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Saroj Verma

Tragedy

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Saroj Verma

Tragedy

लड़की भीगीं भागी सी....

लड़की भीगीं भागी सी....

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वो भींगी हुईं से भागी चली जा रही थीं, कस्बे की गलियों में,उस रात मूसलाधार बारिश हो रही थीं और उसे तो जैसे अपनी जान की परवाह ही नहीं थी,परवाह थी तो बस उसकी जो उसका अपना था ही नहीं और मानने को तो वो ही उसका अपना सबकुछ था।।

डाँक्टर साब.... डाँक्टर साब,दरवाजा खोलिए,भगवान के लिए दरवाज़ा खोलिए,नहीं तो वो मर जाएगा, मैं आपके सामने हाथ जोड़ती हूँ, पैर पड़ती हूँ, बस आपका ही सहारा है आज तो....

बहुत देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद सरकारी अस्पताल के डाँक्टर ने दरवाजा खोलकर पूछा___

कौन हैं तू ? और इतना काहें चिल्लाएं जा रही हैं....

मैं मधुबनी,मेरे जेठ की बहुत तबियत खराब हैं, उल्टी और दस्त तो जैसे रूक ही नहीं रहें,वो बोली।।

 अच्छा! रूक यहीं मैं कुछ दवाइयाँ और इंजेक्शन ले लूँ साथ में और डाक्टर इतना कहकर भीतर से अपना बैग लेकर, छतरी लगाकर चल पड़े मधुबनी के साथ,थोड़ी देर में घर पहुंचे तो देखा कि बुधिया एकदम लस्त पस्त सा बिस्तर में पड़ा हैं, डाक्टर ने जल्दी से उसकी नब्ज टटोली,आँखें देखीं तो,एकदम सफेद हो चुकीं थीं,डाँक्टर ने बिना देर किए बुधिया को एक इंजेक्शन लगाया और ड्रिप चढा़ने को लगा दी,ड्रिप चढ़ जाने के बाद,डाक्टर ने हिदायत दी कि मरीज होश में आ जाएं तो ये दो गोली खिला देना,मूँग की पतली दाल और जितना हो सकें पानी वाली चींजे खिलाओं,शरीर में पानी की कमी हो गई हैं, घबराने की बात नही है सुबह तक बिल्कुल ठीक हो जाएगा, बस दो दिन तक खाने का खा़स ख़्याल रखना और डाक्टर जाने लगा।।

मधुबनी ने पूछा डाक्टर आपकी फीस...

वैसे तो पाँच सौ रूपए होते हैं लेकिन तुमसे जो बन पाएं दे दो,डाक्टर साब बोले।।

जी अभी तो ये तीन सौ रूपए हैं और कल काम पर जाऊँगी तो बाकी दो दिन में दे दूँगी, मधुबनी बोली।।

 कोई बात नहीं, इतना बहुत हैं, मरीज की जान बच गई मेरे लिए इतना ही काफ़ी हैं,, डाक्टर साहब बोले।।

और तीन सौ रूपए लेकर डाक्टर साहब चले गए और मधुबनी ने चूल्हें पर बुधिया के लिए पानी उबाला और पकने के लिए मूँग की दाल चढ़ा दी और वहीं बुधिया के सिरहाने बैठ कर उसके होश में आने का इंतज़ार करने लगी,कुछ देर में दाल पक गई और मधुबनी ने चूल्हा बुझा दिया,तब तक बुधिया को भी होश आ गया और उसने पानी माँगा,मधुबनी ने फौरन चीनी नमक का घोल बनाकर बुधिया को दिया।।

और मूँग की दाल ठंडी करके बोली,लो ये दो गोलियाँ खा लो और ये थोड़ी सी दाल पी लो डाक्टर बाबू ने कहा है।।

लेकिन तूने मुझे बचाया क्यों, बुधिया ने पूछा।।

तुम्हारे सिवाय मेरा हैं ही कौन? अनाथ थीं, पान बेचती थीं ,तुम्हारा सौतेला छोटा भाई मुझे ब्याह कर ले आया और दो महीने ही बीते थे,ब्याह को कि उसका एक्सीडेंट हो गया और वो मुझे छोड़कर चला गया,जिस दिन मैं ब्याह कर आई थी,तुमनें उस दिन मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया था कि खुश रहों बेटा!

तब से मैं तुम्हें बड़ा भाई मानने लगी, लेकिन दुनिया वालों की नजरों में खोट हैं, वो हमारे रिश्ते को गलत नज़र से देखते हैं,गलती तुम्हारी नहीं है, गलती उन लोगों की है और तुम कहते हो कि मुझे छोड़ दो,दूसरा ब्याह कर लो,लेकिन मैं अगर तुम्हें छोड़कर चली गई तो तुम्हारा ख्याल कौन रखेंगा,मधुबनी बोली।।

तुम ये क्यों नहीं कहती कि लोगों की नहीं तुम्हारी नीयत में खोट है मधुबनी!लोग नहीं तुम ऐसा सोचती हो,तुम मुझे पाना चाहती हो,ये मैने कई बार तुम्हारी नज़रों में देखा है और अगर तुम गल़त नहीं हो तो इसी वक्त घर छोड़ कर चली जाओ,बुधिया बोला।।

लेकिन तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है, तुम ठीक हो जाओं फिर छोड़कर चली जाऊँगी, मधुबनी बोली।।

 लेकिन अगर तुम सही हो तो ये सिद्ध करो और जाओ यहाँ से ताकि लोंग हम दोनों के रिश्ते में खोँट ना देख पाएं,बुधिया बोला।।

 अब मधुबनी के बरदाश्त के बाहर था और वो निकल पड़ी, मूसलाधार बारिश में,मधुबनी के जाने के बाद बुधिया की अकल फिरी और उसने मन में सोचा कि ये क्या कर दिया उसने,उसके मन में कोई पाप नहीं है,कौई खोट नहीं है वो तो मुझे अपना भाई मानती है फिर क्यो मैने उसको ऐसी सजा दी,वो तो मेरी बहन जैसी हैं और मैं इस दुनिया वालों की बातों में आ गया और बुधिया उसी समय मधुबनी को ढू़ढ़ने निकल पड़ा।।

 बुधिया को जो भी मिलता वो उससे पूछता जाता कि किसी ने यहाँ से एक लड़की जाती हुई देखीं है लेकिन सबने मना कर दिया।।

और तभी बुधिया की नज़र पड़ती हैं, मन्दिर की सीढ़ियों में पड़ी,जहाँ मधुबनी बैठी हुई रो रही थीं, बुधिया ने उससे माफ़ी माँगी और बोला बहन घर चलो, अब मैं किसी की भी बातों में आकर तुम्हें कुछ नहीं कहूँगा और मधुबनी बड़े भइया कहकर बुधिया के गले लग गई।


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