मां बहुत परेशान करती है...

मां बहुत परेशान करती है...

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‘देखो, मुझसे नहीं होता अब। सारा दिन थक जाती हूं मैं।’ खाना खाकर जैसे ही वह हाथ धोकर कुर्सी पर बैठा तो वह दो घड़ी उसके संग बतियाने को उसके पास आकर बैठ गई।


‘कामवाली रख लो।’ दांत कुरेदते हुए उसने सुझाया।


‘मां के लफड़े कम है जो कामवाली के नखरे सहन करूं?’ उसके प्रस्ताव को नकारते हुए उसने कहा।


‘तो तुम ही बताओं क्या करूं मैं ?’ उसने उसकी तरफ देखते हुए कहा।


‘तुम तो सुबह से चले जाते हो और रात ढलने पर लौटते हो। मां रोज मीठी चाय पीने की जिद करती है। उनकी शुगर की चिंता कर न देती तो जोरजोर से बड़बड़ाकर मुझे भलाबुरा कहती है। नहलाने के बाद तुरंत चोटी बनाकर न दूं तो गुस्से से नाश्ता नहीं करती।’ अपनी पीड़ा जताते हुए वह बोली।


उसे चुप देख उसने आगे बात बढ़ायी, ‘इस उम्र में पचता तो है नहीं कुछ और सात पकवान खाने को चाहिए। आज सुबह हलुवा खाने को मन कर रहा था उनका तो थोड़ा सा बनाकर दिया। दस्त लग गए। डायपर पहनाया तो जाने कैसे निकालकर फेंक दिया। फिर सारा बिस्तर गंदा कर दिया।’


‘मैं घर की बहू हूं, कोई नौकरानी नहीं। रोज की यही रामायण है। अब नहीं होता मुझसे। तुम्हें कुछ तो सोचना होगा इस बारें में।’ उसे चुपचाप बैठा देख अंततः गीली हो आई आंखें पोंछते हुए उसने अपनी बात पूरी की।


‘तो तुम ही बताओं क्या करूं मैं ?’ उसने वहीं वाक्य दोहरा दिया।


‘मां बहुत परेशान करती है अब। भाईसाहब से कहो थोड़े दिन अपने यहां ले जायें तो मुझे थोड़ी सी राहत हो।’


‘मां वहां कैसे रहेगी और कौन उनकी देखभाल करेगा? भाभी भी तो नौकरी करती है।’ उसने मां को लेकर अपनी चिंता बतायी।


‘मैं नौकरी नहीं करती इसका यह मतलब तो नहीं कि पूरी जिंदगी मै ही सहन करूं? और अब तो मां बहुत परेशान करती है। पिंटू की पढ़ाई पर भी मुझसे ध्यान न दिया जाता है।’ 


‘मेरे कहने का यह मतलब न था। तुम अपना दुखड़ा रोकर फिर दिल से मां की सेवा कर ही लेती हो तो...’


‘जो करता है उससे बार बार अपेक्षायें रखना नाइंसाफी नहीं है ? मैं कुछ कहती नहीं इसका मतलब यह थोड़े ही है की भाईसाहब और भाभी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ ले। जो भी हो अब आप मां को भाईसाहब के यहां छोड़ आओ। मां बहुत परेशान करती है अब।’ उसकी बात बीच में काटते हुए उसने लगभग फैसला सुनाते हुए कहा,


‘तुम इतने सालों से मां के साथ रह रही हो। कभी कभी भलाबुरा कहकर भी फिर आंखों में पश्चाताप के आंसू आने पर सेवा भी कर रही हो। रह पाओगी उनके बिना? भाभी यह सब ना कर पाएगी। वह तुम्हारी तरह सेवाभावी नहीं है। पिछली दफा उन्हें वहां छोड़ा था तो ओल्ड एज केयर होम के नाम पर उन्हें वहां... ’ वह आगे न बोल सका।


‘मेरी भावनाओं से खेल रहे हो?’


‘खेल नहीं रहा हूं, तुम्हारी भावनाओं को समझ रहा हूं।’ उसने उसकी बात का जवाब दिया।


‘ठीक है। मेरी किस्मत में ही लिखा है सेवा करना तो करती रहूंगी।’ बुझे स्वर से कहते हुए वह वहां से उठकर जाने लगी।


‘मां की किस्मत में तुम लिखी हो तभी तो ओल्ड एज केयर होम उनका इंतजार नहीं कर रहा है।’ अपनेपन के एक एहसास के साथ उसने उसका हाथ थाम लिया।


‘छोड़ो भी अब। मेरी परेशानी कम ना हुई है। मां को बाथरूम ले जाने का समय हो गया है।’ उसके एहसास को आत्मसात करते हुए चेहरे पर खिल उठी मुस्कुराहट वाली लकीर को सम्भालते हुए उसने अपना हाथ उसके हाथों से छुड़ाया और मां के कमरे की तरफ दौड़ी चली गई।


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