Dhan Pati Singh Kushwaha

Drama Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Drama Classics Inspirational

मालगुडी डेज के बच्चों के गौरव

मालगुडी डेज के बच्चों के गौरव

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मेरे व्हाट्स ऐप पर किसी ग्रुप पर ग्रुप के एक सदस्य ने मैसेज भेजा था जिसमें यह प्रदर्शित किया गया था -" लाकडाउन से समाज के विभिन्न कार्य ग्रुप के लोग घरों में बैठे -बैठे हो बोर गए थे। शहरों से गांव की ओर पलायन करने वाले ग्रामीण दिहाड़ी मजदूर संभवत,: मोदी जी की अपील पर भी विश्वास न कर सके।वे अपने निर्धारित स्थान से न निकल पाए।असुरक्षा और अनिश्चितता अनिश्चितकालीन समय तक अब तक के कटु अनुभवों से भरे माहौल गमगीन बने ।तो इस नीरस जीवन और वातावरण से हर वर्ग जब परेशान हो गया। हर कोई अपने घर से बाहर निकलकर अपने कार्यस्थल पर पहुंचने के लिए व्यग्र दिखा। इसमें दुकानदार वाले,दुकान के ग्राहक, रेडी चलाने वाले टेंपो और ई रिक्शा चला कर अपना भरण-पोषण करने वाले सभी अपने अपने काम पर वापस जाने के लि‌ए उद्यत दिखे ।सभी अपने अपने काम पर जाना चाहते थे। केवल एक ही वर्ग ऐसा था जो इस मामले में पूरी तरीके से लॉकडाउन व्यवस्था में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रहा था। जिसने एक बार भी सरकार के सामने वहां जाने की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई जहां जाकर उसका जीवन संवरता है। आपके अनुसार ऐसा वर्ग जो बिल्कुल सरकार की नीतियों का अक्षरशः पालन करता हुआ नजर आ रहा है। ऐसा वर्ग सचमुच प्रशंसा के योग्य है ऐसे प्रशंसनीय वर्ग का नाम है विद्यार्थी वर्ग। विद्यार्थियों के किसी समूह के द्वारा कभी भी यह मांग नहीं आई कि हमें विद्यालय जाना है। हमें विद्यालय में भेजने की व्यवस्था सरकार करे। ऐसा को क्यों भी क्योंकि यह वर्ग 'मालगुडी डेज' कहानी के लेखक श्री आर. के. नारायण जी की लेखनी से जन्मे पात्र स्वामीनाथन के वर्ग से संबंधित है। हां ,हां, वही स्वामीनाथन जिसे सोमवार की सुबह बहुत ही बुरी लगती है शनिवार और रविवार के दिन कितने सुखद दिन होते हैं। उसके बाद यह सोमवार का मनहूस दिन आता है।

विद्यालय में पहुंचकर स्वामीनाथन को 'कक्षा अध्यापक और अलग-अलग विषयों का पाठन करवाने वाले अध्यापकों से होता है और हर अध्यापक अपने अपने तरीके से उस पर जुल्म करता है।' स्वामीनाथन के पात्र के रूप में आर के नारायण बाल मन की भावनाओं को कुरेद- कुरेद कर अपने पाठकों के सामने लाते हैं स्वामीनाथन विद्यालय के पीरियड्स में जो अनुभव करता है।वह तो संभवत आज केभूषण के विद्यार्थी भी ऐसा ही महसूस करते हैं इसीलिए तो इतने लंबे लाॅटरी क डाउन के बाद विद्यार्थी को किसी भी वर्ग ने उन्हें विद्यालय भेजा जाए ऐसी मांग कभी नहीं की बल्कि सरकारों ने अलग अलग अलग प्लेटफार्म पर वर्चुअल मीटिंग करवाई जिसमें अधिकांश विद्यार्थियों ने उन्हीं के अर्थात सरकार के कुछ लोगों की स्क्रिप्ट को खूब हूं कैमरे के सामने बोल दिया कि कोरोनावायरस की शक्ति का नुकसान हो रहा है लेकिन हमें ऑनलाइन भी बहुत सीखने को मिल रहा है। हम ऑनलाइन कक्षाओं से बहुत अच्छे से सीख रहे हैं और उन्होंने उसी निर्देशित स्क्रिप्ट के अनुसार सरकार की प्रशंसा के पुल बांध दिए। कैमरे के सामने आकर विद्यार्थियों ने यही आकर कहा कि कारण हमारी पढ़ाई का नुकसान हुआ लेकिन सरकार ने ऑनलाइन कक्षाएं चलाकर हमारे इस नुकसान की भरपाई की। जबकि वास्तविकता इससे कहीं उलट है कक्षा में जो विद्यार्थी पढ़ने में हमैशा से ही औसत से कुछ स्तर के होते थे वेऑनलाइन पढ़ाई में भी बैठी थी कर रहे हैं ।लेकिन मध्यम और उससे निचले वर्ग के सभी विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई का ना के बराबर लाभ उठा पा रहे हैं।"

