मैं बेतवा. मेरा अस्तित्व खतरे में
मैं बेतवा. मेरा अस्तित्व खतरे में
मैं बेतवा नदी हूं। पौराणिक ग्रंथों में मेरा नाम बेत्रवती के रूप में दर्ज है। मैं मध्य प्रदेश में रायसेन ज़िले के कुम्हारागाँव से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में आगे बढ़कर भोपाल, विदिशा, झाँसी, ललितपुर आदि ज़िलों से होकर गुजरती हूं। मानवीय करतूतों ने मेरे आंचल को भी प्रदूषित कर दिया है। अगर मानवीय मनमानियों पर जल्द अंकुश न लगाया गया तो मेरा अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। हर साल पंाच जून को पर्यावरण दिवस पर राजनेता, अधिकारी और विभिन्न क्षेत्रों के लोग पर्यावरण की रक्षा के संकल्प बुलंद करते हैं। वे जगह जगह पौधे रोपने समेत अनेक किस्म की औपचारिकताएं निभाते हैं लेकिन मेरी दयनीय दशा की ओर उनका शायद ही ध्यान जाता है।
मेरी पहचान यमुना की एक सहायक नदी के रूप में है। मेरी कुल लम्बाई 480 किलोमीटर है। मैं बुंदेलखंड क्षेत्र की सबसे लंबी नदी हूं। सांची और विदिशा जैसे प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर मेरे ही तट पर स्थित हैं। बीना नदी मेरी सहायक एक प्रमुख उपनदी है। मेरी सहायक नदी बीना और धसान दाहिनी ओर से और बायीं ओर से सिंध मुझमें आकर मिलती हैं। सिंध गुना जिले को दो समान भागों में बाँटती हुई आगे बहती है। मेरी सहायक नदी बीना सागर जिले की पश्चिमी सीमा के पास राहतगढ़ कस्बे के समीप भालकुंड नामक 38 मीटर गहरा जलप्रपात बनाती है। गुना के बाद मेरी दिशा उत्तर से उत्तर-पूर्व हो जाती है। मैं मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती हुई माताटीला बांध के नीचे झरर घाट तक बहती हूं। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर झाँसी में मैं करीब 17 किलोमीटर तक प्रवाहमान रहती हूं। बुंदेलखंड में मेरी मुख्य सहायक नदियाँ जामनी और धसान हैं। महाभारत में मेरे नाम का उल्लेख चर्मणवती नदी के साथ किया गया है। चर्मणवती को अब चंबल नदी कहा जाता है। मेरेे ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं, किंतु झाँसी के निकट मेरी जलधारा काँप के मैदान में धीमे-धीमे बहती है। यद्यपि में बुंदेलखंड की सबसे लंबी नदी हूं पर लोगों के जीवन को अहम दिशा देने में हर पल संलग्न हूं फिर भी अब क्षेत्र के लोगों को मेरी ंदशा और दिशा को लेकर कतई गंभीर नहीं हैं। मैं उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के निकट यमुना नदी में मिल जाती हूं। मेरे किनारे सांची और विदिशा नामक प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर स्थित हैं।
भगवान रामराजा की नगरी ओरछा मेरे तट पर ही बसी है। यह नगरी हालांकि बहुत छोटी है लेकिन अपनी वास्तुकला के लिए जग प्रसिद्ध है। तमाम त्यौहारों और पर्वों पर लोग ओरछा स्थित मेरे तट पर जुटते हैं। ओरछा बुंदेली शासकों के वैभव का प्रमुख केेंद्र रही है। यहाँ जहाँगीर महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, बुंदेलकालीन छतरियां, तुंगारण्य, कवि केशव का निवास स्थान, चंद्रशेखर आजाद गुफा, राय प्रवीण का महल, शीश महल, दीवाने आम, पालकी महल, छारद्वारी एवं बजरिया के हनुमान मंदिर आदि अन्य स्थान देखने योग्य हैं। ओरछा में जहाँगीर महल मुख्य आकर्षण का केंद्र है। इसे जहाँगीर ने अपने विश्राम के लिए बनवाया था। यह महल मेरे मनोरम तट पर ही स्थित है।
