Mukta Sahay

Inspirational

5.0  

Mukta Sahay

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लड़की जात, क्या कर पाएगी ..

लड़की जात, क्या कर पाएगी ..

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निशिता और अखिल के चार बेटों के बीच अनोखी अकेली बेटी है। निशिता को तो अपने पाँचों बच्चों से एक जैसा ही लगाव है, पर अखिल को अपने बेटों पर बड़ा गर्व हुआ करता था। अखिल को सेवनिवृत्ति हुए लगभग छः साल हो गए हैं। सेवनिवृत्ति के समय ही निशिता और अखिल ने निर्णय किया था कि ये दोनो यहीं रहेंगे और बच्चे अपने परिवार के साथ गर्मी की छुट्टियों में इनके पास आया करेंगे। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि पाँचों बच्चे साथ आए हों। अनोखी तो सिर्फ़ एक बार ही आ पाई क्योंकि उसे इस दौरान ससुराल जाना होता था और उसके बच्चों को भी दादा दादी से ख़ास लगाव है।

पिछले महीने अखिल की तबियत बहुत ही ज़्यादा ख़राब हो गई थी तो निशिता को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। ऐसी स्थिति में अकेले वह बहुत घबरा रही थी तो अपने चारों बेटों को आने को कहा लेकिन दो दिन होने पर भी कोई नहीं आया। जब निशिता ने फिर सभी को कहा की आ जाओ, मुझे और तुम्हारे पापा को तुम लोगों की ज़रूरत है तब भी चारों एक दूसरे को जाने के लिए कहते रहे।

अखिल और निशिता को इस समय दवा से ज़्यादा अपनों की ज़रूरत थी। दूर दूर के रिश्तेदार और परिचित आ रहे थे अखिल से मिलने को पर उसका गुमान, उसका गर्व उसके बेटे सात दिन बीत जाने पर भी नहीं आए।


अखिल की बीमारी की बात निशिता ने अनोखी को नहीं बताया था, ये सोच कर कि वह क्या कर पाएगी, लड़की जात जो ठहरी। वैसे भी अखिल ने कभी भी बेटों के सामने बेटी को समुचित मान नहीं दिया था। जब अनोखी ने निशिता को फोन किया तो उसे पता चला कि अखिल सात दिनों से अस्पताल में भर्ती है और निशिता अकेले ही उनकी देखभाल कर रही है। अनोखी को बड़ा क्षोभ हुआ की उसके माता-पिता ने उसे इतना पराया कर दिया कि इतनी बड़ी बात उन्होंने उसे नहीं बताई। साथ ही इस बात पर भी ग़ुस्सा आया कि चारों भाइयों में से कोई अभी तक नहीं आया है।

अगले ही दिन अनोखी और दामाद बाबू हज़ार किलोमीटर दूर से भागते हुए अस्पताल आए। बेटी और दामाद को सामने देख निशिता के आँसुओं का बाँध टूट पड़ा। जब अखिल ने बेटी और दामाद को देखा तो उनके आँखों से कई भाव साथ में प्रकट हो गए। अनोखी के हाथों को अपने हाथ में ले कर अखिल ने कहा “ लाडो तू सच में बहुत प्यारी और अच्छी है। मैंने तेरे लिए वह नहीं किया जो करना चाहिए था।” दामाद की ओर घूमते हुए कहा “ दामाद जी आप तो हीरा हो और आपने जो आज किया वह तो बेटों ने नहीं किया।” इसके साथ ही अखिल फफक कर रो पड़े। उन्हें सम्भलने में काफ़ी समय लगा। बेटी दामाद अखिल का हाथ थामे बैठे रहे।

लगभग दस दिन बाद अखिल को अस्पताल से छुट्टी मिली। तब तक अनोखी या दामाद जी बारी बारी से अखिल के साथ अस्पताल में रहे, अपने सारे काम छोड़ कर। उधर बच्चों की देखभाल के लिए अनोखी के सास ससुर जी आ गए थे। अखिल के बेटे अब ये कह कर नहीं आए की अनोखी और दामाद जी तो आए ही हैं, सभी को अपने काम छोड़ने की क्या ज़रूरत है।

अस्पताल से आने के बाद सभी निशिता और अखिल को अकेले रहने से मना कर रहे थे। चारों बेटों से बात की गई। सभी कुछ ना कुछ समस्या बता कर मना कर दिए। ऐसे में एक बार फिर अनोखी आगे आई और निशिता-अखिल को अपने साथ ले आई।

पिछले पंद्रह दिनों से अखिल-निशिता अनोखी के घर में हैं। यहाँ बच्चों और दामाद जी का अपनापन देख कर इन दोनों की आँखें भर आती हैं और सोचने को मजबूर करती हैं कि बेटा-बेटी में भेद कितना ग़लत है, बेटियाँ पराई क्यों मानी जाती हैं!



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