वैश्विक महामारी कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए दुनिया के अनेक देशों की तरह हमारे अपने भारत देश में भी लॉक डाउन की घोषणा की गई। लॉक डाउन की घोषणा होते ही भारत के विभिन्न महानगरों में अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए भारत के अलग-अलग ग्रामीण अंचलों से काम करने वाले मजदूर वर्ग के लोग, शहरों में ही गुजारा करने को मजबूर दिहाड़ी मजदूर, छोटा-मोटा रोजगार करके अपनी रोजी-रोटी चलाने वाले लोग जो पूरे दिन गर्मी- सर्दी की परवाह किए बिना दिन भर पसीना बहा कर शाम के भोजन का जुगाड़ करते थे, ऐसे सभी लोग लॉक डाउन की भयावह कल्पना से व्यथित हो उठे क्योंकि उनका अपना एक लंबा अनुभव है कि सरकारी घोषणाओं और उनके जमीनी स्तर पर उचित कार्यान्वयन में जमीन आसमान का अंतर होता है। प्राचीन काल से ही गरीबों के उत्थान के लिए, उनके कल्याण के लिए, उनको सुख-सुविधाएं प्रदान करने के नाम पर अनेकानेक सरकारी योजनाओं की घोषणा होती चली आ रही है।

इन योजनाओं का लाभ गिने-चुने उन जरूरतमंद लोगों तक बहुत ही मुश्किल से पहुंच पाता है ।इन योजनाओं के कार्यान्वयन में जो लोग लगाए जाते हैं उन सबके द्वारा लूट शुरू हो जाती है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र जी मोदी कि अपने प्रसारण में की गई अपील ' जो जहां है वहीं रुक जाए । सबके लिए जो जहां पर है वहीं पर उनके लिए उनकी जरूरतों का सारा सामान उनके पास पहुंचाया जाएगा ', सभी लोगों में विश्वास नहीं उत्पन्न करवाई इसकी परिणति गरीब मजदूरों द्वारा आवागमन के साधनों प्रतिबंध के कारण का निर्णय पैदल मार्च के रूप में दृष्टिगोचर हुई।

हमारे आदर्श शिक्षक श्रीमान गौरव जी अपनी हर ऑनलाइन कक्षा शुरू करते ही अपने मन में उमड़ती-घुमड़ती पीड़ा को उन बच्चों के सामने उड़ेलते -"बेटे इस समय हम लोग ही नहीं पूरी दुनिया एक अजीब से संकट के दौर से होकर गुजर रही है जिसने हमारे विकास के चक्र को थाम सा दिया है। हमारीऑनलाइन कक्षा में मुश्किल से 20% के आसपास ही उपस्थिति रहती है। यह भी एक संकट का सूचक है। आप अपने को ऐसे वातावरण में ढालें कि आपकी योग्यताता का विस्तार हो क्योंकि चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत है कि 'संसार में योग्यतम ही उत्तरजीवी होते हैं, जो निर्बल होते हैं वह नष्ट हो जाते हैं ' हम सब अधिक से अधिक शारीरिक, मानसिक ,नैतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करें और दूसरों को अर्जित करने के लिए सतत प्रेरित करते रहें। तुम सब से यही अपील है कि हम घर से बाहर तभी निकलें जब बहुत ही आवश्यक हो, घर से बाहर निकलते समय हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि दो गज दूरी मास्क बहुत ही जरूरी, भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें, अपने हाथों को हमेशा स्वच्छ रखें , अगर हाथों की स्वच्छता पर जरा भी संदेह है तो उन हाथों को अपने मुंह और नाक से कभी स्पर्श न करें ,शारीरिक दूरी को पूरी सतर्कता के साथ बनाए रखें, स्वयं भी हमेशा इस बात का ध्यान रखें और इस विचार को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाएं। 'जब तक दवाई नहीं, तब तक कोई ढिलाई नहीं '।अभी तक बचाव ही कोरोना संक्रमण से हमें बचाने का एक मात्र उपाय है। 

