Madhavi Sharma

Inspirational

4.5  

Madhavi Sharma

Inspirational

मानवता [3जून]

मानवता [3जून]

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मेरी प्यारी संगिनी

आज काम कुछ जल्दी ख़त्म हो गया, इसीलिए तुमसे मिलने जल्दी चली आई, अभी दो ही दिन हुए हैं, तुमसे मिले, पर ऐसा लगता है, जैसे हम बरसों के संगी हों।


जानती हो संगिनी, हम मानव होकर भी मानवता को भूल बैठे हैं, छोटी-छोटी बातों को इतना अधिक तूल देते हैं, कि इस चक्कर में कुछ अमानवीय गलतियां, हमसे हो जाती है, अभी इस लॉकडाउन में क्योंकि बाजार हाट सब बंद है, हमारी सोसाइटी में एक सब्जी वाला भैया ठेला लेकर आता है, बिल्कुल ताज़े फल और ताज़ी सब्ज़ियां,,, 


उसने अपने ठेले में एक घंटी लगा रखी है, जिसे टनटनाता हुआ, वह पूरी कॉलोनी के चक्कर लगाता है, हम सभी अपनी ज़रूरत के हिसाब से, उससे फल सब्जियां ले लेते हैं, कल जानती हो क्या हुआ संगिनी, एक आंटी जी ने, एक-एक फल और सब्ज़ी के मोलभाव करने शुरू किए,,,,


इस चक्कर में हम सभी को देर हो रही थी, सब्जी वाला भैया भी परेशान हो रहा था, क्योंकि इतनी भयंकर गर्मी में वह भी चाहता था, कि जल्दी से उसका सारा सामान बिक जाए, आंटी जी को इसकी जरा भी परवाह नहीं थी, वह तो एक एक, दो दो रुपए छुड़ाने के चक्कर में, बहस किए जा रही थीं,,,


आख़िर में मुझे और मेरी एक सहेली को बीच में पड़ना पड़ा, हमने कहा, पहले हम लोग सब्जियां और फल ले लेते हैं, फिर आप इन से मोलभाव कर लीजिएगा, ऐसा कहते ही, जितनी महिलाएं थीं, सभी ने अपनी ख़रदारी कर ली, अंत में फल सब्जियां बची ही नहीं, उस आंटी जी का मुँह देखने लायक था।


आज का "जीवन दर्शन" बड़ेे-बड़े मॉल्स और दुकानों में पॉलिथीन तक के पैसे लिए जाते हैं, हम वहाँ कुछ नहीं कहते, परंतु जो ग़रीब मेहनत करके, रोजी रोटी कमा रहा है, उससे हम मोलभाव करते हैं, क्या यह सही है,,,,


आज के लिए बस इतना ही, मिलती हूँ कल फिर से, "मेरी संगिनी",,,,,


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