मैं कोरे कागज पर साइन न करूंगी
मैं कोरे कागज पर साइन न करूंगी
शिखा के पति सुहेल को ऑफिस के काम से पेरिस जाना था। जब सुहेल ने वीजा के लिए अप्लाई किया तो उसे पता चला कि एक डॉक्यूमेंट में उसे अपनी पत्नी के साइन चाहिए जिसमें उसकी वाइफ को नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देना था यानी कि ये दस्तावेज़ देने थे जिसमे लिखा हो की शिखा को अपने पति के पैरिस जाने से कोई दिक्कत नहीं है।
सुहेल को हँसी भी आई और गुस्सा भी। भला पति के पेरिस जाने में पत्नी से पूछने की क्या आवश्यकता और उसे पता भी था कि शिखा अब उसकी बहुत हँसी उड़ाएगी और खूब परेशान करेगी साइन करने से पहले, आखिर शैतान जो ठहरी।
खैर मरता क्या ना करता, उसने घर लौटकर शिखा को सब बताया और उम्मीद के मुताबिक शिखा हँस हँस कर लोट पोट होने लगी और कहने लगी कि मैं कोई साइन नहीं करूंगी और करवाना भी है तो रिश्वत देनी पड़ेगी। सुहेल की माँ, नीनाजी भी शिखा की हरकतें देख हँस पड़ी। सुहेल भी हँस कर रह गया, पता था रिश्वत के गोल-गप्पे खिलाए बिना काम नहीं बनेगा।
सुहेल थोड़ा भुल्लकड़ था सो वो शिखा से साइन कराने वाला डॉक्यूमेंट बनाना भूल गया। जिस दिन डॉक्यूमेंट जमा कराने की आखिरी तिथि थी, उस दिन सुहेल नाश्ता बनती शिखा से बोला कि मैं एन. ओ. सी. के काग़ज़ बनवाना भूल गया और एक कोरा काग़ज़ उसे देते हुए बोला कि इस पर साइन कर दो, एप्लिकेशन मैं ऑफिस में लिख लूंगा।
शिखा वैसे ही सुहेल की भूलने की आदत से तंग रहती थी, उस पर ये सुनकर कि कोरे काग़ज़ पर साइन कर दो, उसे बहुत गुस्सा आया। उसने सुहेल को साफ इंकार कर दिया कि मैं किसी कोरे काग़ज़ पर दस्तखत नहीं करूंगी। सुहेल ने दो तीन बार उसे मनाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानी। तब नीना जी गुस्सा होते हुए बोली- क्या दिक्कत है तुम्हे शिखा साइन करने में, ऐसा क्या तुम सुहेल पर बिल्कुल विश्वास नहीं करती।
तब शिखा बोलने लगी- नहीं मम्मी जी, ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे सुहेल पर पूरा विश्वास है लेकिन किसी को भी किसी पर कितना भी विश्वास हो, कोरे कागज़ पर साइन नहीं करना चाहिए। एक दस्तखत मेरे विश्वास कि कसौटी नहीं है बल्कि मेरे उसूलों का प्रतीक है। गलती सुहेल की थी जो उन्होंने काग़ज़ तैयार नहीं किया। वो चाहे तो अभी एप्लिकेशन लिख सकते हैं और मैं उस पर साइन कर दूंगी पर कोरे काग़ज़ पर साइन कभी नहीं करूंगी। नीना जी शिखा की बात सुनकर चुप हो गई। मन ही मन वो भी इस से सहमत थी।
इतने में सुहेल भी बोल पड़ा- मुझे तुम्हारा अपने उसूलों और हक के लिए खड़ा होना बहुत पसंद है। मैं भी सिर्फ तुम्हें तंग कर रहा था, काग़ज़ तैयार हैं, लो मैडम जी साइन करो और सब मिलकर हँस दिए।
मुझे भी यही लगता है कि हर किसी को अपने उसूलों और हक के लड़ना चाहिए। सिर्फ हां में सिर हिला देने से आप एक अच्छी बीवी नहीं बन जाती।