अरविन्द ने "रेज हैण्ड " विकल्प के माध्यम से अपनी बात रखते हुए कहा-"हमें आशावादी रहना चाहिए आशा है कि कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन शीघ्र ही आ जाएगी उसके बाद हमें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होगी।"

गौरव सर ने सभी बच्चों को अपने मन की बात रखने का अवसर देते हुए पूछा कि तुमसे कोई भी बच्चा ,जो अरविंद ने कहा है ,उसके बारे में उसके क्या विचार हैं? गौरव सर के प्रश्न की प्रक्रिया के रूप में शिवानी अपने मन की बात रखी-" मैं यह कहना चाहूंगी कि अभी वैक्सीन आने में समय लगने वाला है कि वैक्सीन आ रही है किस बात को लेकर हमें किसी प्रकार की कोई शिथिलता अपने व्यवहार में नहीं लानी है फिर हमारा देश एक बहुत बड़ी जनसंख्या वाला देश है। जिसमें लगभग 135 करोड लोग रहते हैं। इतनी बड़ी आबादी को एक साथ वैक्सीन तो उपलब्ध होगा ही नहीं और उसम भी जो व्यक्ति सबसे ज्यादा जोखिम में है उसे प्राथमिकता दी जाएगी। हमें यह सदैव याद रखना चाहिए कि वैक्सीन आने के बाद भी एक लंबे समय तक हमें हम उनमें से बहुत बड़े वर्ग को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी और इस दौरान बचाव ही उपचार है। हम सावधानीपूर्वक रहें यही मूल मंत्र है।"

"शाबाश ,! शिवानी बेटा " -गौरव सर ने शिवानी की प्रशंसा करते हुए कहा।इसके बाद तनिक रुक कर गौरव सर ने फिर बच्चों के सामने प्रश्न रखा -"ऑनलाइन कक्षा में तुम्हारी संख्या बहुत कम होती है।ऐसे बच्चों का ध्यान करें जो कक्षा में अक्सर नहीं होते इसके बारे में हम अपने साथियों के बेहतर विकास और बेहतर भविष्य के लिए उन्हें प्रेरित करके कक्षा में लाएं हममें जिन बच्चों के घरों के आसपास ऐसे बच्चों के घर हैं और हमारे पास उनके फोन नंबर भी हैं। हममें से कुछ बच्चे ऑनलाइन क्लास की उपस्थिति को देखकर उनके नाम ध्यान कर ले जो कक्षा में उन पर स्थित है। ऐसे बच्चों के नाम अपनी नोटबुक पर लिख ले जिनका घर तुम्हारे पास है। आप लोग उनके घर जाकर ,फोन करके क्लास में आने के लिए प्रेरित करें ।मैं भी प्रयास करता हूं लेकिन अगर इसका में तुम सबका सहयोग हो जाए तो यह काम आसानी से और बेहतर तरीके से हो पाएगा। हमें अपनी कक्षा के स्वामीनाथन को भी पहचानना है जिसे कैलेंडर में सोमवार का दिन ही अच्छा नहीं लगता। बाल्यावस्था में समाज के ठीक से विकसित ना होने के कारण अल्पविकसित अर्धविकसित अथवाअविकसित।तुम सबको फोन के माध्यम से अपने साथियों से भी जुड़े रहना है फिर तुम ऐसे किसी से बच्चे को अपने ही घर में अपने पशुओं के घर किसी भी प्रकार से कोई मानसिक ठेस पहुंची है या तुम्हारी भावनाएं आहत होती हैं तो भी हमें अपनी एक विश्वसनीय व्यक्ति साथी को बताना चाहिए ताकि समस्या शुरू होते ही उसका निदान कर लिया जाता है तो वह समस्या बड़ी नहीं होती अन्यथा समस्या बड़ी हो जाती है जिसे बाद में जिसका बाद में समाधान भी ठीक प्रकार से नहीं आ पाता तो किसी समस्या को उसकी प्रारंभिक स्थिति में ही समूल नष्ट कर दो।"

