Mamta Singh Devaa

Inspirational Children

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Mamta Singh Devaa

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माॅं की सीख

माॅं की सीख

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सन् 1970 में हमें कलकत्ता छोड़ बनारस आना पड़ा...कलकत्ता निवास के दौरान ही पिता जी ने बनारस में ज़मीन खरीद ली थी | पिता जी कलकत्ते ही रूक गए...जहाँ ज़मीन थी उसी काँलोनी में एक घर किराये पर ले कर माँ ने घर बनवाना शुरू कर दिया नीचे की मंजिल बनते ही हम अपने घर में आ गए , हमारे साथ हमारे चाचा का बेटा भी रहता था एक दिन हम सब बच्चे साथ मिल कर खेल रहे थे कि अचानक से पड़ोसी का बच्चा आया और बोला की मेरी पतंग आपके छत पर कट के आ गई है वो मुझे दे दीजिये...रितेश ( चाचा का बेटा ) छत पे गया और वापस आ कर बोला की ऊपर तो कोई पतंग नहीं है।

थोड़ी देर बाद मैंने देखा की रितेश ने कोई सामान पलंग के नीचे रखा है क्या था ध्यान नहीं दिया और खेलने में मगन हो गए | माँ बाज़ार गईं थीं उनके वापस आने पर फिर पड़ोसी का बच्चा आया और माँ से अपनी शिकायत करने लगा माँ ने हम सबसे पूछा लेकिन सबने मना कर दिया लेकिन तभी मुझे याद आया कि रितेश ने कुछ छिपाया है मैंने माँ को बता दिया...माँ ने रितेश से पुछा तो उसने फिर झूठ बोल दिया की उसने नहीं ली है लेकिन उसके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं....कहते हैं ना कि ' चेहरा सब कुछ व्यक्त कर देता है ' उसके चेहरे की उड़ती हवाइयों को देख माँ अंदर गईं और पलंग के नीचे से पतंग निकाल कर ले आई और उस बच्चे से बोलीं कि सब बच्चों ने मिल कर तुम्हारी पतंग छुपा दी थी हम माँ की तरफ देख रहे थे की हमारा नाम क्यों लिया हमने तो ये किया ही नहीं था।

गुस्सा भी आ रहा था और शर्म भी की वो बच्चा हमारे बारे में क्या सोचेगा लेकिन बच्चा तो बच्चा पतंग मिली और वो खुश , उसके जाने के बाद हमने माँ से पुछा की आपने हमारा नाम क्यों लिया छुपाया तो रितेश ने था आपको पता भी है की हमें कितनी शर्म आ रही थी तो माँ ने कहा की सब में हिस्सा बटाते हो तो इसमे भी बटाओ साथ की शर्म से ज़्यादा बड़ी अकेले की शर्म होती है और बिना मेरे डांटे रितेश को सबक मिल गया होगा कि मेरी गलती की सज़ा सबको मिली है अब वो चोरी और झूठ बोलने की गलती कभी भी नहीं दोहराएगा। माँ की सीख रितेश के बहाने हम सबको मिल चुकी थी और ये सीख आज भी मेरे साथ है।


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