लक्ष्य
लक्ष्य
ओह! टेलीफोन पर आई खबर से आभा लगभग चौंक उठी। उसने टेलीफोन रक्खा और जल्द ही खुद को संयत किया । दफ्तर में सामने बैठे अफसरों की फाइल देखते हुए ड्राइवर को गाड़ी लगाने के लिए कहा। अभी खबर आई थी की आभा के इलाके में कोई मिस्टर प्रशांत के घर से उनकी बहू को जली हुई अवस्था में हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है। उस इलाके के एस.डी.एम होने के नाते आभा को उसका बयान लेना था। कुछ अफसर और मातहतों को साथ लेकर वह गाड़ी में बैठी और अपने ही ख्यालों में खो गई। बात लगभग आठ 10 साल पुरानी ही होगी जबकि उसके पापा और मम्मी ने उससे कितने दिन बात भी नहीं की जबकि उसने प्रशांत जी के इकलौते बेटे से शादी करने से इंकार कर दिया था।
पापा के ख्याल से इतने बड़े घर का रिश्ता वह भी बिना किसी दान दहेज के मांगे अगर मिल रहा है तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए। पापा का कहना था अगर वह लाख कोशिश भी कर लें तब भी इतना अच्छा घर और वर नहीं ढूंढ पाएंगे। उन लोगों का इतना अच्छा बिजनेस और घर में खड़ी हुई हर तरह की बड़ी-बड़ी गाड़ियां किसी को भी लुभाने के लिए काफी थी। लेकिन शायद आभा का सपना ही कुछ और रहा होगा, उसने शादी करने से बिल्कुल इंकार कर दिया था। हालांकि वह अपने माता-पिता को कहीं से भी दुख नहीं देना चाहती थी लेकिन उसके इस रिश्ते को मना करने के बाद माता पिता काफी दुखी हुए थे। आभा उस समय कोर्ट में हैड क्लर्क की नौकरी करती थी। पापा का ख्याल था कि उन लोगों को तुम्हारी नौकरी की जरूरत भी नहीं है शायद उन्होंने तुम्हारे गुण देखकर ही तुमको शादी के लिए प्रस्ताव भेजा होगा ,लेकिन आभा कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थी।
समय बीतता गया सदा की तरह ही अपनी मनमानी करने वाली और घर के प्रति बागी आभा ने अपने कोर्ट की नौकरी भी छोड़ दी थी। उसका एक ही सपना था आई.ए.एस बनने का जिसको कि पूरा करने के लिए वह कोर्ट में नौकरी करते हुए समय नहीं जुटा पा रही थी। उसके हर कृत्य से माता-पिता बहुत परेशान होते थे पहला सदमा तो उन्हें प्रशांत जी के घर उसका शादी का प्रस्ताव ना मानने के कारण लगा तो दूसरा उसकी कोर्ट में लगी लगाई नौकरी को छोड़ने के कारण। लेकिन आभा को तो जाने भविष्य में क्या दिख रहा था जो कि वह बिना किसी की सुने अपनी मनमानी करके अपने सपने को ही पूरा करने की ओर प्रयासरत थी।
समय बीतता गया। प्रशांत जी के घर में बजता शहनाइयों का स्वर उसके माता-पिता को बेहद उद्वेलित कर रहा था। उनके इकलौते बेटे की शादी हो रही थी और इधर आभा के माता-पिता अंधेरे कमरे में मानो कोप भवन में दुखी होते हुए बैठे थे। आपा इन सब चीजों से दूर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई ही करने में व्यस्त थी। लगभग दो साल के प्रयास के बाद आभा की तपस्या रंग लाई और उसका पेपर क्लियर हो गया था। ट्रेनिंग हुई और कुछ समय बाद वह दिल्ली में ही एस.डी.एम बनी थी ।
तभी उसकी तंद्रा टूटी जब ड्राइवर ने कहा मैडम हम हॉस्पिटल के बाहर आ गए हैं। अंदर पता करा तो प्रशांत जी की बहु रानी 55% बर्निंग हालत में होने के बावजूद भी अपना बयान देने के काबिल थी। अंदर जाने के बाद शायद पहली बार ही आभा ने प्रशांत जी और उनके बेटे को ध्यान से देखा। इससे पहले एक ही कॉलोनी में रहने पर भी शायद ही कभी उन दोनों पर आभा की नजर पड़ी हो। उसका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही था।
बयान देते हुए प्रशांत की पत्नी ने जो आप बीती सुनाई वह बेहद दर्दनाक थी। इतने अमीर घर में ब्याही जाने के बावजूद भी उसका स्थान घर में किसी भी नौकर से भी नीचे था। प्रशांत के माता-पिता को घर का कुल वंश बढ़ाने वाली केवल एक मशीन की आवश्यकता थी। मिस्टर प्रशांत हो या उनका पुत्र, अच्छे खासे इंपोर्ट एक्सपोर्ट के बिजनेस में वह क्या आयात निर्यात करते थे यह भी उनकी बहु रानी की बातों से खुलकर सामने आ रहा था। अंततः किन हालातों ने उसे यह कदम उठाने पर मजबूर करा, किस तरह से उसकी दो पुत्रियों को गर्भ में ही मारा गया और दूसरी पुत्री के गर्भपात के उपरांत आई गई कॉम्प्लिकेशन के कारण वह सदा के लिए मां बनने के लिए अनुपयुक्त हो गई थी। उसके पश्चात किस हद तक उसका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करा गया सुनकर बेहद सकते में आ गई थी आभा।
बाहर आने पर मिस्टर प्रशांत ने उससे बात करनी चाही और उसके स्टाफ को कुछ अपनी ही तरह का बयान लिखने के लिए काफी अच्छा प्रलोभन भी दिया गया। मिस्टर प्रशांत और उनका सुपुत्र अभय से बात करने की इच्छुक भी थे और वह जो ही आभा के पास आए तो वह अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लिए आग्नेय नेत्रों से उन्हें घूरती हुई अपनी लाल बत्ती वाली गाड़ी में आकर बैठ गई।
ऑफिस से घर पहुंचने पर उस दिन पहली बार उसके माता-पिता उसके हर फैसले पर गर्व कर रहे थे और उसे बता रहे थे कि प्रशांत जी के घर क्या हुआ और लोग क्या कह रहे हैं। आभा सब कुछ जानते हुए भी चुप थी । मां लगातार बोली ही जा रही थी कि परमात्मा की कृपा से हम लोग तो बच गए। हमने तो सोचा था वह कितने अच्छे लोग हैं। इतने में ही महाराज सबके लिए चाय लेकर आ गए थे और रात के खाने में क्या बनेगा इस विषय में पूछ रहे थे। आभा सिर्फ मुस्कुरा रही थी और कैटल से अपने कप में चाय डालने लगी।
