लड़कीवाले भी लड़केवाले के बराबर
लड़कीवाले भी लड़केवाले के बराबर
समधि को किस मुँह से कहेंगे-"दुकान जल गई है।माल सब जल गया।उधारी बकाया है।किसको कितना देना है किससे कितना लेना है,सब रिकॉर्ड जल गये।रितु की शादी अब कैसे करेंगे।रुपए कम पड़ रहे हैंं।कौन उधार देगा?हे भगवान!क्या कैसे होगा?"दोनों हाथों से मुँह ढ़ककर कमलेश जी रोने लगे।
कमलेश जी की परचून की दुकान मेंं कल अज्ञात कारणवश आग लग गई थी।कमलेश जी की बेटी रितु की शादी एक महीने बाद तय की गई थी।पिछले हफ्ते ही उसकी रिंग सेरेमनी हुई थी। घर में खुशी का माहौल था पर यह खुशी का माहौल अचानक मातम में बदल गया।
कमलेश जी को चुप कराते हुए उनकी पत्नी नीलम बोली-"आप एक बार समधी जी से बात कीजिए।वह हमारी परिस्थिति समझेंगे।"
कमलेशजी पत्नी नीलम सहित अपने समधी अशोक जी के यहां पहुंचे। समधी कमलेश जी को अपने घर अचानक और उदास आया देखकर अशोक जी ने सब खैरियत पूछी। कमलेश जी अचानक हाथ जोड़कर रो पड़े।सब बात बताते हुए बोले-"कैसै क्या करूँ?समझ नहीं आ रहा है?मार्केट में पैसा फंसा है।कैसे शादी का इंतजाम करूँ?"
अशोक जी,उनकी पत्नी व बेटा वहीं थे।अशोक जी ने कमलेश जी को हाथ पकड़ के बिठाया और कहा-"आप पहले पानी पीजिए।आप चिंता मत कीजिए।शादी का इंतजाम हम करेंगे।अब आप सब हम पर छोड़ दीजिए।हम तो आपको पहले भी बोल चुके हैं हमें दहेज का एक पैसा नहीं चाहिए।हमारे पास पैसे की कमी नहीं है।आप लक्ष्मी दे रहे हैं तो स्वागत हमें करने दीजिए।आपने देखा है दिवाली पर लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए हम कितना अच्छा इंतजाम करते हैं जिससे लक्ष्मी प्रसन्न हो।उसी तरह आप हमें अपनी लक्ष्मी स्वरूपा बेटी दे रहे हैं तो उसके स्वागत में हम कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं।"
कमलेश जी बोले-"मुझे बहुत शर्मिंदगी हो रही है।यहां हम लड़की वाले होकर भी आप लोगों की,आपके रिश्तेदारों खातिरदारी नहीं कर पायेंगे।जबसे रितु पैदा हुई थी तब से उसकी शादी का सपना देख रहे थे पर सपना टूट गया।"
अशोक जी बोले-"लड़की वाले हैं और आप हमें लड़की दे रहे हैं ना कि हमसे कुछ ले रहे हैं। हम समधि हैं, समान हैं,बराबर हैं। आपने भी अपनी बेटी को पढ़ाने में उतना ही खर्च किया है जितना मैंने अपने बेटे को ।आपने भी अपनी बेटी को वैसे ही पाला है जैसे मैंनेे अपनी बेटे को।अगर आज हम ही भेदभाव करेंगे तो कल को हमारे बच्चे भी नहीं सीखेंगे आप भी बेफिक्र होकर घर जाइए। शादी में दावत और खर्चे का इंतजाम हम करेंगे।"
कमलेश जी की आंखों में खुशी के आंसू थे।उनकी बेटी को इतना अच्छा परिवार मिल रहा है जहां लड़का वाला या लड़की वाले का भेद नहीं है।
दोस्तों, कहने को तो यह कोई नई कहानी नहीं है पर ये कड़वी सच्चाई है।अगर हम सच में बराबरी की बात करें तो शुरुआत यहां से ही करना होगा।लड़के वाले दहेज न लें और लड़की वाले अपनी बेटियों को पढ़ालिखा के सक्षम बनाऐं।शादी की दावत में भी दोनों पक्ष खर्च करे।