मैं मर गया हूँ day-13 paripurna
मैं मर गया हूँ day-13 paripurna
श्रीधर फैमिली वेकेशन पर मारीशस आया हुआ था। कहने को वेकेशन थी ;लेकिन श्रीधर हॉलिडे पर होते हुए भी हॉलिडे पर नहीं था।उसका ऑफिस लगातार फ़ोन पर जारी था। श्रीधर हमेशा वेकेशन पर विदेशों में ही जाता था। इस तरीके के हॉलिडे अफोर्ड करने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी। मेहनत ,चापलूसी ,धोखेबाजी ,चालाकी ,क्रूरता सब कुछ ही तो किया था।वह करे भी तो क्या इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में सबसे आगे रहने के लिए साम ,दाम ,दंड ,भेद अपनाना पड़ता है। आज वह एक सफल व्यक्ति है।
श्रीधर अपने परिवार के साथ वाटर स्पोर्ट्स का मज़ा लेने जा रहा था। 2 घंटे के लिए उसने अपने सभी फोन कॉल्स आदि पोस्टपोन कर दिए थे। स्पीड बोट पर श्रीधर परिवार के साथ जा रहा था। खतरों के खिलाड़ी श्रीधर ने लाइफ जैकेट नहीं पहना था। वह बोट पर खड़ा था ;तब ही एक विशाल महासागरीय धारा श्रीधर को छूकर गयी। श्रीधर धारा के साथ समंदर में चला गया। बड़े से बड़े तैराक भी समंदर के सामने विफल हो जाते हैं ; श्रीधर ने हाथ -पैर मारने की कोशिश की ;लेकिन सब व्यर्थ। श्रीधर डूब रहा था ;कुछ सेकंड के लिए उसे लगा कि उसका शरीर एकदम हल्का हो गया है। श्रीधर अपने आपको डूबते हुए देख रहा था ;उसके परिवार वाले डेक पर खड़े होकर चिल्ला रहे थे ,"बचाओ ,बचाओ। "
लाइफ सेवर श्रीधर को बचाने के लिए कूद गए थे। श्रीधर इतना हलका हो गया था कि वह हवा में लटके हुए सब देख रहा था। "मैं मर गया हूँ। ",श्रीधर ने अपने आप से कहा। यह सोचते ही श्रीधर को सब कुछ छूट जाने का दुःख हुआ। "क्या वह सफल होने के साथ -साथ खुश भी था ?" ,उसने अपने आप से पूछा।
"नहीं ;वह खुश नहीं था क्यूँकि उसे पता था कि वह कई व्यक्तियों के आँखों में आँसुओं की वजह था।जब भी उसने किसी छोटी मछली का शिकार किया था ;उसे ख़ुशी नहीं मिली थी ;बल्कि अपने कर्म को न्यायोचित ठहराने के लिए वह स्वयं को कई ऐसे ही उदाहरण देता था।पेंटिंग कभी उसकी अभिरुचि थी ;लेकिन पेंटिंग के लिए उसके पास कभी वक़्त ही नहीं था।जब उसने कॉलेज टाइम में पेंटिंग के लिए पहला पुरस्कार जीता था ;उसकी आँखें ख़ुशी से बहने लगी थी।बहुत ही कम ऐसे अवसर आये थे ;जब उसके होंठ मुस्कुराये थे और आँखें भीगी थी।
कुछ ही मिनटों में लाइफ सेवर ने श्रीधर को पकड़ लिया था और श्रीधर ने एक गहरी साँस ली।श्रीधर को वापस जीवन मिल गया था।श्रीधर मौत को हराकर लौट आया था ;लेकिन श्रीधर अब बदल गया था।उसने सफल होने का अर्थ समझ लिया था।जीवन में ख़ुशी का होना ही असली सफलता है।
श्रीधर ने वेकेशन से लौटते ही उन सभी लोगों से माफ़ी माँगी ;जिन्हें उसने सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था।श्रीधर ने उन सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की ;जिन्होंने उसे इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए किसी भी प्रकार से सहयोग किया था।
उसके बाद श्रीधर ने अपनी संपत्ति का 80 % तक हिस्सा दान कर दिया और खुद एक छोटे से शहर में जाकर बस गया और उसने पेंटिंग करना शुरू कर दिया। उसने अपनी जरूरतें न्यूनतम कर ली थी और वह सादगी के साथ सुःख और सुकून की ज़िन्दगी जीने लगा।