मेला
मेला
एक गांव में मदन नाम का एक लड़का था। वह अपनी मां के साथ रहता था। उसके पिताजी नहीं थे। मां बेटे घर पर रहते। मदन रोज अपने दोस्तों के साथ ही स्कूल जाता। मदन मां का आंखों का तारा था। एक दिन गोपालपुर गांव में मेला लगा था सभी दोस्तों ने मेला जाने के लिए तैयार हो गया। मदन और उसके साथी स्कूल से घर आ गए। मदन की मां उसके लिए रोज रोटी बनाती थी और उसके हाथ जल जाती थी। गांव में मेला लगा तो बच्चे अपने अपने दोस्तों के साथ मेला देखने के लिए चला गया। मदन को उसकी मां ने 10 पैसे दिए थे। बच्चे अपने मनपसंद का खिलौना ले रहे थे। कोई शेर भालू ले रहा था तो कोई झुला झूल रहा था। कोई मिठाई ले रहा था। मदन मन ही मन सोच रहा था कि मैं क्या ले जाऊं मां ख्याल आया कि मां मेरी मां रोज रोटी बनाती है उसके हाथ जल जाती है मदन चिमटा खरीदा। अपने मम्मी को से कहा मैं तेरे लिए चिमटा लाया हूं उसकी मां उसकी ओर देखकर भावुक हो गई। मां ने बेटे को गले से लगाया। बेटा अपनी मां की दर्द को समझा। मदन जैसा होना चाहिए जो अपनी मां के दर्द को समझ पाया। मदन अपनी मां का एकमात्र सहारा था।
