मां का प्यार
मां का प्यार
आज कक्षा में प्यार के विभिन्न रूपों पर चर्चा करने के लिए सभी विद्यार्थियों ने लक्ष्य रखा था।इस बारे में प्रिया ने अपने विचार रखते हुए ज्यों ही कहा- 'आई लव यू ' , उसके मुंह से ये शब्द निकलते ही अधिकांश बच्चों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।
प्रिया ने सभी को संबोधित करते हुए कहा- 'इन तीन शब्दों का सामान्य रुप में अर्थ लगा लिया जाता है तो यह निम्न स्तरीय मानसिकता का परिचायक है।प्यार मित्रों के बीच भाई-भाई,भाई - बहन, पिता-पुत्र ,संतान और माता-पिता का होता है। प्यार दिमाग की बजाय दिल से किया जाना बेहतर होता है। माता-पिता संतान को नि:स्वार्थ प्यार करते हैं।साथ इसका उनके स्वभाव और चरित्र पर सदैव सकारात्मक प्रभाव पड़े ऐसा ही प्रयास करते हैं। अत्यधिक लाड़-प्यार बच्चे को कुसंगति और कुमार्ग पर भी ले जा सकता है। प्यार का अर्थ त्याग है हम जिसे प्यार करते हैं उसके प्रति त्याग भावना पहले ही जन्म लेती है।मन में स्वार्थ की भावना उत्पन्न होते ही प्यार कम होने लगता है।जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की स्वार्थ भावना भांप ले या भ्रमवश ही दूसरे के स्वार्थी होने का आभास करने लगे तो संबंधों में गिरावट जो संबंधों में कड़वाहट और वैमनस्य में भी परिवर्तित हो सकती है।हर संबंध में यह संभव है केवल मां का संतान से निर्मल, स्वार्थ रहित प्रेम होता है। तभी तो कहा गया है-
"सबसे ही अनूठा और सबसे ही आला,
दुनिया में है प्यार मां का सबसे निराला।"
प्यार पर चल रही इस वार्ता के क्रम को दीपक ने आगे बढ़ाते हुए कहा-"मां के सम्पर्क में हर बच्चा सबसे पहले आता है।हमारा मां के साथ परिचय इस संसार के हर अन्य किसी व्यक्ति की तुलना में पूरे नौ महीने अधिक होता है। किसी के लिए इस दुनिया में सबसे अधिक त्याग बिना किसी लालच या स्वार्थ रहित भावना के मां ही करती है। लाक्षागृह में पांचों पाण्डवों और उनके साथ ही उनकी माता कुंती के जलकर मर जाने की सूचना पर हस्तिनापुर में सभी शोकाकुल हैं ऐसी चर्चा द्वारिका के दरबार में चलने पर भगवान श्रीकृष्ण जी ने कहा था कि हस्तिनापुर में यदि सचमुच कोई पाण्डवों की मृत्यु से दुखी हैं तो वह हैं पितामह भीष्म,बाकी तो केवल दिखावा है।इस संसार में किसी के लिए शोक केवल मां ही करती है और जैसी सूचना है उसके अनुसार पाण्डवों की मां तो उनके साथ ही जलकर मर गई है। मनुष्य को तो अधिक समझदार माना गया है लेकिन सभी पशु-पक्षी अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। भूख से व्याकुल कोई भी बच्चा मात्र मां की गोद में पहुंचते ही शांत हो जाता है।मां शक्ति का रूप होती है।मां नौ माह तक अपने खून से हमें सींचकर अपने जीवन को दांव पर लगाकर असीम प्रसव पीड़ा सहकर हमें जन्म देती है।जन्म के बाद केवल बच्चे का मुंह देखकर अपनी पीड़ा भुलाकर प्रसन्न हो जाती है। यदि बच्चा पेशाब कर बिस्तर गीला कर देता है तो मां बच्चे को सूखे में लिटाकर स्वयं गीले में लेट जाती है । जब बच्चा दूसरी ओर भी बिस्तर गीला कर देता है तो मां बच्चे को गीलेपन से बचाने के लिए अपने पेट पर लिटा लेती है। इस संसार में किसी के लिए मां से बढ़कर त्याग कौन कर सकता है। कबीरदास जी मैं भी अपने पद में मां के त्याग का सजीव चित्रण किया है।
सुत अपराध करे दिन केते, जननी के चित रहैं न तेते।
कर गई केस करे जो घता , तऊं न हेतु उतारे माता।
कहें कबीर बुधि एक विचारी , बालक दुखी दुखी महतारी।"
मां सदैव दयालु होती है।भले ही बच्चे मां का उपकार भुलाकर कृतघ्न हो जाएं पर कभी अपनी ममता का त्याग नहीं करती है।तभी तो मां की स्तुति करते हुए कहा जाता है कि-
' मां बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता ।
पूत कपूत सुने हैं, पर ना माता सुनी कुमाता ।।'
रीतू ने सदैव की भांति मां के संतान के प्रति संतान के प्रति मोह की तुलना में इज्जत को अधिक देने के लिए बालीवुड फिल्म 'मदर इंडिया' उदाहरण दिया-"समाज व्यक्ति से बड़ा होता है।नारी समाज की गरिमा होती है। फिल्म में नायिका राधा का बेटा बिरजू जब गांव के सेठ की बेटी को लेकर भागता है और चेतावनी देने पर भी जब नहीं सुनता तो वह अपने हाथों अपनी कोख से जन्मे बेटे बिरजू को गोली मारकर उसे मौत के घाट उतार देती है।धन्य है भारत भूमि और इसकी पावन धरा पर जन्मीं माताएं।
मां और जन्मभूमि के महत्त्व को प्रभु श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण जी को संबोधित करते हुए कहा था -
'अपि स्वर्णमय लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।"
मां के प्यार त्याग और समर्पण के भाव की कक्षा में चर्चा बड़ी ही महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक रही।