संतुष्टि ही खुश रहने का मंत्र

संतुष्टि ही खुश रहने का मंत्र

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मनोज और संजय दो घनिष्ठ मित्र थे मनोज एक बहुत ही अमीर आदमी था जिसके घर में किसी चीज की भी कमी नहीं थी वही उसके विपरीत संजय बहुत ही गरीब व्यक्ति था !

किंतु दोनों में एक बात अलग अलग थी और वह बात यह थी कि,मनोज सब कुछ होने के बाद भी असंतुष्ट सा रहता था जबकि संजय कुछ ना होने के बाद भी संतुष्ट रहता था इसका प्रमुख कारण था !

जितना भगवान ने दिया है उसी में संतोष करें तभी आप खुश रह सकते हैं !

इसी को जीवन का आधार मानकर संजय अपना सुख में जीवन व्यतीत कर रहा था !

तभी एक दिन उसके पास मनोज आया और कहने लगा कि यार मेरे पास धन दौलत सब कुछ है किंतु मैं फिर भी असंतुष्ट रहता हूं और तेरे पास कुछ नहीं तो फिर भी संतुष्ट रहता है इसका क्या कारण है !

तब संजय ने बताया कि तुम्हें हमेशा ही कुछ न कुछ नया और ज्यादा चाहिए इस कारण तुम दुखी रहते हो जितना तुम्हें मिल जाता है तुम फिर उससे ज्यादा की कामना करने लगते हो इसलिए तुम दुखी हो !

मुझे पता है कि जीवन में मैं इतना ज्यादा हासिल नहीं कर सकता इसलिए ईश्वर ने मुझे जितना दिया है मैं उसी में संतुष्ट हो जाता हूं !

तुम भी ऐसा ही करो तो जीवन में संतुष्ट हो जाओगे,

संजय की यह बात मनोज ने दोनों कानों में भर ली और, उसी के आधार पर सुख में जीवन व्यतीत करने लगा।


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