(2)माँ सच में थक जाती होंगी
(2)माँ सच में थक जाती होंगी
(2)
प्रिय पाठकों,
अब तक आपने पढ़ा,
कि....शिल्पा की भाभी उसकी मां को बहुत परेशान करती है और अब शिल्पा ने सोच लिया है कि वह भाभी और मां में मेल करा कर रहेगी।
दरअसल शिल्पा शादी के बाद यह तीसरी बार मायके आई थी, और हर बार अपनी माँ को पहले से कमजोर ही देखती जा रही थी। उल्टा उसने तो सोचा था कि, भैया की शादी के बाद माँ को थोड़ा आराम मिलेगा।
संजोग ऐसा हुआ था कि, शिल्पा की शादी के ठीक एक महीने बाद ही उसके भैया सुरेश की भी शादी हो गई थी। वैसे सुधा जी दोनों बच्चों की शादी कराकर एक तरह से खुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी। शिल्पा की शादी तो उसके पिताजी ही तय करके गए थे। हाँ, सुरेश ने अपनी पसंद की लड़की से शादी करने की ज़िद की थी जो उसीके ऑफिस में काम करती थी। एक ही शहर में होने की वज़ह से उनका मिलना जुलना ज़ब बाहर ज़्यादा होने लगा तब सुधा जी ने भी दोनों की शादी जल्दी कराना ही ठीक समझा। वैसे तो अंतिमा अच्छी थी पर घर का काम करने से बड़ा कतराती थी।
शिल्पा की सहेली शिविका ने ही उसे बताया था कि उसकी भाभी उसकी माँ से बहुत काम कराती हैँ और अक्सर सुधा जी बीमार रहती हैं। पर ज़ब शिल्पा मायके आती तो ज़्यादातर काम अंतिमा को ही करते देखती। तब उसे भी भाभी और भैया की बात सच लगती कि वह दोनों सुधा जी को ज़्यादा काम नहीं करने देते हैँ।और माँ अपनी मर्ज़ी से ही काम करती रहती हैं।
इधर.... एक तो फोन पर माँ की आवाज़ में थकावट साफ झलक रही थी, दूसरे शिविका ने उस दिन बातों बातों में शिल्पा को फिर से बताया था कि सुधा जी का काम इतना बढ़ गया है कि अब वह सुबह की सैर को भी नहीं आ पाती। तब शिल्पा को लगा कि शिविका सही कह रही है।
वैसे तो शिल्पा जब भी सुधा जी से पूछती कि,
"भैया भाभी आपके साथ माफिक व्यवहार कर रहे हैं कि नहीं?"
तब तो माँ हमेशा टाल जाती थी। इसलिए इस बार शिल्पा ने बिना फोन किए आना उचित समझा और अचानक शनिवार की सुबह सुबह मायके आ धमकी।
कल ही तो आई थी शिल्पा।
चुपके से आई तो......देखती क्या है कि भाभी अभी तक सो रही है और भैया दूध लाने गए हैं। उतनी सुबह माँ रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी से पहले रसोई की सफाई कर रही थी और माँ को सर्दी भी हो रखी थी।
दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड में अपने आप को शॉल से लपेट कर जिस तरह से माँ किचन में काम कर रही थी, शिल्पा को वह देखकर बहुत ही दया आ गई।
शिल्पा को याद आ गया जब पापा जीवित थे तब उन्होंने माँ को कभी भी सुबह-सुबह रसोई में इस तरह काम करने नहीं दिया था चाहे घर में कोई भी कामवाली रखी जाती उसके साथ यह शर्त होती कि वह सुबह जल्दी उठकर आएगी और सबसे पहले किचन साफ करेगी। पर आज सुबह माँ को किचन में रात के जूठे बर्तन धोते देख कर शिल्पा का कलेजा मुँह को आ गया।
उसके मुँह से हठात निकला,
"यह क्या कर रही हो माँ !"
शिल्पा की आवाज इतनी तेज थी कि माँ के हाथ से भगोना गिर पड़ा और वह विम बार लगे हाथ से ही वह बर्तन उठाने लगी कि फिर उनको वजह से स्मरण हो आया कि अरे यह तो शिल्पा की आवाज है फिर हाथ धोकर बोली,
" अरे बेटी! इतनी सुबह सुबह कैसे इस बार तो तुम्हारा कोई फोन भी नहीं आया!"