मेरी जलधारा को सबसे पहले ललितपुर जिले में राजघाट बांध में रोका जाता है। राजघाट बांध उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में बना है। यह मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों की सीमा पर स्थित है। यह बांध मध्य प्रदेश के चंदेरी से 14 किमी और उत्तर प्रदेश के ललितपुर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजघाट बांध के पास हाइड्रो पावर प्लांट स्थापित है। वहां पर बिजली पैदा किया जाता है। बांध के चारों ओर खूबसूरत जंगल है। इस बांध की बिजली और सिचांई के पानी का बंटवारा दोनों राज्यों के बीच में होता है। इस बांध की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सन् 1971 में रखी थी। राजघाट बांध का जलभराव क्षेत्र 17000 वर्ग किलोमीटर है। इस बांध से तीन नहरें निकलती हैं। इनमें से दो उत्तर प्रदेश को पानी की आपूर्ति करती हैं, जबकि एक नहर मध्य प्रदेश को पानी की आपूर्ति करती है। बरसात के समय जब राजघाट बांध में पानी लबालब भर जाता है तो इसके गेट खोल दिए जाते हैं। इस बांध से छूटा पानी माताटीला में बने बांध को भरता है। माताटीला बांध क्षेत्र प्रवासी जल पक्षियों के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। यह बांध मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों के लोगों के जीवन को सुगम बनाने में अहम भूूमिका अदा कर रहा है। मध्य प्रदेश में नदी जोड़ो परियोजना के एक भाग के रूप में केन नदी से मुझको जोड़ा जा रहा है।
मेरी पीड़ा यह है कि उत्तर के हमीरपुर जिले में मेरी जलधार सूख गई है। कई किलोमीटर के दायरे में जगह-जगह मेरे स्वरूप में तब्दीली आ गई है। मेरे आंचल में स्थापित लिफ्ट कैनाल का संचालन भी ठप हो गया है। इसके लिए धनार्जन के लोभ में अंधे हो चुके कुछ स्वार्थी लोगों की करतूत जिम्मेदार है। धनलोलुप लोगों का समूह पोकलैण्ड जैसी बड़ी बड़ी मशीनों से दिन रात मेरी छाती को चीथकर मोरंग का खनन कर कर रहा है। किसी जमाने में गर्मी के दिनों में लोग नाव पर बैठकर मेरी लहरों का लुत्फ लिया करते थे लेकिन अब मेरे आंचल में जलराशि की इतनी कमी आ गई है कि लोग पैदल ही मेरे आगोश वाले क्षेत्र को पार कर लेते हैं। डिग्गी रमेड़ी के पास मेरे किनारे पर कई दशक पहले लगाया गया लिफ्ट कैनाल अब ठप हो गया है। सहजना गांव के पास का लिफ्ट कैनाल भी जलराशि कम होने के कारण प्रभावित हुआ है। 20 किमी के दायरे में जगह-जगह मेरी काया अति प्रदूषित होकर नाले में तब्दील हो गई है। यदि मानवीय मनमानियों पर रोक नहीं लगाई गई तो अगले कुछ वर्षों में मेरा अस्तित्व ही विलुप्त हो जाएगा। आम लोग और किसान इस चिंता से घिरे हैं लेकिन तंत्र के कानों तक उनकी आवाज नहीं पहुंच पा रही है।
बड़ी विडंबना यह है कि हमीरपुर जिले में मोरंग निकासी की खातिर दर्जनों खदानें दिन रात संचालित हो रही हैं। इन खदानों में बड़ी बड़ी मशीनों से मोरंग खनन का खेल चल रहा है। झांसी जिले में भी कमोबेश यही हाल है। मानवीय मनमानियों से मेरी जलधारा अनेक स्थानों पर विलुप्त हो गई है। कई किलोमीटर के दायरे में जगह-जगह मेरा स्वरूप नाले सा दिखता है। लेकिन प्रशासनिक तंत्र और खनन माफियाओं को मेरी दयनीय दशा और दिशा की तनिक भी फिक्र नजर नहीं आती है।
