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amit Rajput

Inspirational

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amit Rajput

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लघुकथा हम साथ साथ हैं

लघुकथा हम साथ साथ हैं

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महिंद्र और विजय दोनों भाइयों मैं बहुत ही प्रेम था महेंद्र अपने छोटे भाई विजय को अपने बेटे समान मानता था और उसकी हर जरूरत और उसका ध्यान रखता था

किंतु विजय की भाभी उससे मन ही मन ईर्ष्या द्वेष रखती थी उसे डर था कि कहीं ससुर जी की मृत्यु के बाद विजय अपनी जाए जात का हिस्सा ना मांग ले! यह डर उसे हमेशा सताता रहता था

समय यूं ही बीतता गया और कुछ दिनों बाद ससुर जी की मृत्यु हो गई!

महिंद्र की बहू मन ही मन मुस्कुरा रही थी और सोच रही थी कि अब तो सारा हिस्सा हमें मिल जाएगा

किंतु महेंद्र ठहरा एक आदर्शवादी व्यक्ति जो अपने बड़े भाई का कर्तव्य निभाना अच्छी तरह जानता था विजय की पिताजी को गुजरे अभी 13 दिन पूरे भी नहीं हुए! और भाभी ने वहीं हिस्से वाली बात फिर से उठा दी

दोनों ही भाइयों को यह बात सुनकर बहुत ही दुख हुआ और कहने लगे की असली सुख ज़मीन धन दौलत नहीं होती परिवार होता है, यदि परिवार साथ है तो धन तो हम फिर भी कमा लेंगे किंतु इस धन के चक्कर में अगर हमने परिवार गंवा दिया तो यह धन फिर किस काम का

महिंद्र की बहू दोनों भाइयों का प्रेम देख भावुक हो गई और कहने लगी मुझे क्षमा कर दीजिए मुझसे भूल हो गई आज से हम प्रण लेते हैं कि हम सभी मिलजुल कर रहेंगे


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