मेरा भी तो हक़ है
मेरा भी तो हक़ है
आज सुरभि को देखने लड़के वाले आने वाले हैं, रिश्ता बहुत अच्छा है। घर वाले सभी माँ पापा भाई भाभी यही प्रार्थना कर रहे हैं कि बस कैसे भी ये रिश्ता पक्का हो जाए। सुरभि की बुआ ये रिश्ता लायी है।
सुरभि अपनी बुआ के बहुत करीब है।
"सुरभि लड़का बहुत अच्छा पढ़ा लिखा है। उसके माँ बाप भी बहुत अच्छे हैं, नई सोच वाले। तुझे बेटी बनाकर रखेंगे। मायके से ज्यादा प्यार तुझे ससुराल में मिलेगा। फिर भी तुझे जो कुछ भी पूछना हो आराम से पूछ लेना" सुरभि की बुआ ने सुरभि को कहा।
"भैया भाभी आप क्यों परेशान हो रहे हैं? मै हूँ ना इसकी बुआ सब संभाल लूंगी। मैंने तो लड़के वालों को पहले ही बोल दिया है हमारी सुरभि जैसी गुणवान दूसरी कोई नहीं मिलेगी। देखना आज रिश्ता पक्का हो ही जाएगा, चिंता ना करो।
"अरे दीदी बस चिंता इस बात की है कि उन लोगों ने दहेज की मांग कर दी तो क्या करेंगे!" सुरभि की माँ ने अपनी चिंता बताई।
तभी डोर बेल बजी, लड़के वाले आ गए। सबने उनका स्वागत किया, चाय नाश्ता का दौर चला। परिवार काफी सभ्य लग रहा था। लड़के की माँ ने सुरभि को दिखाने की बात कही। सुरभि अपनी भाभी के साथ आई, सभी को सुरभि बहुत पसंद आई, सुरभि को भी लड़का अच्छा लगा। दोनों परिवार खुश थे।
बुआ ने लड़के वालों से कहा "हमारे परिवार को तो ये रिश्ता मंजूर है, आप अपनी राय बता दीजिए और लेन देन की भी। मेरा मतलब है आपकी कोई खास डिमांड हो तो?"
"हम सभी को सुरभि पसंद आई, हम और कुछ नहीं चाहते, दहेज तो हम ना लेते हैं ना देते हैं।"
सुरभि के माँ पापा ने राहत की सांस ली।
तभी सुरभि ने कहा मुझे कुछ बोलना है, मुझे दहेज चाहिए।
खुशी के माहोल में शान्ति छा गई।
सुरभि की बुआ ने सुरभि से कहा "बेटा ये क्या मजाक है, बेटियाँ दहेज थोड़ी लेती हैं ?"
"बुआ मजाक नहीं है। ये तो मेरी जिंदगी की हकीकत है। जब से होश संभाला है, यही तो सुना है सुरभि पर इतना खर्च मत करो उसे तो दहेज देना ही है। बचपन में भाई को होली दिवाली या जन्मदिन कुछ भी हो नए कपड़े तोहफे दिए जाते थे। हर साल भाई का जन्मदिन मनाया जाता था, पर मुझे सिर्फ़ दीवाली पर नए कपड़े मिलते थे, जन्मदिन तो कभी मनाया ही नहीं। सिर्फ इसलिए कि मेरे लिए दहेज जोड़ना था! मेरा पूरा बचपन इसलिए सूना कर दिया माँ पापा ने। आपको याद है बुआ, मैं कितना रोई थी कि मेरी पढाई मत बंद कराओ, पर किसी ने नहीं सुना। भाई तो पढ़ने में अच्छा भी नहीं था, भाई का मन भी नहीं था तो भी उसे MBA में दाखिला दिला दिया और उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। तब भी यही कहा था कि पढ़ा के क्या करना है सुरभि को, वो तो दूसरे घर जाएगी। कम से कम कुछ रुपये तो बचेंगे दहेज के।
फ़िर मैंने घर में बुटीक का काम करने के लिए पूछा था, तब भाई को बिज़नस कराना था। इसलिए दस लाख रुपये भाई के बिज़नस में लगा दिए और वो काम भी नहीं चला। इसके बावजूद भाई को और पैसे देने के लिए तैयार हैं, मेरे लिए प्रार्थना कर रहे हैं बिना दहेज के शादी हो जाए। वो दहेज जिस पर मेरा हक है, मेरे बचपन के खिलौने हैं, मेरी पढ़ाई है मेरी अधूरी इच्छा है। पूरी जिंदगी ये बोलकर मुझे कोई हक़ नहीं दिया कि मुझे दहेज देना है तो फिर आज अगर मैं अपना हक़ मांग रही हूँ तो क्या गलत कर रही हूँ ?"
"बेटा ये तो हमारे घर का पुराना नियम है, जिसे मैंने भी भुगता है, पर तेरी जेसी हिम्मत ना कर पाई। सुरभि बुआ दोनों गले मिल कर रोने लगे।
