मैं यूज़लेस नहीं हूँ
मैं यूज़लेस नहीं हूँ
"दादी, हमें अपना पहला ऑर्डर मिल गया है। किसी रश्मि सहाय को अपनी 6 माह की बेटी के लिए क्रोशिये से बना हुआ स्वेटर चाहिए।" रुपाली ने इंस्टाग्राम पेज चेक करते हुए कहा।
घर में इधर -उधर टहलते हुए कुछ काम ढूँढ रही राजेश्वरी के कानों में जैसे ही यह शब्द पड़े, वह दौड़ती हुई रुपाली के पास चली आयी।
रुपाली जब 10 वर्ष की थी तब ही उसने अपने पापा को एक दुर्घटना में खो दिया था। रुपाली अपनी मम्मी वसुधा और दादी राजेश्वरी की छत्रछाया में पली -बढ़ी। घर की जरूरतें पूरी करने के लिए नौकरी कर रही वसुधा से अधिक समय रुपाली अपनी दादी राजेश्वरी के साथ व्यतीत करती थी।
छोटी रुपाली को दादी रोज़ भिन्न -भिन्न कहानियाँ सुनाती थी। कहानियों के सुखद अंत ने नन्ही रुपाली के जेहन में यह बात बिठा दी थी कि, "एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा।" दादी की कहानियों ने रुपाली की ज़िन्दगी में सकारात्मक दृष्टिकोण का संचार किया था नन्ही रुपाली बड़ी हो गयी थी और नौकरी करने लग गयी थी। इसी बीच रुपाली ने अपनी माँ वसुधा को भी खो दिया। अब रुपाली और दादी राजेश्वरी ही रह गए थे।
रुपाली दिन भर अपने ऑफिस में व्यस्त रहती और दादी राजेश्वरी घर पर। कोरोना ने रुपाली और राजेश्वरी दोनों की ज़िन्दगी बदल कर रख दी। कोरोना के कारण रुपाली को वर्क फ्रॉम होम मिल गया था और राजेश्वरी की छोटी सी दुनिया और छोटी हो गयी थी।
रुपाली ने घर पर रहते हुए नोटिस किया कि राजेश्वरी के लिए अपना समय बिताना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। राजेश्वरी पूरे घर में घूम-घूम कर कुछ काम ढूंढ़ने की कोशिश करती रहती थी। ज़िन्दगी में अब कोई लक्ष्य न होने के कारण राजेश्वरी अपने आपको शायद यूज़लेस भी समझने लगी थी।
रुपाली अपनी दादी की तकलीफ को समझ रही थी और वह शिद्दत से उन्हें कहीं किसी सृजनात्मक गतिविधि में व्यस्त भी करना चाहती थी ;लेकिन उसे कोई तरीका सूझ नहीं रहा था। इसी बीच अलमारी में अपने कपड़े ठीक कर रही, रुपाली को एक वूलन फ्रॉक मिला। यह फ्रॉक उसकी दादी राजेश्वरी ने, जब वह बहुत छोटी थी, तब उसके लिए बनाया था। क्रोशिये से बना हुआ यह फ्रॉक रुपाली को बहुत ही पसंद था। दादी ने बहुत से रिश्तेदारों के बच्चों को क्रोशिये से बने हुए स्वेटर आदि बनाकर दिए थे।
"दादी, जल्दी से इधर आओ।" रुपाली ने आवाज़ लगाई।
"क्या हुआ बेटा ?" कमरे में प्रवेश करते हुए राजेश्वरी ने कहा।
रुपाली ने वूलन फ्रॉक राजेश्वरी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "दादी, क्या आप अब भी क्रोशिया चला सकती हो ?"
"बेटा, क्यों नहीं ?लेकिन आजकल तो सब मशीन के बने हुए कपड़े पहनते हैं किसके लिए क्रोशिया चलाऊँ ?"दादी ने फ्रॉक को प्यार से अपने हाथों से सहलाते हुए कहा।
"अपने खुद के लिए दादी। " रुपाली ने कुछ सोचते हुए कहा।
"क्या मतलब ?" राजेश्वरी ने पूछा।
"दादी, आप क्रोशिये के उपयोग से आत्मनिर्भर हो सकती हो। अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सकती हो। आपकी एक नयी पहचान बन सकती है।" रुपाली ने चहकते हुए कहा।
"तू भी अपनी दादी से मज़ाक कर रही है। अब मेरी उम्र थोड़े न है अपना व्यवसाय शुरू करने की।" राजेश्वरी ने कहा।
"दादी, चंडीगढ़ की एक दादी ने अपनी बेटी की मदद से खुद के हाथों से बनी हुई मिठाइयों का व्यापार शुरू किया और आज एक सफल उद्यमी है। रुको, आपको दिखाती हूँ।" रुपाली विद्युत की गति से अपना लैपटॉप उठाकर ले आयी और राजेश्वरी को दिखाने लगी।
"अब दादी मैं आपका इंस्टाग्राम पर पेज बना देती हूँ। उस पेज के जरिये हम ऑर्डर प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।" रुपाली ने कहा।
"क्या बना रही है ?" राजेश्वरी ने कहा।
"अब दादी जो सामान हमें लोगों को बेचना है, उसे शॉप पर तो रखना होगा न। तो यह एक तरीके की शॉप है, जहाँ हम अपना सामान लोगों को दिखा सकते हैं।" रुपाली ने वूलन फ्रॉक की डिफरेंट -डिफरेंट एंगल से फोटो खींचते हुए कहा।
"ठीक है बेटा।" राजेश्वरी अब तक मानसिक रूप से तैयार हो गयी थी।
राजेश्वरी का पेज बन गया था। राजेश्वरी रोज़ रुपाली से पूछती थी कि, "कोई ऑर्डर मिला ?"
उसकी 'न ' सुनकर खुद ही उसे समझाती थी, "फ़िक्र न कर मिल जाएगा।" इसी बीच राजेश्वरी ने खुद ने भी मोबाइल चलाना सीख लिया। मोबाइल पर कपड़ों से संबंधित वीडियो आदि देखकर उन्हें खुद को भी कुछ नए आइडियाज आये।
"बेटा, मैं क्रोशिये से स्कार्फ़, हेयर बैंड भी बना सकती हूँ।" राजेश्वरी ने कहा।
"वाह दादी, बहुत बढ़िया। आप बनाओ और फिर मैं पहनकर फोटो डालती हूँ।" रुपाली ने उत्साहित स्वर में कहा।
और आज लगभग 15 दिनों बाद दादी राजेश्वरी को अपना पहला ऑर्डर मिल गया था।
"बेटा, किस रंग की फ्रॉक बनानी है ?" राजेश्वरी ने पूछा।
"क्रीम कलर।" रुपाली ने सारी डिटेल्स चैक करके बताया।
कुछ ही महीनों में राजेश्वरी का उद्यम अच्छे से चल निकला। उन्होंने क्रोशिये के बुक मार्क, स्कार्फ़, मग कवर आदि कई चीज़ें बुनना शुरू कर दिया था। राजेश्वरी आत्मनिर्भर बन गयी थी।