पूजा बोली-"सर! अभी आप से अपनी बातचीत में कई बार स्वामीनाथन का नाम लिया इस स्वामीनाथन कौन है हम सबको इसके बारे में कुछ संक्षिप्त जानकारी दें।

"ठीक है।"-गौरव सर बोले-"स्वामीनाथन श्री आर.के.नारायन की लेखनी से निर्मित एक चरित्र है ।श्री आर के नारायण ने"मालगुडी डेज"शीर्षक से अपना कहानी संग्रह प्रकाशित करवाया था। नई कहानियां अंग्रेजी भाषा में लिखीं। 1943 में "इंडियन थाॅट वेकेशन" ने इसे प्रकाशित किया था और उसके बाद 1982 में "पेंगुइन क्लासिक्स" के द्वारा इसे भारत से के बाहर से प्रकाशित कराया गया। इस पुस्तक में 32 कहानियां हैं जो उनके मालगुडी नामक काल्पनिक कस्बे पर, जो दक्षिण भारत में स्थित है,पर आधारित हैं।

"सर, क्या स्वामीनाथन एक शैतान बच्चा है?"- साधना ने पूछा।

गौरव सर ने हंसते हुए कहा-"बचपन प्राय: शरारतों से भरा होता है। यही तो वह उम्र है जिसमें वह स्वतंत्र रूप से अपने मन की बात कहता है और उन कामों को करने का भी प्रयास करता है जो उसके मन को शांति प्रदान करते हैं। स्वामीनाथन भी सामान्य बच्चों की तरह ही एक बच्चा है जो जिसके माध्यम से श्री आरके नारायण जी ने विद्यालय के दौरान कुछ बाल सुलभ चेष्टाओं को प्रदर्शित किया है। "स्वामीनाथन और उसके साथी'नामक कहानी में भी तुम सब बच्चों की तरह ही स्वामी के द्वारा ऐसी शर्तें पसंद ना पसंद को प्रदर्शित किया गया है जो बाल मनोविज्ञान में अध्ययन के दौरान पता चलती हैं। स्वामी का अनमने ढंग से स्कूल आना, स्कूल में अध्यापकों का कुछ अध्यापकों का व्यवहार उसे अच्छा नहीं लगता। विद्यालय में कहीं जाने वाली बाते जो उसे पसंद नहीं आ रही थी उन्हें स्वामीनाथन ने अपने पिताजी को बताया‌ उसके पिताजी उसकी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया और विद्यालय के हेडमास्टर को पत्र लिखा था तो तुम सब बच्चों को भी अपने लक्ष्य की स्पष्ट जानकारी रहनी चाहिए तुम्हारे अभिभावकों को भी अपने बच्चों की पूरी देखरेख करनी चाहिए जैसे कि बच्चे को विद्यालय में यदि कोई समस्या होती है तो वह अपने को सुरक्षित महसूस करें जहां यदि उसे कई अन्याय होता हुआ नजर आता है तो वह अपने मन की बात बिना हिचकिचाहट के रख सके।अपनी कक्षा में विद्यालय में हमें अपने मित्रों का चुनाव सावधानीपूर्वक आना चाहिए स्वामीनाथन तीन अलग-अलग सुबह वाले लड़कों के साथ मित्रता करके भी सही से निभा पा रहा था सोमू, मणि और शंकर उसके प्रिय मित्र हैं जिनमें तीनों के लक्षण एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं।

अरविंद ने अपनी पूरी कक्षा की ओर से गौरव सर को आश्वस्त करते हुए कहा -"सर! आपके प्रेरणादाई विचार हम सब को बहुत ही अच्छे लगते हैं और यह हमें हमारा लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता करते हैं।आप की प्रेरणा हमेशा आप हमारा मार्गदर्शन करती है इसके लिए हम पूरी कक्षा की ओर से आपका धन्यवाद करते हैं और आपने हमारी कक्षा के समूह से जो अपेक्षाएं रखी हैं उसे हम शीघ्रतिशीघ्र करेंगे।" 

अब गौरव सर का दूसरी कक्षा में जाने का समय हो रहा था वह सभी बच्चों को आशीर्वाद देते हुए आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते हुए कक्षा से निकल गए।


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