लक्ष्मी आई है
लक्ष्मी आई है
"सुबह-सुबह साँकल खटकी,इत्ते भुरारे को आ गवा ?"
अम्मा बड़बड़ाते हुए द्वारे की साँकर खोल बाहर झाँकी।
"अरे रघुआ तू? सब कुशल मंगल ?"
"अरे अम्माँ पहले आशीष तो देओ। फिर बतात है। "
"खुश रहो बच्चा। जल्दी कुलदीपक मिले तो घर उजियारा होय। "अब बताई?का भओ? जो इतेक सवेरे-सवेरे अम्मा की सुत्त (याद) आ गई। "
"तोहार बहू को यहाँ पास के दवाखाने लेकर आए हैं। दर्द उठ गए हते अम्मा। लक्ष्मी आ गई है घरे अम्मा। तू ओकरे पास चलवू ?"
"अरे यह तो बहुत बुरो हो गओ, एक पहले ही हती,अब जै दूसर भी मोड़ी। तोसे पहले ही कहत रहे रघुआ। जँचिया करवा लेओ,अब भुगतो। "
"ऐ अम्मा कइसन बतिया करत हो। तोहरे भी तीन-तीन मोड़ा है?एकउ पूछत है का? हम तोहरे गाँव के हैं । तोहरी गोद में पले, तासे तुमाही सुधी लेत रहत है। "
"गंगा काकी को देखत हो कबहूँ ? एकऊ बिटवा नहीं, फिर भी शान देखो। बिनकी बिटिया कौनऊ चीज की कमी नहीं होन देत।
"अम्मा अब बेटा-बेटी में कौनऊ फरक नई। अब चलवू तो बता? नहीं और कौनऊ व्यवस्था देखूँ।"
"रघुआ की बात सुनकर, बेटों की याद में आँसू ढुलक आए गालों पर,तीन साल से एक भी मिलने नहीं आया।
"चल रघुआ। तू सही ही कह रहो है रे। हमई ग़लत है। चल तोहरी लक्षमी को आशीष दे आवे। वे ही माहतारी-बाप के बुढ़ापे का सहारा बनेगी।
"बहोत भाग्यशाली हो बिटवा, जो बिटिअन के रूप में परभू जी का आशीर्वाद मिला है। "