मैं गलत थी।
मैं गलत थी।
सब सो रहे थे पर रागिनी की आंखों से नींद कोसों दूर थी क्योंकि कल उसकी जिंदगी का अहम फैसला जो होना था ...।
अचानक उसका गला सूखने लगा वो पानी पीने को उठी सारा घर शांत था पर उसके अंदर हलचल मची थी। क्या सोचा था और क्या हो गया...। कितना प्यार था उसमें और अभिषेक में फिर अचानक ये सब क्यों और कैसे हो गया। उस दिन क्यों जरा सी बात का बतंगड़ बना वो सब छोड़ कर आ गई ...। यहां भी सबने उसको सही ठहराया और अभिषेक को गलत।
जबकि गलती क्या थी अभिषेक की .... ये सोचते सोचते रागिनी अतीत में पहुंच गई।
" रागिनी कल कुछ दिनों के लिए मम्मी पापा आ रहे है हम दोनों के साथ रहने। तुम थोड़ा ध्यान रखना। " उस दिन अभिषेक ऑफिस से चहकता हुआ आ के बोला।
" क्यों आना है उन्हें यहां ऐसा क्या काम पड़ गया!" रागिनी उखड़े हुए मूड में बोली।
"क्यों से क्या मतलब है तुम्हारा रागिनी मेरे माँ- पापा हैं वो शादी के बाद पहली बार अपनी बहू के साथ रहने आ रहे !" अभिषेक आश्चर्य से रागिनी को देखता हुआ बोला।
" खूब समझती हूं मैं बहू से सेवा करवाने और उसमें कमी निकालने आ रहे है पर बता देती हूं मैं तुम्हें मुझसे नहीं होगा कुछ भी ... मैं जैसे रहती वैसे ही रहूंगी मुझसे आदर्शवादी बहू बनने की कल्पना भी मत करना!" रागिनी तुनक कर बोली।
" रागिनी कुछ दिन तुम उनके हिसाब से रह भी लोगी तो आफ़त तो नहीं आ जाएगी मैं कौन सा बोल रहा कि तुम साड़ी पहन सिर पर पल्ला रखो बस ये जींस, शॉर्ट्स मत पहनना कुछ दिन!" अभिषेक बोला।
" मैं किसी के लिए नहीं बदल सकती जब तक तुम्हारे मम्मी पापा यहां रहते हैं मैं अपने मम्मी पापा के यहां जा रही तुम भी शांति से रहना मैं भी!" रागिनी ने फैसला सुना दिया।
" ये कौन सी बात हुई रागिनी !" अभिषेक गुस्से में चिल्लाया।
" अब तुम मुझपर चिल्लाने भी लगे ...मुझे रहना ही नहीं यहां।" ये बोल रागिनी अपना सामान पैक करने लगी।
" ठीक है जा रही हो तो जाओ पर कभी ये उम्मीद मत करना मैं तुम्हें मनाने आऊंगा!" अभिषेक गुस्से में बोला और घर से निकल गया।
रागिनी और अभिषेक साथ पढ़ते थे। दोनों के परिवार भी एक दूसरे को जानते थे। दोनों की पढ़ाई पूरी होने पर दोनों के परिवार की रजामंदी से दोनों का रिश्ता कर दिया गया। अभिषेक की नौकरी मुंबई में थी तो शादी के बाद दोनों वहां आ गए। कुछ समय बाद रागिनी के घर वाले भी मुंबई आ गए क्योंकि रागिनी के भाई को भी यहीं नौकरी मिल गई थी। जबकि अभिषेक के मां पापा मेरठ में बड़े बेटे के पास रहते थे। रागिनी और अभी की शादी को छ: महीने हो गए थे। रागिनी अपनी किट्टी की सहेलियों से सास ससुर के बारे में सुन अपने ससुराल वालों के लिए भी नकारात्मक विचार रखने लगी थी यही वजह थी कि आज उनका आना उसे नागवार गुजर रहा था।
रागिनी गुस्से में सामान ले अपने मायके आ गई।
" मम्मा मैं वापिस नहीं जाऊंगी वहां... अभी को मेरी परवाह ही नहीं बस अपने मां पापा की है।" रागिनी अपनी मम्मी को सारी बात बता बोली।
" बेटा ये तेरा घर है अभिषेक तो तेरी फिक्र होगी खुद आएगा लेने !"
रागिनी मायके में रहने लगी। उसके गुस्से को उसकी मम्मी समय समय पर हवा दे रही थी।
" रागिनी वापिस लौट आओ अपने घर बहुत हुआ गुस्सा !" अभिषेक एक दिन फोन करके बोला।
" रागिनी तभी वापिस आएगी जब तुम अपने मां पापा से रिश्ता तोड़ लोगे!" रागिनी की जगह उसकी मम्मी फोन ले बोली।
" ये नहीं हो सकता मम्मी मेरे मां पापा हैं वो !" अभिषेक अपने गुस्से को पीकर बोला।
" तो ठीक है अब कोर्ट में मिलना!" ये बोल फोन काट दिया गया।
कुछ दिन बाद तलाक का नोटिस आया अभिषेक के पास। कई महीने से केस चल रहा अब कल उसका अंतिम फैसला है।
अचानक रागिनी ने अभिषेक को फोन मिलाया।
" हेल्लो... रागिनी क्या बात है इतनी रात को फोन....!" उधर से अभिषेक की आवाज़ आई
"......"
" क्या बात है रागिनी रो क्यों रही हो !" अभिषेक रागिनी की सिसकी सुन बोला।
" अभिषेक मुझे ले जाओ प्लीज़ मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती!" रागिनी रोते हुए बोली।
" रागिनी रह तो मैं भी नहीं सकता पर ये भी सच है कि मैं अपने मम्मी पापा के बिना भी नहीं रह सकता। अभिषेक बोला।
" मैं गलत थी अभिषेक ..जो तुम्हें मां पापा से अलग करना चाहा मैं उनसे भी माफ़ी मांग लूंगी अभी तुम मुझे माफ़ कर दो और लेने आ जाओ मुझे !" रागिनी बोली।
" ठीक है 15 मिनट में तुम्हारे घर के नीचे पहुंचता हूं मैं वहीं मिलो मुझे !" अभिषेक बोला।
जैसे ही रागिनी अपना सामान लेने पलटी देखा दरवाजे पर उसके पापा खड़े हैं। रागिनी ने उनकी तरफ भरी आंखों से देखा।
" जा बेटा अपने घर संसार में लौट जा ...वहीं तेरा असली घर है तेरी मां उठ जाए उससे पहले तू जा और हमेशा खुश रहना !" रागिनी के पापा उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोले।
रागिनी पापा के गले लग सामान उठा नीचे आ गई .. वहां अभिषेक पहले से गाड़ी के खड़ा था रागिनी ने कुछ बोलने को मुंह खोला पर आंसुओं ने उसकी आवाज़ रोक दी ... अभिषेक ने आगे बढ़ के उसे सीने से लगा लिया।
ऊपर रागिनी के पापा खिड़की से ये सब देख रहे थे उनकी आंखों में आंसू आ गए। जोकि खुशी के आंसू थे बेटी का घर जो बस रहा था फिर से।
दोस्तों कई बार बच्चे ऐसी नासमझी कर जाते पर ये बड़ों का फ़र्ज़ होता कि उन्हें समझाए ना की उनकी गलती को बढ़ावा दे घर तोड़ दे उनका।
