मैं यहाँ क्यों !!
मैं यहाँ क्यों !!
बहुत उत्सुक थी उस दिन मैं, पहली बार ओल्ड होम जा रही थी। उम्र के उस पड़ाव पर जब परिवार की जरूरत होती है, अकेले रह रहे वृद्ध और वृद्धाओं से मिलने। मेरी एक सहकर्मी अकसर वहाँ जाती थी, कुछ न कुछ देने, कुछ वक्त साथ बिताने, बातें करने। जब हम वहाँ पहुंचे तो उनके कर्मचारी हमें उनसे मिलवाने ले गए। बरामदा पार करके जब पहुँचे अंदर तो देखा एक बड़ा सा कमरा।
बड़े कमरे में दस बेड लगे थे कोई बैठा कोई लेटा, कुछ बातों में लगे थे। हमें देख कर लेटे उठ गए। वहाँ के कर्मचारी हमें सबसे मिलवा रहे थे। उनसे बात करवा रहे थे। सभी उत्सुक हो देख रहे थे। शायद ऐसी रौनक कभी-कभी होती होगी।
मैंने देखा साइड बैड पर अभी भी एक अम्मा लेटी हुई थी, हमारी उपस्थिति से बेखबर। मैं उनके पास गई। मैंने नमस्ते कहा तो जवाब में बोली, 'क्यों आई हो यहां ?' मैंने कहा आप से मिलने। मेरी कुछ लगती हो ? मैंने कहा -नहीं। मेरे गाँव से आई हो ? मैंने कहा- नहीं। मैं तुम्हारी क्या लगती हूँ ? मेरी सगे वाली हो ? मैंने कहा, 'कुछ भी नहीं। ' कुछ अलग भाव से वो मुझे देखती रहीं। मैं जल्दी से बोली, 'माँ लगती है इंसानियत के नाते !'
अम्मा ने कहा ,' जाओ यहाँ से, जब अपनों ने नहीं पूछा तो तुम क्यों आई हो।'
मैंने उनके कांपते हाथों को देखा। उनकी हथेली दोनों हाथों में लेकर कहा,' चली जाऊँगी पर थोड़ी देर बातें करें। '
मेरा इतना कहते ही उनकी आंखों से गंगा यमुना बह निकली, दिल का गुबार, मैं हथैली दबाती रही वह आंसू बहाती रही। घंटा कैसे बीता पता ना चला। शांत हो धीरे-धीरे घर परिवार की बातें करती रहीं। ऐसे घुल-मिल गए मानों बरसों की पहचान हो। जब मैं वापसी के लिए उठी तो हाथ पकड़कर बोली, 'मैं बुरी हूँ ?' कुछ और कहें उससे पहले ही मैंने कहा नहीं।
फिर मुझे यहाँ क्यों ? मैं कुछ कह ना पाई, आँसू छुपाते बाहर निकलते हुए सोच रही थी - क्या इसी दिन के लिए मां-बाप बच्चों को लंबी उम्र की दुआएं देते हैं।