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रंजना उपाध्याय

Drama

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रंजना उपाध्याय

Drama

मैं आपका नया पड़ोसी हूँ

मैं आपका नया पड़ोसी हूँ

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मैं अपने दरवाजे की डोरवेल बजा ही रहा था। कि पीछे से आवाज आई।

भाई साहब....। भाई साहब.......?

हमने ध्यान नहीं दिया। इसलिए कि मेरे बगल का फ्लैट ख़ाली था। अचानक फिर वही आवाज आई।

अरे भई आपको ही बुला रहा हूँ। मैं आपका नया पड़ोसी हूँ। मेरी यूपी भवन में नौकरी लगी है।

अच्छा जी आपका क्या नाम है। रामचेत मिश्रा ऑफिस का नाम है। मैने अच्छा बोलकर अपना भी परिचय दे दिया। मैं भी यूपी भवन में कार्यरत हूँ।

रामचेत जी को बहुत अच्छा लगा। और बात करने की कोशिश करने लगे तो हमने कहा आइये न अंदर बैठकर बात करते हैं। साथ मे चाय भी पियेंगे।

हम और रामचेत जी घर के अंदर आये तो चाय की चुस्की लिए साथ मे और बहुत सारी बात भी हुई। ओ भी ठहरे प्रतापगढ़ के मेरा ननिहाल प्रतापगढ़ में था।

बात चीत में कहाँ से कहाँ पहुच गए। चलो हमने अपनी मिसेज से कहा कि भई आज तो इनका भी भोजन बना देना।

ख़ैर खाना पीना हुआ रामचेत जी अपने घर गए। जाते जाते पूछते हुए गए कि आप कैसे जाते हैं बस से या अपनी बाईक से तो हमने जवाब दे दिया। भाई बस आती है सरकारी तो उसी से जाते हैं।

रामचेत जी ने बोला तब तो ठीक है। अभी हम पहली बार दिल्ली आए हैं। तो मेरे लिए मुश्किल ही होता। अब तो आपका साथ भी मिल गया। अब मुझे डरने की कोई बात नहीं है।

ठहरे आप के ननिहाल के तो अब तो एक प्रकार से रिश्ता भी निकल गया।

अब रामचेत जी को बुलाना नहीं पड़ता था। समय से पहले ही आकर बैठ जाते थे। तो चाय नाश्ता पूछना फर्ज बनता था।

कभी नाश्ता का मन न होता तो भी चाय अलग से माग लेते थे। तो हमारी पत्नी भनभनाती हुई .....जाती और अच्छी सी चाय बनाकर दे जाती थी।

जितनी बार चुस्की लेते थे उतनी बार हमारी मिसेज की तारीफ करते थे। वाह बहुत अच्छी चाय है। गजब का स्वाद है।

बहू तो बहुत ही सुशील है। ऐसी बहू ईश्वर सबको दे। यही सब करके खाते पीते थे।

जब बस नहीं आती तो मैं बाईक निकलता तो तब तक अरे भईया हमे भी बैठाए चलो। हम कहाँ तक भटकेंगे।

अब रोज रोज के इस तरह की हरकत से सब के सब परेशान हो गए। एक दिन मेरी पत्नी मंजू ने बोला कि आज आएंगे तो बोल दीजियेगा की मंजू की तबियत ठीक नहीं है।

बेटे के लिए खाना बाहर से ही मंगवा लिया और खुद ऑफिस जाकर वही खाऊंगा। तो शायद इनकी आदत सुधर जाए।

हमने ये तो नहीं बोला लेकिन ये बोला कि भई कितने दिन तक इस तरह काटोगे। घर से अपनी पत्नी बच्चों को ले आइये। आप अकेले बोर होते हैं।

रामचेत जी ने बोला सबको ले आऊंगा तो खर्च बढ़ जाएगा। अभी तो अकेले ही हूँ। जिधर निकल जाऊँ उधर ही शाम दिन निकल जाता है। आपके यहाँ के नाश्ते से रात का खाना ऑफिस से ही पैक करके उठा लाता हूँ। इस तरह से मेरा काम चल जाता है।

इस तरह की आदत से सच मे सब परेशान हो गए। अचानक गाँव से फोन आ गया। कि मेरी माँ के लिये की उनकी तबियत ज्यादा खराब है। तो मैंने बोल दिया रामचेत जी अब अपना ख्याल रखियेगा।

हम सब जा रहे हैं घर माँ की तबियत ठीक नहीं है। रामचेत जी ने तुरन्त बोला कहो तो हम भी चल ले बुआ जी से मुलाकात भी हो जाएगी।

सबने मना किया कि अभी आपकी नौकरी लगी है। तो आप अभी से छुट्टी लेंगे तो आपकी नौकरी भी नहीं बचेगी।

इतना सुनते ही रामचेत डर गए और 2 -4दिन गुजारे। तब तक एक लोग उनके गाँव के ही मिल गए। उनके पास चले गए। रामचेत जी हमेशा के लिए वहां से चले गए।

जब मैं एक हप्ते बाद परिवार सहित अशोक नगर पहुँचा तो रामचेत जी नहीं थे। हमने बहुत कोशिश की लेकिन कोई पता नहीं चला। फिर हमने ऑफिस में फोन किया तो पता चला कि हाँ ऑफिस तो रोज आते हैं।

ऑफिस में मुलाकात हुई तो कारण पूछा तो बताने लगे तुम लोग चले गए। मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए गाँव का ही एक लड़का मिल गया। तो सोचा इसी के साथ रह लेता हूँ।

मैंने अपने मन मे बोला चलो अच्छा हुआ। तुमसे पीछा छूटा। घर फोन करके पत्नी को बताया कि यहाँ सब ठीक है रामचेत जी अपने गाँव के किसी लड़के के साथ रह रहे हैं। पत्नी के भी दिल को सुकून आया। उसके भी जुबान से यही शब्द निकला की चलो किसी तरह पीछा छूटा।

तो दोस्तों आज की कहानी कैसी लगी। पड़ोसी हो या कोई भी हो इतना भी न आना जाना कर दें कि अगला इंसान पक जाए। हर रिश्ते में एक उचित दूरी बनाकर रखना होता है। चाहें कोई भी रिश्ता हो।


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