माटी का प्यार
माटी का प्यार
भोलानाथ जी एक छोटे से गांव में रहते हैं। माटी में रचा बसा सादगी भरा जीवन है। भोलानाथ किसान हैं। खेती करने का काम पिता से उन्हें विरासत में मिला है। भोलानाथ अपने जीवन से बेहद संतुष्ट हैं।
शिक्षा के महत्व को समझते हुए भोलानाथ जी ने अपने इकलौते बेटे को शहर पढने भेज दिया।अपने खेत में दिन रात मेहनत कर पाई पाई जोड़ कर पढाई का खर्च संभाला, पढाई करते करते बेटा शहर का हो गया, नौकरी मिलते ही ,अपनी पसंद की लड़की से शादी करके शहर में ही बस गया। यदा कदा वार त्योहार पर भोलानाथ जी के बुलाने पर ही बेटा गांव आता।
पत्नी के स्वर्ग सिधारने के बाद भोलानाथ जी बिल्कुल अकेले हो गये तबियत भी नरमगरम रहने लगी।
बेटे को खबर हुई वह भोलानाथ को शहर लिवा ले गया। तबियत ठीक होते ही भोलानाथ वापिस गांव चले आये।उनका माटी प्रेम उन्हें वापस गांव खींच लाया। वे अपने खेत में श्रम किए बिना नहीं रह पाते थे।
इधर गांव वाले भोलानाथ को कहते "भोला बुढापे में इतनी तकलीफ क्यों उठाते हो, शहर जाकर बेटे के साथ रहो", रिश्तेदार बेटे को कहते "बेटा पिता को अकेला मत छोडो, शहर ले जाओ"।।
एक दिन बेटा भोलानाथ जी के लाख मना करने पर भी जबरन उन्हें शहर लिवा लाया।भोलानाथ जी आदत से मजबूर थे,जब तक माटी में दो चार घंटे खुरपी से श्रम नहीं कर लेते उन्हें चैन नहीं था, माटी से उनका अनौखा लगाव था ।उन्होंने अपने माटी प्रेम को जीवित रखने के लिए बेटे के धर आंगन में, गमलों में सुंदर सुंदर फूलों के पौधे लगा दिए।
इससे भी संतोष नहीं मिला तो कोलोनी के सामने तथा आसपास खाली जमीन में पेड़ पौधे लगा दिये और उनकी देखभाल करने लगे।कोलोनी के लोगों ने इस नेक काम के लिए उनकी खूब सराहना की।
एक दिन बेटा उन्हें पास ही के पार्क में घूमने ले गया।पार्क की दशा देखकर भोलानाथ को लगा कि वह अपनी सेवा देकर पार्क को खूबसूरत बना सकते हैं। अपनी इच्छा अपने बेटे को बताई।बेटे ने सोचा पिताजी को खुशी मिलती है तो भले अपनी सेवाएं दें।
भोलानाथ हरदिन पार्क में श्रमदान करते, घासफूस निकाल कर उन्होंने क्यारियां बनाई और फूलों के पौधे लगा दिये।पुराने सूखे पेड़ पौधों को निकाल कर उनकी जगह नये पेड़ पौधे लगा दिये।
कुछ ही दिनों में पार्क की सूरत ही बदल गई।पार्क रंग बिरंगे फूलों से सुशोभित होने लगा ।पार्क में आने वाले हर व्यक्ति ने इस खूबसूरती को नोटिस किया और माली की सराहना की।
एक दिन म्युनिसिपल कमिश्नर ने शहर के सभी पार्कों का दौरा किया।इस पार्क की हरियाली और रखरखाव को देख वे बहुत खुश हुए।उन्होंने पार्क के माली को शाबाशी देने दफ्तर बुला भेजा।
सहायक ने बताया कि साहब यहां के माली की जगह तो छ महीने से खाली पड़ी है। जिसे ये जिम्मेदारी सोंपी थी वह भी छुट्टी पर चल रहा है। तो फिर कौन है जो अपनी सेवाएं दे रहा है।
..अगले दिन कमिश्नर पार्क में घूमने आते हैं, भोलानाथ को पार्क में श्रम करते हुए देख उसके पास जाकर पूछते हैं "क्या आप यहां के माली हैं"?
" नहीं साहब मेरा नाम भोलानाथ है, लेकिन मैं यहां का माली नहीं हूं।मैं तो एक ग किसान हूँ। गांव से अपने बेटे के साथ शहर रहने आया हूं। पास ही कोलोनी में रहता हूँ। "
एक दिन बेटे के साथ पार्क आया था, पार्क की हालत खराब थी ,कई बार आया लेकिन कोई माली दिखाई नहीं दिया, मुझे श्रम बिना रहा नहीं जाता।मैं अपनी सेवाएं देने चला आता हूं ।"
".....आईये आप मेरे साथ, गाड़ी में बैठिये आप के घर चलते हैं" कमिश्नर बोले। उन्होंने अपना परिचय भोलानाथ को दे दिया। भोलानाथ गदगद थे उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। कोलोनी के आगे म्युनिसिपल कमिश्नर की गाड़ी खड़ी देख लोग चकित थे। आज कोलोनी में म्युनिसिपल कमिश्नर क्यों आये हैं।
"आप अपने बेटे को बुलाकर लाईये मैं यहीं इंतजार करता हूँ"कमिश्नर ने भोलानाथ से कहा।
भोलानाथ अपने बेटे को बुला कर लाते हैं।बातचीत होती है, कमिश्नर उन्हें व बेटे को अपने आफिस में आने का कह कर चले जाते हैं।
पंद्रह अगस्त के दिन भोलानाथ को निस्वार्थ बिना पारिश्रमिक पार्क में श्रमदान करने के लिए श्रेष्ठ वरिष्ठ नागरिक का प्रशंसापत्र दिया जाता है।तथा उसी पार्क में अपनी सेवाएं देने के लिए अस्थायी तौर पर नियुक्त कर दिया जाता है।
