लड़का नहीं हूँ।" उस लड़के ने चीखते हुए कहा - : "मेरे पिताजी डॉक्टर हैं। मैं एक अच्छे खानदान से हूँ।"
"हराम की कमाई घर में आती है तो बच्चे ऐसे ही बिगड़ते हैं।" एक महिला ने भोएँ मटकाकर कहा।
"एक बार आप अपनी लड़की को बुला लीजिए हो सकता है यह लड़का सही कह रहा हो।" मैंने बीच में बात काटते हुए कहा।
"अंकल जी आप सही कह रहे हो। आप इनकी बेटी से ही पूछ लीजिये।" उस लड़के ने जोर लगाकर कहा।
"आप बुलाइये अपनी लड़की को। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।" दरोगा ने कहा।
एक महिला को भेज दिया । लड़की को लाने । उधर टेलीविजन पर अभी तक लड़के को दोषी सिद्ध किया जा चुका था । मीडिया अपने तरीके से इस बात को बढ़ा चढ़ाकर दिखा रहा था।
वो महिला उस लड़की को ले आई। उसने आते ही कहा : "ये आपने ये किसको पकड़ लिया। इसने मुझे नहीं छेड़ा। वो तो कोई और था । बस कपड़े ही मैच होते हैं इसके। ये वो नहीं।"
उफ ! यह तो बड़ी गलती हो गई मुझसे ।हमें माँफ कर दो बेटा।" कहते हुए उस नीली साड़ी महिला ने कहा।
"आपकी माँफी से अब क्या होगा ? हमारी इज्जत तो वापिस नहीं आ सकती है ना। " पीछे से आते हुए डॉक्टर मुखर्जी ने कहा।
न्यूज़ पर प्रोग्राम को देखकर वो सीधे उठकर यहाँ आ गए थे। डॉक्टर मुखर्जी हमारे फेमिली डॉक्टर थे तो बरसों पुरानी जान पहचान थी।
डॉक्टर साहब ने सारी घटना को समझा और अपने बेटे को ले गए। वो सारी घटना को जिसने भी सुना सो हतप्रद रह गया था।
दूसरे दिन अखबार पढ़ने लॉन में बैठा तो पहली खबर ने अंदर तक हिला दिया । डॉक्टर मुखर्जी के इकलौते बेटे डॉ अतुल मुखर्जी ने आत्महत्या कर ली थी और सदमे में हार्ट अटैक से डॉ मुखर्जी की पत्नी कोमा में चली गईं थीं।
क्या किसी के साथ यह बिना जाने बुझे व्यवहार करना उचित है ? क्या प्रत्येक गलती केवल एक सॉरी से खत्म हो सकती है ? क्या एक खराब लड़के की वजह से इन सब से अनजान और क्षमतावान युवा का सब कुछ बर्बाद करने का अधिकार है हमें ?
हमे बिना सोचे समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। हमें हर पहलू को ध्यान में रखना चाहिए।
आज भी उस लड़के शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं जैसे वो कहना चाहता हो -
अंकल जी मेरा गुनाह क्या था ? आखिर मेरा गुनाह क्या था ?
