लम्हें जिंदगी के
लम्हें जिंदगी के
"सुबह शाम एक ही काम रहता है तुम्हारा, कभी गुल्ली डंडे तो कभी क्रिकेट , अरे कभी तो शांत बैठा कर !! इतनी कड़ी धुप में भी। .. चल दिया फिर दोस्तों के साथ " पिता जी कब से बोले जा रहे थे। .. ..
और मैं गर्मी की छुट्टिया में फिर दोस्तों के साथ चल दिए वही बाग में जहाँ आम के पेड़ नीचे प्रतिदिन क्रिकेट खेलने जाया करते थे ।सब दोस्त ऐसे इकट्ठा हो जाते थे जैसे सब को एक साथ फ़ोन करके बुलाया हो!, पता नहीं कैसे लेकिन पांच या दस मिनट अन्दर ही सब के सब पहुंच जाते थे ।
वो दिन कुछ अलग हुआ करते थे ना हाथ में फ़ोन और ना ही हाथों में घडी फिर भी समय में ही आते थे
इससे स्पष्ट दिखता है कि '' सब में खेलने की प्रति लगाओ उतना ही था जितना लगाओ मुझे था'' ।
जिस चीजों में लगाव अधिक हो उसमे उस बचपन के तरह खो जाइये जिसमे ना मोबाइल हो ना ना ही घडी फिर हर काम समय होते रहे !!
