मैं बेतवा हूं( भाग दो.. ) मुझे बांध तो लिया पर देखभाल में उचित सतर्कता नहीं
मैं बेतवा हूं( भाग दो.. ) मुझे बांध तो लिया पर देखभाल में उचित सतर्कता नहीं
राजघाट बांध
मेरी ही धार को रोककर राजघाट बाँध बनाया गया है। इसकी आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सन 1971 ई. में रखी थी। इस बांध का जलग्रहण क्षेत्र करीब 17000 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ निर्मित रेत की बैरियर की लंबाई 11 किलोमीटर से अधिक है, जो एशिया में किसी भी बांध में सबसे लंबा है। सीमेंट का यह बांध 600 मीटर लंबा और 73.5 मीटर ऊँचा है।
माताटीला बांध
दूसरा प्रमुख बांध माताटीला मंे बना है। यह बांध उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित है। यह ललितपुर से करीब 55 किलोमीटर की दूरी और झांसी से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है। देवगढ़ से यह बांध 93 किमी दूर स्थित है। माताटीला बांध मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की प्रमुख जल परियोजनाओं में से एक है। यह बांध 1958 में मेरी जलधार पर बनाया गया था। इसमें 23 गेट हैं। यहां पर पहाड़ी की चोटी पर एक मंदिर है, जो माता दुर्गा जी का मंदिर है। इस मंदिर के नाम पर ही इस बांध का नाम माताटीला डैम रखा गया है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में सभी मनोकामना पूरी होती हैं। यहां पर हाइड्रो पावर संयंत्र भी स्थापित किया गया है, जिससे बिजली का उत्पादन किया जाता है। इस बांध के पास सिंचाई विभाग का विश्राम कक्ष भी स्थित है।
पारीछा बांध
झांसी से महज 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है पारीछा बांध। मेरे तट पर बना पारीछा बांध लगभग सौ साल से अधिक पुराना है। बारिश के मौसम में नदी का जल स्तर बढ़ते ही यहां पर सैलानियों का जमावड़ा रहता है।
सुकवां ढुकवां बांध
जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर स्थित सुकवां ढुकवां बांध को वर्ष 1909 में अंग्रेजी शासन काल में बनाया गया था। इस बांध के बीच के बीच में सुरंग होने के कारण यह विश्व धरोहर में शामिल होने के लिए भी चयनित किया गया है। यह बांध हमेशा से ही सैलानियों की पहली पसंद रहा है। इसके चलते हर समय यहां पर सैलानियों की भीड़ जमा रहती है।
सिंचाई विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक मेरी जलधारा के बहाव का सबसे पहली बार वर्ष 1855 में सर्वे आरंभ हुआ। इसके बाद सन 1857 की गदर के कारण मामला ठंडा पड़ गया। आगे के कुछ वर्ष बाद ही झांसी के पारीछा गांव में सबसे पहला बांध मेरे तट पर तैयार हुआ। इसके बाद पानी की जरूरत पूरी न होने पर पारीछा से करीब 112 मील दूर वर्ष 1901 में सुकवां-ढुकवां डैम तैयार किया गया।
सिंचाई विभाग के अभियंताओं की राय के मुताबिक पारीछा एवं सुकवां ढुकवां डैम दोनों अपनी उम्र पूरी कर चुके। इनका निर्माण चूना एवं सुर्खी के माध्यम से कराया गया था। यह दोनों बांध भले आज तकनीकी के मामले में बेजोड़ हों लेकिन, कंक्रीट से बनी संरचनाओं की उम्र भी अधिकतम सौ वर्ष ही मानी जाती है। अभियंताओं का कहना है पानी रोकने वाले ऐसे ढांचे के कभी भी टूट जाने का खतरा रहता है।
अब हम बताते हैं अपनी बहने की दिशा। मध्य प्रदेश के भोपाल से आने पर मेरी जलधार सबसे पहले ललितपुर क्षेत्र में स्थित राजघाट बांध में रोकी जाती है। इससे छूटा पानी माताटीला बांध को भरता है। माताटीला बांध से छोड़ा गया पानी सुकवां ढुकवां और पारीछा बांध से होता हुआ उरई जालौन, हमीरपुर तक नहर के जरिये सिंचाई के लिए पहुंचता है।
माताटीला बांध के पानी से ही झांसी महानगर व बबीना से झांसी मार्ग पर स्थित क्षेत्रों को जलापूर्ति होती है। अगर पूरे साल सिंचाई व पेयजल के लिए पर्याप्त पानी चाहिए तो राजघाट और माताटीला बांध का भरना जरूरी है। इन बांधों को भरने के लिए मध्य प्रदेश में बारिश होना जरूरी है।
समुचित रखरखाव और देखभाल न होने से पिछले कई दशकों से बांधों के अंदर लगातार सिल्ट जमा होने से उनकी क्षमता करीब 40 फीसदी से ज्यादा घट गई है। सिल्ट के लगातार जमने से बांधों के जलाशयों की क्षमता भी लगातार घटती जा रही है। बांधों से सिल्ट को निकालने का काम अब आसान नहीं रहा है। सिल्ट को निस्तारित करना ही सबसे अधिक खर्चीला होगा। सिंचाई विभाग के अभियंताओं का कहना है बांधों की सफाई में जितनी रकम खर्च होगी, उससे नए बांध बनाया जा सकते हैं।
आप सबकी जानकारी के लिए सभी बांधों की जलभरण क्षमता भी बता देते हैं।
बांध का नाम जलभरण क्षमता मीटर में
राजघाट बांध 370.90
माताटीला बांध 308.46
सुकवां ढुकवां बांध 273.71
पारीछा बांध 194.65
