मन में उत्पन्न व्यर्थ का भ्रम
मन में उत्पन्न व्यर्थ का भ्रम
शालू, एक हाउस वाइफ थी जिसका एक छोटा सा परिवार था शालू अपने पतिदेव रमेश से बहुत प्यार करती थी। उधर रमेश भी बहुत ही ईमानदार और अपनी पत्नी के प्रति वफादार था, रमेश जहां कार्य करता था उस कार्यालय में बहुत सारी स्त्रियां थी, जिस कारण शालू का मन विचलित रहता था कि कहीं उनका पति रमेश किसी स्त्री के चक्कर में ना पड़ जाए।
एक दिन रमेश जब छुट्टी पर था तो उसने बोला कि शालू तुम इतना परेशान क्यों रहती हो तब वह बोल पड़ी कि मुझे ऐसा लगता है कि आपके कार्यालय में बहुत सारी सुंदर स्त्रियां हैं मुझे डर लगता है कि आप किसी स्त्री के चक्कर में ना पड़ जाए।
तभी रमेश बोला कि, हट पागल, तुम्हारा दिमाग चल गया है क्या ? मैं सिर्फ तुमसे प्रेम करता हूं रही कार्य क्षेत्र में काम करने वाली स्त्रियों की तो वह सिर्फ मेरी कार्यक्षेत्र में काम करने वाली स्त्रियां ही हैं।और कुछ भी नहीं,
रही बात तुम्हारी तो तुम मेरी धर्मपत्नी हो, अपने मन में व्यर्थ का भ्रम पालना छोड़ दो, रमेश ने शालू को अपने पास बिठाया और कहा कि देखो हमारे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, मैं इनसे और तुमसे बहुत प्यार करता हूं और किसी से नहीं ईश्वर की सौगंध, इतना सुनकर शालू ने रमेश को गले लगा लिया और कहा कि मैंने व्यर्थ का ही भ्रम अपने मन में पाल रखा था। मैं बहुत ही खुशनसीब हूं जो आप जैसा पति मुझको इस जीवन में मिला।