गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Tragedy Others

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

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मैं‌ भी सौरव..

मैं‌ भी सौरव..

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कोरोना केवल एक वायरस नहीं, केवल एक महामारी नहीं अपितु मानवता को लथपथ करने वाला एक ऐसा खंजर है जिसे मानवीय समाज ने आधुनिकता की चाह में प्रकृति का दोहन कर स्वयं अपने सीने पर उतार लिया। जब भी महामारी जैसा प्रकृति जन्य प्रकोप मानवीय समाज को हताहत किया इसने युवा, वृद्ध, शिक्षित-अशिक्षित, अमीर-गरीब हर वर्ग को प्रभावित किया है। जितना शहरों में इसका प्रभाव रहा ग्रामीण क्षेत्र भी उतना ही प्रताड़ित हुए परंतु इन सबमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसमें वही इंसान जीवित बचा जिसकी जीवन प्रति समयानुकूलता अधिक है जिसके लिए स्वास्थ्यवर्धक जीवन आवश्यक है। आधुनिकता के द्रुतवाहन पर सवार होने वाला कोई भी देश इस तरह के महामारी से अछूता नहीं रहा। समूचा विश्व जब काल के जाल में समाने लगा जब सभी देश रोज मृत लोगों की गिनती लाखों में करने लगे तब भारत की गणना में सौरव के परिवार की भी एक आहुति आंकी गई थी।

   छत्तीसगढ़ के वाम-सुदूरवर्ती ग्राम आमगॉंव जो चारों ओर से कोयला खनन और वृक्षों की निर्मम हत्या से हताहत है, जहॉं की सामाजिकता कुंठित मानसिकता से ग्रसित रही है। ऐसे अनगिनत गॉंव अब भी भारतीय जनसांख्यिकी के धरोहर हैं। आमगॉंव के सौरव ने ये सोचा भी नहीं था कि इस महामारी ने पल भर में सारी खुशियां छीन लेंगी। कुछ दिन‌ पहले जिस माता के साथ बहन के ब्याह के समय में आयोजित हल्दी के रस्म में हाथों में हाथ डाले नृत्य किया हो, वर्षों से जिसने सभी को समानता के नजर से देखा हो, सबको समान व्यवहार दिया हो, सदा अपनत्व के तराजू‌ में सबको तोला हो, उन ममता की प्रतिमूर्ति (पुष्पा चाची) सौरव की माता श्री का एन पी सी आर रिजल्ट आज पॉजीटिव आया है। यह सुनते ही अचानक लोगों का रवैया ही बदल गया। केवल पुष्पा जी ही नहीं अपितु पूरा परिवार ‌मानो संगीन अपराध के जुर्म में कटघरे में खड़ा हो गया हो। मानो छुआछूत फिर से समाज में फैल गया हो सबको नजरबंद घर के चहारदीवारी में ही रहना है, कोई किसी से खुलेआम बात नहीं कर सकता। चाची के रहने से निकलने से मानो पूरी गलियॉं खिलखिलाती दिखती थी व्यवहारिकता और सादापन आदर्शता का भाव लिए मुस्कुराती दिखती थी, इस कोरोना के कारण सब छीन गया, मानवता का रोना था जैसे मानसिकता एक जर्जर खंडहर में तबदील हो गया हो। सब के सब मास्क लगाए दिखते थे, सर से पॉंव तक ढके शरीर में सॉंस लेना भी दुष्कर था। सब्जी दूध, पानी, चावल जैसे आवश्यकताओं के लिए किसानों की सहभागिता आज भगवान के रुप में सामने आई। जैसे-तैसे करके सभी गुजारा कर रहे थे।

