मां
मां
फिर एक और ट्रांसफर। कविता मन ही मन सोच कर दुखी हो रही थी। अब तो यह हर साल की ही बात थी। कविता के पति रोहन एक सरकारी बैंक कर्मचारी थे और उनका ट्रांसफर बरेली हो गया था। हर साल इस तरह अपना आशियाना बदलना कविता को बहुत तकलीफ देता था। और इस बार बरेली।
रोहन बरेली में एक ठीक-ठाक मोहल्ले में मकान लेकर कविता और अपने बेटे सुमित को ले कर बरेली आ गए।
घर देखने में बहुत ही खूबसूरत था। छोटा सा आंगन एक बालकनी एकदम सपनों का घर सा। पर क्या यहां अच्छे पड़ोसी मिलेंगे ? कविता मन ही मन सोच कर परेशान थी। क्योंकि मुरादाबाद में तो उसकी बहुत ही सहेलियां थी आस पड़ोस की। जिनके साथ उसकी खूब जमती थी और जिन को छोड़कर आने का उसे बहुत दुख था।
कविता घर में प्रवेश कर साफ सफाई में लग गई।
तभी उसके घर पड़ोस में रहने वाली रशीदा ने देखा और अपने बेटे साहिल से पूछा कोई नए पड़ोसी आए हैं क्या?
"हां , अभी-अभी उनका सामान उतरा है शायद कुछ लोग रहने आए हैं।" साहिल खेलते-खेलते बोला।
रशीदा बेगम बहुत ही मिलनसार और अच्छे स्वभाव की महिला थी ।
जल्द ही कविता और रशीदा बेगम एक दूसरे से घुल मिल गए।
सुमित और साहिल भी अच्छे दोस्त बन गए थे दोनों एक साथ खेला करते। रशीदा बेगम कुछ भी बनाती तो वह उसके बेटे के लिए जरूर देती थी और कविता भी अगर कुछ बनाती तो उससे भी रशीदा बेगम को दिए बिना ना रहा जाता। और देखते ही देखते वह दोनों बहुत अच्छी सहेलियां बन गई या यूं कहें की बहने।
रशीदा बेगम अगर कहीं खरीदारी को जाती तो अपने बेटे को कविता के यहां छोड़ जाती कविता उसका पूरा ख्याल रखती अपने बेटे की तरह।
इसी तरह हंसते खेलते कविता के दिन बीत रहे थे कि वह दिन रशीदा और कविता के ऊपर कहर बनकर टूटा। कविता सुमित का इंतजार कर रही थी जो कि पास ही दुकान से कुछ सामान लेने गया था कि तभी उसे बाहर कुछ आवाजें सुनाई दी। बाहर निकल कर देखा तो वह दंग रह गयी। बाहर सैकड़ों की संख्या में भीड़ चली आ रही थी। जिनके हाथों में लाठी, डंडे और तलवारें थी। कविता यह दृश्य देख कर सिहर उठी उसने जल्दी से आ कर अंदर दरवाजा बंद कर लिया। शहर में दंगे की आग भड़क चुकी थी। सभी एक दूसरे की जान के प्यासे थे।
कविता ने झट से रोहन के पास फोन मिलाया। रोहन दरवाजे तक पहुंच चुका था और घर में घुसने ही वाला था कि भीड़ रशीदा बेगम के घर का दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रही थी। रोहन यह देख ना पाया और वह उनकी मदद के लिए आगे बढ़ा पर उन्मादी भीड़ किसी के कहे में ना थी और रोहन को लहूलुहान कर दिया और रोहन ने वहीं दम तोड़ दिया।
रशीदा बेगम में दरवाजा टूटता देख साहिल को अलमारी के पीछे छुपा दिया और खुद आगे के कमरे में छुप के बैठ गई। भीड़ दरवाजा तोड़कर अंदर दाखिल हुई और रशीदा बेगम को ढूंढ लिया और बेतहाशा पीटने लगी। रशीदा बेगम बेहोश हो गई उन्हें मरा जानकर भीड़ ने घर में खंगाला पर उसके बेटे को न पा सकी और वहां से चली गई। तभी पुलिस की गाड़ियों की सायरन की आवाजों से मोहल्ला गूंज उठा। पुलिस को आता देख सभी उन्मादी भागने लगे। पुलिस स्थिति संभालने में जुट गई।
पुलिस के आने की आहट पाकर कविता को थोड़ी तसल्ली हुई उसने अपनी खिड़की खोल कर बाहर देखा तो पुलिस ने चारों तरफ से मोहल्ले को घेर लिया था। उसकी नज़र जैसे ही रोहन पर पड़ी तो अपने पति को इस हालत में देखकर कविता बदहवास हो गई। तभी उसे सुमित की याद आई। सुमित, सुमित मेरा सुमित कहा है ?बाहर गया था वह चीखने लगी।
चारों तरफ था तो बस धुंए का गुबार और चीख-पुकार की आवाजें। वह दौड़कर रशीदा बेगम के घर गई।
तो बाहर वाले कमरे में रशीदा बेगम मरणासन्न हालत में पड़ी थी। सांसे शायद थम गई थी। पर उसे घर में कहीं सुबकने की आवाज आ रही थी उसमें चारों तरफ देखा तो अलमारी के पीछे साहिल पैरों में मुंह छुपा रोए जा रहा था। कविता उसे सीने से लगा कर जोर जोर से रोने लगी। आज कविता अपना सब कुछ खो चुकी थी। दंगे में मारे गए लोगों की लाशों में एक लाश उसके बेटे की भी थी।
कुछ ना बचा था उसके पास अब। वो पथरा सी गई थी। "चच्ची , चच्ची मेरी अम्मी कहां है? कहां है वह ? क्या वह मर गई? क्या वह भी अब्बू की तरह मुझे छोड़ कर चली गई?" साहिल पूछता रहा।
"मैं हूं ना तेरी अम्मी"। कविता ने अपनी आंखों से बहते हुए आंसुओं के साथ उसे गले लगा लिया। वह साहिल में सुमित को देखती। उसने समाज और रिश्तेदारों की परवाह न की और उसे अपना लिया। अब सिर्फ वह दोनों ही थे एक दूसरे का का सहारा कविता और उसका बेटा साहिल। आज एक ही छत के नीचे पूजा भी होती है और नमाज भी पढ़ी जाती है। मां तो आखिर मां ही होती है।