Rishabh kumar

Others

4.8  

Rishabh kumar

Others

कहानी बिहार के लड़कों की

कहानी बिहार के लड़कों की

3 mins
1.0K


लौंडों में एक वर्ग होता है... जो होता तो है बचपन से बहुत प्रतिभाशाली है मगर फट्टू बिरादरी लौंडो (जो कि बहुतायात में पाए जाते हैं) के बीच गुण्डा और बिगड़े हुए नाम से प्रसिद्धि सिद्ध करता है... ये वो हैं जो मास्टर के ना आने पर 15 बच्चों को नेतृत्व देते है... उन्हें देते है टिरेनिंग गन्ने की ट्राली से गन्ना खींचने की... गली से गुजरने पर डॉक्टर गुप्ता के घर की घंटी बजा कर भागने की... देते है हिम्मत किसी पिंक कलर वाली लेडी बर्ड की हैंडिल कंडिया में प्रेमपत्र डालने की... और गिरती बरसात में GGIC के रास्ते मे खड़े होकर भीगी हुई अनुराधा को फुल प्रोटेक्शन के साथ घर पहुँचाने की ...


और यही वो पीढ़ी है जो कुछ सालों बाद पिंकी, स्वाति, शिप्रा, पंडिताईन, अनुराधा से मिले धोके पर... शराब में डूबी चुपचाप पहुँच जाती है इलाहाबाद सिविल लाइन्स या दिल्ली मुखर्जी नगर में..... और फिर एक दिन मिलता है एक सीनियर टाईप सूखी दाढ़ी वाला लौंडा ... जो करता है चन्दा एक रॉयल स्टैग के हॉफ का और दिखाता है पिक्चर... जिसके आगे 300 स्पार्टन्स और गीता का ज्ञान निरर्थक है... ये पिक्चर नही जलजला है... वो दिखाता है मोबाईल में गंगाजल और लगाता है आग कलेजे में (असल में सिविल लाईन्स, ब्लड बैंक, मुखर्जी नगर वालों के लिए गंगाजल पिक्चर नही रगों में दौड़ता लावा है जो आज भी उतना ही असरकारी है जितना 29 अगस्त 2003 को था )


और फिर अगले दिन से लौंडा तोड़ देता है सिम... लेता है शपथ उस अग्नि की जो जल रही है सीने में अपनी वाली के नकारे जाने से... भावुक होते हुए करता है फ़ोन पिता को... स्वीकार करता है अपनी पिछली गलतियाँ रोते हुए... खाता है कसम कुछ बनने के बाद ही शक़्ल दिखाने की और फिर हफ्ते दर हफ्ते स्वाहा होते है चैप्टर संविधान/इतिहास के और छपते से चले जाते है मन में... 


अगले कुछ सालों तक रक्षाबन्धन पे कलाई तो डाक विभाग के सहयोग से भर जाती है... मगर भीग जाती है दो आँखें बहन की सूखे से गुजरते राखी के त्योहार पे... समय के साथ साथ महीने का ख़र्च बढ़ता जाता है और कम होता जाता है वज़न पिट्ठु बैग टाँगे एक शरीर का... हफ्ते में दो दिन घर पे होनी वाली बातचीत तय रहती है... पिता का चिन्तन तैयारी पे और माँ का केन्द्रित रहता था "दूध तो पीता है ना?" पे और फिर एक दिन www.upsc.gov.in के एक हायपर लिंक पर छपता है नाम किसी के "कल्लु"... किसी के माईकल... किसी के तिवारी ... किसी के लल्ला का... बन जाता है यारों का यार "अधिकारी" और कमीने दोस्त फ़ोन पे बधाई बाद में देते है... डिमाण्ड रख देते है आते हुए महँगा वाला ब्राण्ड लेकर आने की... 


बहुत लम्बी लिस्ट है ऐसे देसी लौंडों की जो आज भी कहीं किसी जिले की ऑफीसर कॉलोनी वाले बंगले में... पुराने दोस्तों के साथ बैठे देख रहे है उसी पिक्चर को और कुछ घण्टे वापस से जिंदा हो रहे है... काहे से की कल सुबह तो फिर से किसी अपूर्वा कुमारी को किसी साधू यादव से बचाना है... लौंडा चाहे तो पोस्टिंग ले सकता है उसी शहर में जहाँ उस खास की ससुराल है... मगर अब मन नही करता... काहे से की वापस से देख लिये किसी दिन उसको तो खुद का ही कलेजा जला बैठेंगे गंगाजल से और एक पवित्र कहानी अपवित्र हो जाएगी।



Rate this content
Log in