मेहमान बनिए पर बोझ मत बनिए
मेहमान बनिए पर बोझ मत बनिए
"सुनीता ओ सुनीता परसों निधि आने वाली है।एक महीने के लिए बच्चों की छुट्टियां हो गई हैंं।"मोबाइल फोन रखते हुए सुनीता के सास प्रभादेवी ने कहा। दीदी का नाम सुनते ही सुनीता का मूड ऑफ गया।
निधि सुनीता की नंद थी।निधि के दो बच्चे थे।सुनीता शुरू- शुरू में सुनीता अपनी नंद निधि के आने पर बहुत खुश होती थी।उसके आने पर भाभी सुनीता तरह-तरह के पकवान बनाकर खिलाती।एक महीने वह शेफ की तरह भागती रहती।नंद निधि अपने माँ के कमरे में बैठ सुनीता से फरमाइश करती भाभी ये बनाइये,भाभी आपके हाथ से ये अच्छा बनता है वो अच्छा बनता है और सुनीता भाभी फरमाइश पूरी करने में जुट जाती।
धीरे-धीरे सुनीता को अहसास होने लगा कि दीदी आती हैं ये बहुत अच्छी बात है पर उनके आते ही सुनीता अपने आप को भूल जाती है। उसे अपने बच्चों के लिए टाइम नहीं मिलता है। वह पूरा टाइम किचन में ही रहती है। शाम को दीदी और बच्चों के साथ घूमना और घर लौट कर फिर खाना बनाना। खाने में भी कहीं-कहीं तरह की सब्जियां बनती हैंं।सब्जियों को काटने,बनाने और खाना परोसने में बहुत टाइम लग जाता था।
आज निधि दीदी आ रही थीं।सास प्रभा देवी ने पहले ही निर्देश दे दिये थे कि निधि और उसके बच्चों के लिए ये-ये पसंद का खाना बनेगा।सुनीता ने अपनी सास के दिये निर्देशानुसार नंद और बच्चों के पसंद का खाना बना दिया।पहला दिन तो नंद की आवाभगत में निकल गया।सुनीता ने सब कुछ हाथोंहाथ दिया।
अगले दिन सुबह उठते ही सास ने कहा-"आलू-प्याज के पराठें बना लेना नाश्ते में।"सुनीता ने हाँ में सिर हिलाकर आलू कुकर में उबालने चढ़ा दिये।आलू उबलने के बाद सुनीता ने आलू और प्याज लेकर नंद के पास गई और बोली-"दीदी आलू छील दीजिए और प्याज बारीक-बारीक काट दीजिए तब तक मैं आटा गूंथ देती हूँँ और चाय चढ़ा देती हूँ।"इसी तरह से सुनीता अपनी नंद से छोटे छोटे कामों में सहायता लेने लगी।यह बात सास प्रभा को नावगार गुजरी।
एक दिन सास प्रभा तुनककर सुनीता से बोली-"निधि साल में एक बार आती है।माँ के घर बेटियाँ आराम करने आती हैं।यहां निधि से काम करवाया जा रहा है।"
सुनीता बोली-"मम्मी जी आप ही हमेशा कहती हैं निधि इस घर की बेटी है जब निधि दीदी इस घर की बेटी हैं तो मेहमान कैसै हुईंं?मुझसे पहले तो इनका हक है इस घर में।क्या हुआ अगर दीदी से थोड़ी हेल्प ले ली तो।दीदी क्या अपने घर में सब्जियाँ नहीं काटती होंगी।मम्मी जी काम बाँटकर करने से जल्दी हो जाता है और किसी एक पर भार भी नहीं आता है।"
यह सुनकर प्रभा देवी चुप हो गईंं।
दोस्तों, यह आमतौर पर भारतीय समाज में देखा जाता है कि मेहमानों के आने पर घर की बहु किचन में ही घुसी रहती है और उससे तरह तरह की फरमाइश की जाती है पर उसके साथ किचन में सहायता बिल्कुल नहीं की जाती है जो बिल्कुल गलत है।अगर आप मेहमान बनकर किसी के घर जा रहे हैं विशेषकर अगर आप नंद हैं तो आप मायके किचन में अपनी भाभी की खाना बनाने में सहायता कीजिए।याद रखिए आप मेहमान हैं अच्छी बात है पर किसी पर बोझ मत बनिए फिर चाहेंं वह आपका मायका ही क्यों न हो।