मैं कैसे जाऊं!!
मैं कैसे जाऊं!!
अशोक जी व राधा जी के एक ही बेटा है समर और एक बेटी है सुरभि। समर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत है। वह अपनी कंपनी में जी एम् . है। सुरभि एमबीए कर रही है। अशोक जी एक सरकारी कर्मचारी हैं। तथा राधा जी एक कुशल गृहणी।
राधा जी समर की शादी मानसी से खूब धूमधाम से करती है। मानसी बहुत ही सुंदर पढ़ी- लिखी जो भी उसे देखे तारीफ किए बिना ना रह पाए। ऐसी बहू लाई है राधा जी।राधा जी मानसी से बहुत खुश रहती हैं। छोटा सा बहुत ही सुखी परिवार है उनका।मानसी के मायके में उसके माता-पिता और उसकी छोटी बहन माला,जो कि एमएस कर रही है।अब राधा जी ने साल भर के अंदर ही सुरभि की भी शादी कर दी। शादी के बाद वह कुछ दिनो मे यूएस में अपने पति के साथ चली गईं और वही सेटल हो गई।
कुछ महीने बाद मानसी गर्भवती हुई और उसने एक बहुत ही प्यारी छोटी सी बच्ची परी को जन्म दिया। घर में खुशियां ही खुशियां हैं। समय बीतता गया, धीमे -धीमे बच्ची बड़ी होने लगी व स्कूल जाने लगी। घर में पैसे की तथा खुशियों की कोई कमी नहीं है। राधा जी व मानसी प्यार से मिलकर रहती हैं तथा परी की परवरिश में दोनों का बराबर योगदान है। परी भी दिनभर दादी दादी कहते नहीं थकती। उनके घर की जान है परी।
सुबह परी स्कूल जाए... शाम को मानसी उसे दूध पिला कर पढ़ने बैठाती। पढ़ाई खत्म करके परी दादा दादी के साथ पार्क जाए और पूरे शाम उनके साथ खेलती रहे। नटखट परी सभी का मन मोह कर लेती थी। यूएस से सुरभि भी 2 महीने पहले ही सब से मिलने इंडिया आई थी। वो भी अपनी भतीजी परी पर जान छिडके। उसका भी मन मोह लिया था उस बच्ची ने।
उधर मानसी की बहन माला भी एमएस कंप्लीट कर एक बाल चिकित्सक बन गई, और एक हॉस्पिटल में काम करने लगी। अपने साथ काम करने वाले डॉक्टर अमर को वह पसंद करती है। दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं।
एक दिन मानसी की माँ का फोन मानसी के पास आता है।
" मानसी बेटा एक खुशखबरी है।"
" हां, मां बताइए "
"अरे माला के साथ काम करने वाले डॉक्टर अमर के घर से माला के लिए रिश्ता आया है। माला अमर दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं। कल तू आ जाना अमर के घर वाले देखने आ रहे हैं। "
" ठीक है माँ.... मैं कल सुबह आ जाती हूं।"
मानसी समर व परी के साथ अपने मायके पहुंचती हैं। मानसी ने मां के साथ मिलकर कुछ अच्छे-अच्छे पकवानों की तैयारी कराई और कुछ बाजार से मँगवा ली। शाम को अमर के परिवार वाले माला को देखने आए और शगुन में कुछ रुपए माला को देकर तथा एक दूसरे को मिठाई खिलाकर रिश्ता पक्का कर दिया। दोनों के परिवार वाले बहुत खुश थे। अगले हफ्ते सगाई की बात पक्की हो गई।
अमर के परिवार वाले 2 महीने बाद की शादी की बात पक्की की। माला भी बहुत खुश, झिझकती, शर्माती, मन्द मुस्कान लिए अपने मे मग्न परी को लेकर इधर-उधर घूम रही थी।
मानसी की माँ मानसी से बोली, "चलो बेट
ा कुछ शॉपिंग कर आते हैं। फिर 1 दिन पहले आ जाना। तब चलकर बची हुई शॉपिंग कर लेंगे।"
" ठीक है माँ!"
