लोगो का काम है कहना

लोगो का काम है कहना

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रज्जो की शादी धूमधाम से हुई, रोहित बहुत समझदार, प्यार करने वाला था। रज्जो को जैसे सब कुछ मिला। रज्जो सुबह ही उठकर उसके लिये उसका मनपसंद नाश्ता बनाती और टिफिन में ही एक से बढ़कर एक सब्जी रखती, रोहित भी हमेशा उसे सरप्राइज करता रहता। एक साल प्यार भरे रिश्ते में पता ही नहीं चले पर नजर लगते देर नहीं लगती।

एक एक्सिडेंट और रज्जो की जिंदगी पर ग्रहण। रज्जो को ससुराल का साथ नहीं मिला और रज्जो माँ के पास आ गयी। रज्जो मुस्कुराना भूल गयी। रोहित ने इतना प्यार दिया कि उसकी यादों से निकलना मुश्किल था।

रज्जो की दुनिया उजड़ गयी। माँ -बाबा उसे हँसाते पर उससे मुस्कुराहट दूर-दूर थी। रज्जो माँ की गोद में सिर रखे हुये थी, माँ मेरे साथ ही क्युँ ? माँ की आँखे आसुँओ ंसे भीगी उसका साथ देती। रज्जो मेरी बच्ची खुद को संभाल ...बेटी देख हम तो सारी जिंदगी तेरे साथ नहीं रहेंगे। कोई बच्चा होता तेरी गोद में तो दूसरा साथी भी मिलना बहुत मुश्किल होता, बेटी मैं और तेरे बाबा सारी रात नही सो पाते। हमारी नन्ही सी रज्जो का दुख कैसै बाँटें।

नहीं नहीं माँ, रोहित की यादों के सहारे मैं काट लूँगी सारी जिंदगी। प्लीज माँ मुझे मजबूर नहीं करो की मैं कहीं और चली जाऊँ।

माँ बाबा समझाते रहे, आखिर उन्होंने कहना छोड़ दिया। अच्छा एक बात मानेगी, मेरी बच्ची कहीं मन लगा, सहेलियों के जा, आस पडोस, सहेलियों के पास हो आया कर, कितना बुलाती है, मन लगेगा। बेमन से रज्जो मान गयी। रोज उसे दुखी देखकर माँ-बाबा दुखी हो जाते।

अगले दिन बराबर एक सहेली के सोचा हो आऊँ। घर से और उसके घर तक रज्जो के कानों में शब्द गुँजने लगे। ओह वही है जिसका पति चल बसा, थोड़ी दूर- क्या होगा कम उम्र है। कदम तेजी से बढ़ा लिये थे रज्जो ने, उड़ कर पहुँचना चाहती थी। कान बंद कर लिये आँसू रूक नहीं रहे थे। सहेली के घर उदास रही और घर आके खुब रोई। क्युँ साथ छोड़ गये रोहित।

घर से निकलना मुश्किल हो गया। माँ ने मेरे लिये एक स्कुल मे नौकरी की अर्जी दे दी। रज्जो को जाना पड़ा और नौकरी काबलियत पर मिल गयी।

रज्जो कुछ ना कुछ बच्चों की बातें माँ-बाबा को सुनाती तो उनका मन खुश हो जाता कि रज्जो को जीने का सहारा मिल गया।

रास्ते में कोई आदमी मिल गया और रज्जो ने दो घडी बात कर ली तो सारे मौहल्ले में उसका नाम लेकर तरह तरह की बाते होने लगीं। माँ से कहने लगे, कम उम्र है, साल भर हो जायेगा रोहित को गये, रिश्ता ढुंढना शुरू कर दो। विधवा को देर से मिलते है रिश्ते। बदनामी होते देर नहीं लगती।

माँ ने भी गुस्से मे सुना दिया, हमारी बेटी है हमे उस पर विश्वास है, लोग क्या कहेंगे इस डर से रज्जो को क्या जबरदस्ती किसी से भी ब्याह दूँ। जब उसका मन नहीं है तो शादी नहीं करेंगे हम। जब वो दुख से उबर गयी तब वो जो सोचेगी हम उसके साथ है। सबके मुँह बंद कर देती थी माँ। किसी को हमारी बच्ची के बारे मे सोचने की जरूरत नहीं।

रज्जो भी स्कुल में मन लगाने लगी पर रोहित उसकी यादों में था। धीरे-धीरे साल बीत गये। एक दिन वो स्कुल से के बराबर से आ रही थी। वहाँ के बँगले मे एक छोटी सी तीन साल की बच्ची खेल रही थी। उसकी मुस्कुराहट ने रज्जो को रोक दिया। क्या नाम है ?

