Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Gulafshan Neyaz

Drama

4.0  

Gulafshan Neyaz

Drama

लॉक डाउन

लॉक डाउन

3 mins
191


ज़ब से लॉक डाउन शुरू होवा है। तब से कुछ लोगो के रिश्तों का लॉक डाउन खत्म होवा है।

जिन लोगो को अपने माँ बाप से दो मिनट बात करने की फुर्सत नहीं थी। वो लोग आज अपने दूर दूर के रिश्तेदारों से बात करते हैं। उनका हाल चाल जानने की कोशिश करते हैं। बेचारे रिस्तेदार भी नंबर देख चौंक जाते हैं।

इतने बिजी महाशय को फुर्सत कैसे मिल गई। बेचारा लॉक डाउन है। टाइम पास नहीं हो रहा होगा। शायद इसी लिए कॉल किया होगा।

नंबर देख कर ही मन ये सब बाते सोचने लगता है। आखिर इसमें मन की क्या गलती। बात तो बिलकुल सही है। ज़ब से स्क्र्रीनटच मोबाइल और नेट आया तब से लोगो की कर्यशैली ही बदल गई।

लोग पास मे बैठ होते होय भी बहुत फासला होता है। क्योकि लोग अपना सर मोबाइल पर जो झुकाये होते है। व्हाट्सप्प फेसबुक इंस्टाग्राम ट्विटर चलाने की फुर्सत है। पर माँ बाप या रिस्तेदार को कॉल करने की फुर्सत नहीं।

ज़ब से लॉक डाउन होवा तब से ना बाहर घूमने गए ना कोई नई फोटो लगाया की लाइक कमैंट्स चेक करे इसलिए कॉल से ही काम चला रहे है। बेचारे लोगो के पास कोई ऑप्शन नहीं है। खुद को पिंजरे का कबूतर या मिट्ठू समझ रहे है।

सबसे बड़ी और खास बात जो लोग गाँव छोड़ शहर बस गए। और कभी साल दो साल पर घर आते और सेखी बघारते उन्हें गाँव मे सब जाहिल और गँवार दीखते और गाँव की पगडंडी पर उन्हें बस धुल धकर दिखाए देती और वो अपने कीमती चप्पल को उन गाँव के धुल मे गन्दा नहीं करना चाहते उन्हें भी गाँव की बड़ी सिद्दत से याद आ रही है

कम से कम लोग गाँव मे दरवाज़े पर तो घूम सकता है। अपने खेतो मे से सब्जी और साग तोर कर पका तो सकता है।

कोरोना जैसे महामारी ने हमें हामरे अस्तित्व से परिचय कराया है।

की हम दौर भाग भरी ज़िन्दगी से अपनों से कितना दूर हो गए है। जिनके लिए हमारे पास सोचने के लिए समय ही नहीं है।

हम रोज़ कुछ ना कुछ आनाज सब्जी खाना बर्बाद करते है। इस लॉक डाउन ने हमें आनाज और भोजन की अहमियत समझने का मौका दिया है। कोरोना जैसी महामारी में हम सोशल डिस्टन्सिंग का पालन करे पर उसके साथ ये भी ध्यान रखे की कंही हामरे अड़ोस पड़ोस मे कोई भूखा तो नहीं है। भले वो किसी भी जाती धर्म का क्यों ना हो उसका धर्म बाद मे है पहले वो एक इंसान है

इस लॉक डाउन मे कुछ रिश्ते करीब होये तो कुछ दूर भी हो रहे है

अक्सर अखबारों मे पढ़ने को मिल रहा है। ज़ब से लॉक डाउन स्टार्ट होवा है b। औरतों पर अत्याचार बढ़ गया है

ऐ मुश्किल की घड़ी है। जिसे हमें मिल जुल कर पार करना है ना की लड़ झगर कर कृपा घर मे रहे सुरक्षित रहे। खुद के लिए ना सही कम से कम अपने परिवार के लिए।


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