शॉपिंग के बाद मानसी समर के साथ अपने घर वापस चली गईं।
सगाई की 2 दिन पहले अचानक राधा जी बाथरूम में नहाने जाती हैं ना मालूम कैसे तेजी से धड़ाम की आवाज आई। मानसी दौड़ कर जाती है तो देखी राधा जी जमीन पर पड़ी हैं। वह जल्दी से ऑटो करके उनको हॉस्पिटल ले जाती है। पता चलता है कि उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया है। कई जगह चोटें भी आई हैं। समर भी घबराहट मे आफिस से भागा -भागा हॉस्पिटल पहुंचा। राधा जी को प्लास्टर कराकर मानसी व समर घर लाते है।
मानसी उनकी सेवा में लग जाती हैं। उनको हल्दी वाला दूध, फल, दवा सब देती है। रात में दूध लेकर मानसी उनके कमरे में जाती है। राधा जी "बेटा तुम कल मायके चली जाना।"
" नहीं.....सासु माँ मैं मायके नहीं जाऊंगी।"
" अरे बेटा .... माला की सगाई है ना "
"पर मम्मी जी मैंने माँ को सब बता दिया है। वह मैनेज कर लेंगी।"
" पर बेटा तुम्हारी एक ही तो बहन है।"
" हाँ......, पर मैं भी तो आपकी एक ही बहू हूँ। सुरभि दीदी भी इतनी दूर है ना तो हम उनको बुला लेते। मेरे रहते हुए मैं ऐसी हालत में आपको छोड़कर नहीं जा सकती मम्मी जी। "
राधा जी चुप हो गई। अगले दिन फिर शाम को राधा जी बोलती हैं।
"अरे ,मानसी बेटा तू 2 घंटे के लिए परी के साथ चली जाना। समर और पापा जी मुझे देख लेंगे यदि कुछ जरूरत पड़ी तो। रोज-रोज थोड़ी ना सगाई होती है।"
मानसी अनमनी सी बोली "मन तो मेरा है पर ....मम्मी जी आपकी तबीयत ठीक ना होने के कारण मेरा मन नहीं मान रहा कि मैं कैसे जाऊं। और मम्मी जी कोई शादी थोड़ी ना है। 2 महीने बाद शादी में मैं तो 10 दिन पहले से जाकर मम्मी के साथ सारे काम भी कराऊंगी और रहूंगी भी। अभी तो वहां ज्यादा कुछ काम नहीं है। सिर्फ कुछ लोग ही आ रहे हैं सगाई में, माँ बता रही थी।"तभी घर मे प्रवेश करती पड़ोस की गुप्ता आंटी दोनों की बात सुन लेती हैं और वह बोली, "अरे मानसी बेटा.....!"मानसी मुडकर उनको देखते हुए बोली "नमस्ते आंटी जी.... आइए .. बैठिये ना"
"अरे मानसी तुम समर के साथ चली जाना। इतनी देर के लिए मैं आ जाऊंगी। अपने दोस्त के साथ कुछ गप्पें भी मार लूंगी और कुछ जरूरत पड़ी तो देख भी लूंगी।" कहकर आंटी हँस देती हैं।
तब राधा जी बोली," यह सही रहेगा। हम दोनों सखी खूब बातें करेंगी। तू और समर सुकून से माला की सगाई में चले जाना।"
"ठीक है मम्मी जी " कहकर मानसी भी हौले से मुस्कुराते हुए सिर हिला देती है।
परेशानी के बावजूद इस घर मे एक खुशनुमा बयार बह रही थी। आखिर क्यों न हो, एक बहू के अपनेपन व सास की परवाह ने इस परिवार की खुशियों को हमेशा सहेज के जो रखा है। संयुक्त परिवार मे भी आपस मे खुशियोँ, एक दूसरे के दुख दर्द समझने, बाँटने व दिल से रिश्तों की परवाह करने से घर एक स्वर्ग क्यों नहीं बन सकता।