तुतलाती आवाज में जवाब मिला, रज्जो हँसी, मीरा बड़ा प्यारा नाम है। ऐसे ही मीरा अपनी दादी के साथ रोज गेट पर इंतजार करती। रज्जो भी बिना मिले आगे नहीं बढ़ती। वहाँ काम करते माली से पता चला, माँ नहीं है पिता आफिस गये हैं। अब तो मीरा के लिये ज्यादा मोह हो गया। बिन माँ की बच्ची। आज मीरा दिखी नहीं, कुछ देर खड़ी रही रज्जो।

तीन दिन बाद भी नहीं देखकर बेताबी बढ़ गयी। पढ़ाने में मन नहीं लगा, आधा दिन की छुट्टी लेकर मीरा के घर की डोर बैल बजा दी। डर भी रही थी, अंजान कौन, कैसा हो। सोचा बाहर से पूछ कर आ जाऊँगी।

कौन ? अंदर से आवाज आई।

मैं मैं रज्जो। अंदर आ जाओ। नहीं नहीं मैं ठीक हूँ मीरा है ?

मीरा आवाज पहचान गयी और जिद करने लगी मिलने की। एक सुंदर सा नौजवान गोद में उठा कर मीरा को बाहर ले आया। आंटी मीरा ने आवाज दी। माली भी रोज देखकर पहचानता था।

अरे ये दीदी रोज मीरा बेबी को मिलने आती है। मीरा की दादी भी आवाज सुनकर आ गयी। बेटी अंदर आओ।मीरा रोज देखती है तुम्हें। इंतजार करती है तुम्हारा। बुखार है इसे तेज। कुछ खा नहीं रही।

रज्जो ने गोद में ले लिया मीरा को मीरा गले से चिपक गयी गालों पर तपते गाल लगे।

ओह तेज है बुखार। बाहर ही कुर्सी पर बैठ गयी रज्जो और खाना मँगा कर बातों में खिला दिया। दादी माँ भी खुश हो गयी। रोज आ जाया करो, खुश देखा आज इसको, इसकी माँ होती तो। वो जन्म देते चल बसी।

अब रोज रज्जो मीरा और दादी से स्कूल से आते मिल जाती और बातें भी करती। लोग तरह तरह की बातें बनाने लगे। रज्जो ने माँ को बताया की लोग उसको मीरा के घर जाने पर बदनाम कर रहे हैं।

माँ ने कहा लोग क्या कहते हैं तुम सही हो तो डरने की जरूरत नहीं, लोगों को बातें चाहिये उन्हें ध्यान देने की जरूरत नहीं। हमें तुम पर तुम्हें खुद पर विश्वास होना चाहिये। तुम जब दुखी थी तब भी लोग बुराई कर रहे थे अब खुश हो तब भी कर रहे है। सोचो मत। रोहित की तरफ से थोड़ा ध्यान मीरा में जाने लगा था। अब तो आदत सी हो गयी थी रोज मिलने की रज्जो को। मीरा की दादी रज्जो से मन तन की बातें कर लेती थी। मीरा के पापा भी मुस्कुरा देते कभी मिलते तो। माँ बाबा को रज्जो सारा दिन मीरा की बातें सुनाती।

एक दिन मीरा और दादी रज्जो के घर आई। गोद मे बैठी मीरा रज्जो बस बातें करे जा रहे थे। अचानक दादी माँ ने रज्जो का हाथ अपने बेटे के लिये माँग लिया। रज्जो से मीरा की दादी ने कहा रज्जो एक तुम ही हो जो मीरा और मेरे बेटे की जिंदगी में खुशी ला सकती हो। मीरा तुमसे घुल-मिल गयी है। रज्जो को मीरा से एक रिश्ता बन गया था। रज्जो माँ को देखकर मुस्कुरा दी और मीरा को गले से लगा लिया। रज्जो के बाबा ने पूछा और आपके बेटे को पसंद नही हुई तो। मीरा की दादी ने कहा आज मैं उससे बात करके ही आई हूँ। उसे रज्जो पसंद है।रज्जो की माँ-बाबा की खुशी का ठिकाना नहीं था, घर बैठै रिश्ता मिल गया और रज्जो की ना भी हाँ में

मीरा ने बदल दी थी। कभी कभी किस्मत आपके लिये नई राह ले आती है। जो आपने कभी नहीं सोची होती।


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