"मापदंड"
"मापदंड"
नामी कम्पनी में उच्च-पदस्थ अजय के मातहत दफ़्तर के काम-काज हेतु कम्पनी की ओर से एक सेक्रेटरी नियुक्त की गई, सुरभि।दफ़्तर का समय नौ से पाँच बजे का है, किन्तु वर्कलोड बढ़ते काम का बोझ एवं बॉस के बढ़ते दबाव के कारण अजय को दफ़्तर से निकलने में रात के आठ तो बज ही जाते है।कभी-कभी नौ और दस भी। नौ और दस बजे जब वह दफ़्तर से निकलते है तो सेक्रेटरी सुरभि को उसके घर छोड़ देते है। पत्नी रश्मि ने जानते हुए भी इस बात पर कभी आपत्ति नहीं जताई, कारण वह जानती है, घर, दफ़्तर की जिम्मेदारियों में ताल-मेल बिठाने में एक औरत को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वो भी नामी कंपनी के दफ्तर के उच्च पदस्थ अधिकारी के मातहत सेक्रेटरी का काम करती है। बॉस के सहयोग हेतु महत्वपूर्ण कामों को निपटाते कई बार उसे भी देर हो जाती है।
आज दफ्तर के महत्वपूर्ण काम करते रात के दस बज गए। कारण दूसरे दिन सुबह कुछ डेलीगेट्स आने वाले थे। सारे पेपर्स, फाइल्स एवं प्रेजेंटेशन अपडेट रख के थे। काम खत्म होते ही वह बाहर निकल टैक्सी का इंतेज़ार करने लगी, तभी बॉस ने अपनी कार रोक उससे कहा, "इतनी रात गए बस पता नहीं कब मिलेगी और टैक्सी से जाना मुझे सेफ़ नहीं लग रहा। देर भी काफ़ी हो चुकी, चलो मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूं। रश्मि ने समय की नज़ाक़त को ध्यान में रख बॉस के प्रस्ताव को मान लिया। वह गाड़ी में बैठ घर के सामने गाड़ी रुकते ही उसने बॉस से घर चल पति अजय से मिलने का आग्रह किया। किन्तु बॉस ने फिर कभी आने का कह गाड़ी आगे बढ़ा दी। रश्मि गेट के पास पहुंची तो उसकी प्रतीक्षा में बेचैन अजय ने गेट खोलते ही प्रवचन शुरू कर दिया, यह क्या? इतनी रात गए तुम बॉस के साथ उसकी गाड़ी में घर क्यों आई? टैक्सी ले लेती, दफ्तर के लोगों ने देखा होगा। यहां कंपनी के लोगों ने तथा आस पड़ोस के लोगों ने देखा होगा? क्या सोच रहे होंगे वे लोग? सारे, सवालों के जवाब होते हुए भी रश्मि हतप्रभ सी अजय का मुँह ताकती रह गई।