लियाकत
लियाकत
"बधाई हो सरला जी..... फर्स्ट आया है आपका विश्वास, कितना लायक है.....एक मेरा बेटा है जो हर साल घिसट- घिसट के पास होता है।" शगुन रूआँसी हो कर बोली।
"क्या शगुन जी आप भी कैसी बात करती हैं ....बच्चे हैं अभी अभी से क्या देख लिया पढ़ाई में थोड़ा ऊपर नीचे हो जाता है और जहाँ तक लियाकत की बात है वो तो आपके अंश में मेरे बेटे से ज्यादा है सबका कितना कहना मानता है ....मुहल्ले में सबका आदर करता है और किसी की मदद को हरदम तैयार और चेहरे पर कभी शिकन नहीं हमेशा मुसकुराता चेहरा, सच्ची मुझे बहुत अच्छा लगता है अंश।" सरला जी मुसकुराते हुए बोली ।
"अगर आपका बेटा नालायक होता तब आप को मेरी तकलीफ़ समझ में आती " शगुन के मुँह से निकला ।
"पढ़ाई में थोड़ा कमजोर है अंश नालायक नहीं, आप को क्या लगता है जो बच्चे पढ़ाई में तेज़ होते हैं वो नालायक नहीं होते....असल में ग़लती आप की नहीं, हमने मानसिकता ही ऐसी बना ली है। निर्मला जी को जानती हो ना? जिनका एक बेटा बैंगलौर है दूसरा लंदन पिता के मरने पर भी नहीं आ पाये। और अम्मा जी उनका बेटा तो यहीं है ना इसी शहर में सब जगह जाता है बस माँ के लिए समय नहीं ....बस ये सब देख मन व्यथित हो जाता है तो जब आपके अंश को देखती हूँ तो एक आस जगती है मन में। उसे लताडिये मत उसकी खूबियों को सराहिये वो भी आगे बढ़ेगा ...। सरला जी भरे गले से बोली।
बड़े भाई की याद ने आँखें नम कर दी थी पिछले दस सालों से उस ने घर की तरफ मुँह भी न किया था।
और शगुन उसे अंश पर आज बहुत ज्यादा प्यार आ रहा था ।