      इसी बीच 9 मई को ही शाम से ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगी त्वरित इलाज के लिए जिंदल स्टील एवं पावर लिमिटेड कंपनी के हॉस्पिटल ले जाया गया जहॉं से रात को ही रायगढ़ शिफ्ट कर दिया गया। सौरव अपने पढ़ाई और सामान वापस लाने बिलासपुर में फॅंसा रह गया उसे वापस बुलाने के सारे तरकीब धारासायी हो गए। फोन से ही पल-पल की खबर वो लेता रहा, अब इधर ऑक्सीजन की मात्रा और भी कम बताई गई और आई सी यू में रखा गया और अंतत: डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए 9 मई को संक्रमित हुए 10 मई को सुबह 5:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस लिया। इस तरह ग्रामीण अंचल में मानवता का एक सुनहरा मुस्कुराता अध्याय समाप्त हो गया। उनकी मृत्यु के उपरांत कई लोगों ने अलग-अलग मंतव्य रखा कुछ ने डॉक्टरों की लापरवाही तो कुछ ने बीमारी को प्रमुख कारण माना। परंतु इन सब के बीच एक पार्थिव शरीर को गॉंव लेकर आना था जिसके लिए भी काफी मशक्कत करना पड़ा और अंत में गॉंव न ले जाने का आदेश जारी हुआ केवल बाहर के रास्ते से ही एक तालाब से दूर मरण शैय्या पर उन्हें लिटाया गया एंबुलेंस गाड़ी, 2 डॉक्टर और सिर्फ एक व्यक्ति को ही वहॉं पहुॅंचने के लिए अनुमति प्राप्त था पूरे गॉंव वाले लगभग 1 किलोमीटर दूर से निहारते रहे, कुछ उनकी अच्छाइयों को लेकर चर्चा करते रहे तो कुछ बच्चों के लिए सहानुभूति व्यक्त करते रहे। कुछ देर इंतजार करने के पश्चात आज सौरव अपनी मम्मी से मिलने आ रहा था परंतु दृश्य कुछ विपरीत था शायद यह अंतिम बार मातृ मुख का दर्शन होना था जिसे सेनेटाइज किया हुआ ड्रेस पहना कर दर्शन कराया गया और मुखाग्नि देकर चिता को आग लगाया गया।

   केवल सौरव और उसके पापा तालाब की घाट पर बैठे एक दूसरे को निहार रहे थे जब किसी चिता को आग लगाई जाती थी तो पूरे परिवार के साथ बड़ी संख्या में लोग शुद्धि के लिए तालाब को नहाने आते थे लेकिन आज सिर्फ पिता और पुत्र, नियति का यह कैसा विधान है चाहकर भी रो नहीं सकते न एक दूसरे को मना सकते हैं अनिमेष केवल निहार सकते हैं। दोनों के घर में सौरव का इंतजार कर रही हैं लेकिन हालात अलग हैं, परिवार का कोई भी सदस्य गली से गुजरता कोई मुंह छुपा लेता तू कोई अनदेखा कर देता समय का यह चाल देख कर सौरव अचंभित था मानो एकाएक पूरी दुनिया लुट गई हो। प्रत्यक्ष मिलने कोई आ नहीं सकता लेकिन केवल सहानुभूति भरी ज्ञान की बातें सभी सुना सकते हैं जबकि ऐसी परिस्थिति में लोगों के साथ देने , उन्हें संबल प्रदान करने की आवश्यकता होती है जो आज नदारद थी।

   आज 10 मई 2022 का दिन है पुष्पा चाची के पुष्पित व्यक्तित्व के एक वर्षीय पुण्यतिथि पर आज नौदिवसीय भागवत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है, कोरोना अब तक मेरा नहीं पर कहीं दुबका बैठा है। दूर-दूर से बच्चे बूढ़े महिलाएं और युवा अपनी-अपनी सहभागिता प्रत्येक दिन पूरी ऊर्जा के साथ दे रहे हैं सबकी धार्मिकता देखते ही बनती है। रोज भंडारे का आयोजन किया जाता है। राधे कृष्ण राधे कृष्ण के गीत पर सब झूमते हैं। श्री कृष्ण के अनेक लीलाओं का मंचन किया जाता है। सब खुश हैं गीत संगीत में मग्न हैं लेकिन सौरव की नजरें अब भी किसी को ढूॅंढ रही है। सहसा हॅंसते-हॅंसते उसकी निगाहें सामने फूलों से सजी एक प्रतिमा पर टिक जाती हैं और आंखों से अश्रु बहने लगते हैं। फिर सबको देख वह भी मुस्कुराने लगता है।

    यह दृष्टांत केवल 1 सौरव की नहीं है अपितु इस महामारी में प्रत्येक घर से कोई न कोई सौरव व्यथित रहा है। मृत्यु का यह खौफनाक मंजर मानवता को झकझोर कर रख दिया और यह सोचने को मजबूर कर दिया कि दशकों पहले जब आधुनिकता व वैज्ञानिकता उच्च स्तर की न रही हो तो उस समय के लोग कैसे महामारी से लड़ते होंगे। खैर इस महामारी ने बहुत कुछ ‌छीना परंतु यह जरूर सिखाया की जीवन की सबसे बड़ी पूॅंजी केवल पैसा नहीं हो सकता सुख-सुविधाओं को भोगने के लिए स्वास्थ्य का भी होना आवश्यक है और सामंजस्यता बनाते हुए प्रकृति को सुरक्षित-सुदृढ़ करने का‌ प्रयास करना चाहिए। साथ ही समय क्षणभंगुर है इसके लिए वर्तमान में अधिक से अधिक शुभ कर्म करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि यही हमारे व्यक्तित्व की पूॅंजी है जिससे हमारे चरित्र का निर्माण होता है।


वास्तविकता पर आधारित स्वरचित सृजन



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