लोगों का काम है कहना।
लोगों का काम है कहना।
क्यों बहुरानी, दीदी का फोन आया था कि तुमने दीदी की बहू नीता को क्या सिखाया कि वह अपना बोरिया बिस्तरा लेकर अमर के साथ घर से चुप करके भाग गई। चाची ,आज के जमाने में तुम छोटे बच्चों को भी कुछ सिखा सकते हो क्या। सभी अपने मन की करते हैं और बहू नीता कोई बच्चा तो थी ही नहीं जो मेरे कहने से रुकती या भागती। और यूं भी दोनों ही घर से गए हैं तो अपना घर बसाएंगे ना कि भागा भागी करेंगे। चाची सास को फोन पर जवाब देते देते रजनी रूआंसी हो उठी।
चाची तो चुप तो हो गई और उन्होंने फोन रख भी दिया लेकिन इस तरह से किसी की सोच पर लगाम थोड़े ही लग पाएगी। जहां जहां बुआ के बहू के घर से जाने की बात फैलती ,वहां वहां रजनी की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। रजनी अब किस किस को सफाई दे? लोगों को तो सिर्फ रस चाहिए चाहे वह किसी की आत्मसम्मान के मोल पर ही क्यों ना हो। बिना वजह ही तनाव और अवसाद गहराता जा रहा था।
सासु मां के रहते भी बुआ जी जितने दिन भी घर में रहती थी एक डर का सा ही माहौल बना रहता था। शायद भारत के संविधान में भी इतने नियम ना होंगे ,जितने कि उन्होंने बहुओं के लिए बना रखे थे। एक बार जब वे आईं तो डाइनिंग टेबल पर रजनी और सासू मां इकट्ठे खाना खा रहे थे, आते ही उन्होंने रजनी को इतना सुनाया कि बहुओं को हमेशा बड़ों से नीचे बैठना चाहिए और उनके बाद में खाना चाहिए। उनके सामने तो सासूमां भी नहीं बोल पाती थी, फिर रजनी की तो औकात ही क्या? वह हमेशा ही सासू मां को सिखाती रहती थी, कि भाईसाहब तो है नहीं, कम से कम अपने बेटे को तो बहू के जाल में न फंसने दे। सासू मां मुस्कुरा कर हर बात को टाल देती थी और रजनी की भी यही कोशिश रहती थी कि जब तक बुआ जी घर पर रहे माहौल सामान्य ही रखें।
अब सासु मां के ना रहने पर रजनी को ही सारी दुनियादारी निभानी थी। उसने हमेशा से देखा था कि सासू मां हर त्यौहार पर बुआ जी के घर कुछ ना कुछ जरूर भिजवाती थी। क्योंकि रजनी भी इस परंपरा को नहीं तोड़ना चाहती थी इसीलिए हर त्योहार पर वह भी रजत के साथ बुआ जी का आशीर्वाद लेने जरूर जाती थी। वहां पर उनकी बहू नीता को किसी से बात तक करने का अधिकार नहीं था। वह तो अक्सर घुंघट करके रसोई में ही काम करती रहती थी। बुआ जी जब तक रजनी से बात करती थी उनकी बहू नीता तो सिर्फ चाय नाश्ता कमरे में रखकर और रजनी के पैर छूकर रसोई में वापस ही चली जाती थी।
दीदी (रजनी की ननद) अक्सर बताती रहती थी कि बुआ जी और उनकी तीनों बेटियां नीता को बहुत तंग करती है । बुआ जी का बेटा अमर अक्सर दीदी के घर आता जाता रहता था। अभी दीपावली से पहले जब रजनी बुआ जी के घर सामान लेकर गई तो बुआ जी ने रजनी से कहा तेरी दोहरानी 2 दिन से कमरे से बाहर भी नहीं निकली, यह अच्छी बहुओं के लक्षण है क्या ?जरा उसे समझा के तो आ। बुआ जी के कहने से वह 2 मिनट को बहुरानी के कमरे में चली गई थी। नीता बिस्तर पर लेटी हुई थी। शायद उसकी तबीयत खराब थी। पूछने पर उसने कहा मैं ठीक हूं दीदी। बस उसके बाद रजनी बाहर आ गई थी। दूसरे दिन ही बुआ जी के बेटे और नीता घर छोड़कर शायद कहींं और फ्लैट लेकर रहने चले गए थे।
उसके बाद बुआ जी ने हर घर में रो-रो कर यही फोन करा था कि रजनी के सिखाने से ही मेरी बहू चली गई है। उसके बाद रजनी अपनी रिश्तेदारी में कहीं भी जाती बुआ जी की बहुत नेता के कारण अपना घर छोड़कर गई इस बात का जिक्र चाहे उसके सामने या पीछे जरूर होता। बिना गलती किए ही वह अपने आप को अपराधी महसूस कर रही थी।
अभी चाची सास भी इसी विषय में ही रजनी से फोन पर बात कर रही थी। अब तो किसी का भी इस विषय पर फोन सुनने के बाद वह बहुत परेशान हो जाती थी। तभी डोर बेल बजी। बाहर दीदी आई थी। दीदी भी सासु मां के जैसे बहुत सुलझी हुई थी। उनको देखते ही रजनी बोल उठी, दीदी मैंने पूरी कोशिश करी कि मैं भी मम्मी के ना होने पर भी कहीं कोई कमी ना रहने दूं लेकिन-----! कहते कहते रजनी फूट-फूटकर रो दी। तभी दीदी ने सांत्वना देते हुए समझाया यह दुनिया तो ऐसे ही बोलेगी ।तुम यह क्यों सोचती हो कि सब तुम्हारी तारीफ ही करेंगे। बस तुम अपना कर्तव्य सही से निभाए जाओ। समय के पास हर सवाल का जवाब है । लोग वह नहीं समझते जो सच होता है ,बल्कि वह "वह समझेंगे जो कि वह समझना चाहते हैं।" परेशान मत होओ। हम सब तुम्हें भी जानते हैं और उन्हें भी। अच्छा है अब नीता और अमर खुश तो रहेंगे। दीदी समझाते हुए बोली, भैया! बहु उनकी घर से गई है, तो कसूर भी उनका ही होगा। यूं ही घर से केवल उनकी बहू ही नहीं गई उनका बेटा भी साथ गया है और दोनों अपनी गृहस्थी बसाएंगे । वह दोनों तो खुश होंगे और तुम बेवजह ही अपना हाल खराब कर रही हो।
चलो रजनी उठो, आज चाय मैं बनाती हूं और हम दोनों मिलकर चाय पीएंगे। माहौल थोड़ा हल्का तो हो गया था लेकिन ------?
पाठकगण अपनी गलती को छुपाने के लिए दूसरे पर कोई भी इल्जाम लगाकर उसे मानसिक प्रताड़ना देना सही है क्या?