कह कर उन्होंने जब शिल्पा को गले लगाया तो बदन बिल्कुल गर्म था जैसे कि बुखार हो।
शिल्पा कुछ कहा कि उसके पहले ही ऊपर से भाभी अपने कप्तान की डोरी बांधते हुए नीचे उतरी और शिल्पा को देखते हुए नकली खुशी दिखाते हुए बोली,
"अरे शिल्पा जीजी आप कब आए? और मैं भी अम्मा जी को कितना मना करती हूँ, पर यह सुबह-सुबह रसोई में पहुँच जाती हैं।
तब तक शिल्पा बहुत कुछ समझ चुकी थी। और जो नहीं समझती थी वह माँ की डबडबाई आंखों और थरथराते होंठ ने बता दिया था कि इतनी ठंडी में भी उन्हें इतना काम करना पड़ रहा है।
शिल्पा सामने से कुछ नहीं बोली अगले दो दिन तक उसने दो-तीन काम वालियों से बात किया और एक काम वाली जो सुबह आने को तैयार हो गई। उसे सबसे पहले माँ को एक कप चाय बनाकर देने के बाद ही किचन सफाई और बाकी काम करने की हिदायत के साथ रखा गया। उसे साफ साफ कह दिया गया कि इस ठंड में माँ को पानी छूने वाला कोई काम नहीं करने देना है। नई कामवाली बिहूनी को शिल्पा ने अच्छी तरह समझा दिया कि किस तरह उसे सुबह साफ सफाई से चाय बनाकर दो मीठे और दो नमकीन बिस्किट के साथ माँ को देनी है, जैसे शिल्पा आज तक अपने पापा को देखती आई थी कि वह कैसे माँ को राजरानी की तरह ट्रीट करते थे।
शिल्पा ने ना तो अपनी भाभी अंतिमा से लड़ाई की और ना ही माँ के साथ बैठकर चुगली की बल्कि समस्या का बड़ा ही प्रैक्टिकल हल ढूँढा जिससे किसी को कोई भी एतराज़ नहीं था।
शिल्पा ने अंतिमा को सीधे-सीधे कह दिया कि,
"भाभी अगर आप सुबह उठ नहीं सकते तो कोई बात नहीं। पर माँ की उम्र हो गई है इस उमर में उनसे काम कराना सही नहीं है। यह सब कामवाली कर दिया करेगी, लेकिन माँ को तंग ना करें!"
शिल्पा की बात में दम था सो अंतिमा टालती कैसे?
पर फिर भी अपनी सफाई में बोली,
"माँ को हम किसी काम के लिए नहीं बोलते, बस उनको ही शौक है घर का काम करते रहने की!"
"और भाभी! इतना याद रखिये कि माँ का यह स्वभाव नहीं कि दिखावे या प्रशंसा के लिए काम करने या बीमार होने का नाटक करें!"
"वही तो शिल्पा जीजी! ऐसा वह क्यों करेंगी भला!"
"तो आप जो उस दिन भैया को कह रही थीं वह सबके सामने बोलिए। यूँ पीठ पीछे माँ की चुगली करके भैया को मत भड़काइये!"
बोलते हुए शिल्पा की आवाज़ नर्म थी।
जब उसने भाभी की आँखों में शर्मिंदगी के भाव देखे तो माहौल को हल्का बनाते हुए मुस्कुराकर बोली,
"जो बोला जाए...सामने बोला जाए। कम से कम सास बहू की लड़ाई तो देखने मिलेगी। यूँ शीत युद्ध से क्या हासिल होनेवाला!"
शिल्पा की इस बात पर सब हँस पड़े।
उसके बाद से घर में कामवाली आ गई और अब सुधा जी को बहुत आराम रहने लगा था। शिल्पा की समझदारी से बिना झगड़ा किए बिना बात बढ़ाए समस्या का समाधान भी हो गया था। और सुधा जी की तबीयत भी ठीक रहने लगी और घर में खुशहाली भी बनी रही।
अब घर में जिस किसी को भी कोई बात कहनी होती सब मुंह पर ही कहते और खुलकर रहते।
(समाप्त)
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