बुढ़ापे का सच्चा साथी
बुढ़ापे का सच्चा साथी
श्रीमान विनोद और शोभा जी पत्नी और पति थे! दोनों की ही गवर्नमेंट जॉब थी जिस कारण पैसों की कोई कमी नहीं थी,इनका परिवार हर प्रकार से सक्षम परिवार था!
दोनों ने ही यह सोच जीवन भर कमाया और अपने बच्चों को विदेश में भेजकर अच्छी शिक्षा प्राप्त कराई और मनपसंद घर में शादी कर दी, और सोचा कि यह बच्चे रिटायरमेंट के बाद हमारे साथ रहेंगे और हमारी सेवा करेंगे!
तीन लड़के होने के कारण तीनों की बहू बहुत ही खराब प्रवृत्ति की थी!
मात पिता की सेवा भाव क्या होता है यह इन्हे पता ही नहीं था क्योंकि यह लोग विदेश में शिक्षा प्राप्त कर आए थे ,इसलिए वहां का कल्चर इन्होंने अपना लिया
यह लोग यह तक भूल गए कि जिस मात पिता ने पूरी उम्र कमाकर हमें पढ़ा लिखा कर इतना मजबूत बना दिया कि हम हर प्रकार से सक्षम हैं यह सब यह भूल गए थे,
तीनों बेटों की बहुओं ने एक दिन अपने पतियों से कहा कि हम तो विदेश में ही रहेंगे मां-बाप को यहीं छोड़ देते हैं इन्हें किसी चीज की कमी नहीं है ,इनकी तो पेंशन भी आती है,
तीनों की बहुओं ने यह कहा ही था कि उनके पतिदेव ने भी हां भर दी और अपने माता पिता को छोड़कर विदेश रहने चले गए,
विनोद जी और शोभा जी ने हाथ पैर जोड़े किंतु उन्होंने उनकी एक ना सुनी,
दुखी मन से शोभा जी और विनोद जी यह सोचने लगे कि हम इन्हें पढ़ाई के लिए विदेश ना भेजते तो यह ऐसे नहीं होते जो आज अपने मात पिता की बुढ़ापे में सेवा नहीं कर पा रहे हैं,
लगता है विदेशी सभ्यता, का असर इनके अंदर आ गया है!
तब शोभा जी कहने लगी कि आप क्यों चिंता करते हो मैं हूं ना आपका साथ देने के लिए जब तक जिंदा है साथ रहेंगे इन्हें इनकी जिंदगी जीने दो,
यह सब सुन विनोद जी भावुक हो गए और कहने लगे, शोभा अगर तुम ना होती तो मैं सचमुच मर जाता, तुम ही मेरी सच्ची साथी हो