मेरा देसी इश्क
मेरा देसी इश्क
मोटरसाइकिल चला तो रहे थे, लेकिन दिमाग में बस यही चल रहा था कि मिलेंगे तो कहेँगे क्या? और चाय कहाँ पियेंगे? अरे देखा जाएगा, पहले मिले तो वो! उसके घर के सामने पहुँचे और फोन किये तो बहार आयी, और साला देखते ही सारे फ्यूज़ एक बारही उड़ गए! हल्का सा हाथ हिला के काम चलाने वाला हाई किया उसने लेकिन हंसी से तो लग रहा था कि बस चले तो गले लगाकर एकदम होलीवुड स्टाइल में हलो करना चाहती थी।
गाड़ी स्टार्ट किये और 10-15 सेकंड के बहुप्रतीक्षित और लघु इंतज़ार के बाद, उसने फिर से अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर टिका दी। बाद में बताया उसने कि "मैं ज़रा धीमी आवाज़ में बोलता हूँ, तो ध्यान से सुनने के लिए वो ऐसा करती थी, लेकिन हम तो ससुर लौंडे ही थे, ऊपर से यूपी के, वो एक नज़र देख भी ले, तो रोमियो वाला फील आ जाता है, और इस स्थिति में उसके ठुड्डी टिकाने को हमने रोमांस समझ लिया, तो कौन सा पाप कर दिया बे?"
"अरे सालों सी दबी-कुचली तमाम भावनाएं, जिन्हें जेबों में लिए इश्क़ के बाज़ारों में अक्सर टेहला करते थे, आज किसी पे खर्च करने का मन कर रहा है, तो क्या गुनाह कर दिये बे हम? और फिर उसे भी तो इंटरेस्ट था हमारी बात सुनने में,तभी न! चाय की दुकान आ गयी और बैठ के मोबाइल वाचन चल रहा था। ये गाना सुना है, ये पिच्चर ये देखी है? यही सब!"
और इतने में जाने क्या सोचके उसने अपने बाल खोल दिए और चिमटी को मुँह में फंसा कर उन्हें सवारने लगी। हाँ ये बात सही है कि हम भी बड़ी देर से ताक में थे उसके बाल सवारन प्रक्रिया के, लेकिन अब साला बोल ही नहीं फूट रही मुँह से! बस ब-ब-अ-ब-अ-ब ही निकल रहा था मुँह से। समझ तो गयी ही थी वो, कि लौंडे के हाथ पैर अब काबू में नहीं हैं। या शायद न समझी हो, हमे का पता? हमारी तो बस फट रही थी, और उसी हड़बड़ाहट में उठकर चलने के लिए बोल दिए। "का करें बे, एकदम चोक ले ली थी।"
"खुद सोचो, इतनी बड़ी-बड़ी आँखें, उसपे बड़ा सा चश्मा, अरे वही दीपिका पादुकोण वाला, जो ये जवानी है दीवानी में लगाई थी, वही! उसपे ये महीन-महीन भंवे, एकदम साँप के बच्चे जैसी। और एकदम छोटे-छोटे हाथों को ज़ुल्फ़ों में फँसा-फँसा कर निकालेगी, तो किसकी चोक नही लेगी? बस ये समझ लो, दिल मुँह में आ गया था और हालत एकदम वैसी हो गयी थी जैसी बरफ का टुकड़ा मुँह में भर लेने के बाद हो जाती है, न बाहर निकालने का मन करता है और न निगलने की हिम्मत। बस सहा-सहा के, संभल-संभल के आनंद लो!"
गाड़ी पे पीछे बैठी थी और घर छोड़ने जा रहे हैं। दाएं साइड वाला शीशा उसकी तरफ है और नज़र बचा-बचा कर ताड़ रहे हैं, उसे। अभी थोड़ा नया-नया मामला है न। घर पहुँचे और वो अंदर जाने लगी। एक बार को सोचे की जो दिल में है सब बोल डालें और गाड़ी स्टार्ट करके भाग लें, लेकिन फिर सोचे कि थोड़ा ज़्यादा हो जायेगा, इसलिए प्लान कैंसिल कर दिए। एकदम स्टाइल में गाड़ी घुमाए, देखे उसकी तरफ तो हमे ही देख रही थी, एकदम से मुस्कुराये। अबे हम नहीं, हम दोनों! टाटा किये, और हुर्र करके भगा लिए गाड़ी!
रस्ते भर साला जिस तरह एक्सीलेटर हौंक रहे थे, पूरा इलाका जान गया होगा कि या तो लौंडा पहली बार गाड़ी चलाने को पाया है, या बस अभी-अभी जवान हुआ है! लेकिन जो भी हो, दिल एकदम लल्लनटॉप फील कर रहा था! आगे कुछ होगा तो बताएँगे यहीं!