मैं और मेरा बूरा वक्त
मैं और मेरा बूरा वक्त
मै नही जानती थी जिंदगी मेरी कभी करवट लेगी पर ऐसा हुआ, 2011-2012 की बात है-
हर किसी की तरह मैंने भी अपने भविष्य को लेकर कुछ सपने देखे पर पता नहीं था की किस्मत कुछ और ही चाहती थी।
जब मै दसवी में थी हर किसी की तरह मैंने भी पढ़ाई की थी, सोचा था पास हो जाऊँगी पर 26 मई 2012 में जब रिजलट लगा तब पेरौं तले ज़मीन ही नहीं रही क्योंकि रिजलट के हिसाब से मैं गणित में फेल हो गई थी। फिर कुछ दिनों के बाद मै स्कूल गई तब एक बात पक्की हो गई गणित में फेल हूँ, बाद में मुझे बताया गया की जुलाई में आप पेपर दे सकती हैं। वापस लगा अब सब कुछ ठीक हो जाएगा परंतु इस पेपर का रिजलट जब लगा तब भी इतिहास दोहराया गया। ठीक वैसे ही जैसे वर्ल्ड कप के दौरान हुआ था। रिजलट में फेल, चूलू भर पानी में डूब मरने का मन कर रहा था।
बाद में स्कूल जाने के बाद कहा गया कि इस बार आपको सारे विषयों का पेपर देना पडेगा, वो भी मार्च में। मुझे तो कुछ भी समझ में नही आ रहा था। वो साल 2012 मैंने घर में निकाला। जैसे सभी कॉलेज की लाइफ में थे, यहाँ पर मैं मेरी दसवीं में उलझी हुई थी।
खाली दिमाग शैतान का घर, ठीक वैसी मेरी हालत थी क्योंकि जब मुझे अपने भविष्य के बारे में सोचना था, कुछ फैसले लेने थे, मैंने खुद को घर के काम व्यस्त रखना शुरू कर दिया था। अंदर से टूट चूकी थी। पूरा साल जैसे-तैसे निकल गया, फिर सोचा की बाहर से दसवीं की परीक्षा दी। पूछताछ करने के बाद पता चला कि के द्वारे मैं परीक्षा दे सकती हूँ। 2013 मैंने वहाँ पर एडमिशन ले लिया जून में वहाँ की पढ़ाई शुरु हुई बाकी की तूलना से पूरे अलग विषय अलग लोग, अलग सोच पर जैसे-तैसे मैंने खुद को उस माहौल में ढालने की पूरी कोशिश की और मैं ढल गई।
कुछ वक्त के बाद, आने जाने में जरा तकलीफ थी। दोपहर को था 3.00-5.30 घर जाते जाते शाम हो जाती थी। घर से जरा दूर था, स्कूल दो बस बदल कर जाना पढता था पर साल भर मैंने किया और अप्रैल में पेपर दिया, सभी पेपर ठीक ठाक लिखे। रिजलट की तारीख आ गई। जून में था 4.00 बजे, रिजलट देखते वक्त हाथ मेरे काँप रहे थे। शायद अंदर ही अंदर डर था। होगा इस बार पर भगवान ने मेरी सुन ली। मैं पास हो गई, बहुत टेंशन था पर मन शांत हा गया।
फिर कॉलेज की लाइफ देखने के लिए 11 और 12 के लिए नजदीक ही कॉलेज चुना। बगैर ज्यादा तकलीफ के एडमिशन मिल गया। कड़ी मेहनत और लगन से मैंने बारहवीं अच्छे अंको से पास हो गई 64%।
मै अंदर से बहुत खुश थी, जिंदगी ने बहुत छोटी उम्र में जिंदगी क्या होती है ये बता दिया पर कहीं ना कहीं ये भी सच है कि गणित को लेकर मेरे मन में जो डर बैठ गया वो आज तक नहीं निकला. भले ही कितना भी समझा दो पर कुछ फर्क पडे तब ना।
एक बात जरूर पता चल गई कि, असफ़लता ही सफलता की कुंजी है। जब तक पैरों में डेस ना लगे तब तक जिंदगी क्या है ये भी पता नहीं चलता...।।