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Ragini Ajay Pathak

Drama Inspirational Others

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Ragini Ajay Pathak

Drama Inspirational Others

लायक बेटा नालायक़ बहु!

लायक बेटा नालायक़ बहु!

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कमरे के अंदर बैठी रिद्धिमा को आज उसकी सास गीताजी आस पड़ोस की महिलाओं के सामने जी भर के बदुआएँ दे रही थी, अंदर बैठी रुआँसी रिद्धिमा सभी बातें सुन रही थी, लेकिन उसको इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई रिद्धिमा ने देखा तो उसकी जेठानी एकता खड़ी दिखी।

"भाभी आप यहाँ"-रिद्धिमा

एकता-"हाँ, मैं !क्यों नहीं आ सकती? अंदर कमरे में आते हुए एकता ने कहा, "चलो नहा धोकर नाश्ता करके तैयार हो जाओ वकील साहब भी आते होंगे कहकर एकता वहाँ से जाने लगी।"

तभी रिद्धिमा ने पीछे से एकता का हाथ पकड़ लिया और कहा "भाभी आप मुझसे नाराज नहीं, आप को कोई शिकायत नहीं मुझसे, मैंने जेठ जी(अमर) को जेल भेज दिया।"


मुस्कुराते हुए एकता ने रिद्धिमा के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा "नहीं रिद्धिमा! बिलकुल भी नहीं, तुमने जो किया, उसके लिए बहुत साहस चाहिये, हर औरत इतना साहस नहीं जुटा पाती। जो तुमने किया कम से कम वो मेरे बस की बात तो नहीं थी, वरना 10 सालों से मैं इन लोगों की गलियां और मार नहीं खाती।

शादी के समय मेरे मायके में सब मेरी खुशकिस्मती पर खुश हो रहे थे की इतने रईस खानदान में शादी हो रही है लेकिन शादी के एक सप्ताह बाद ही अमर ने मुझे पहला थप्पड़ मारा और मैं चुप हो गयी, और असलियत भी समझ गयी, उसके बाद तो ये सिलसिला बढ़ता ही गया कभी पति कभी देवरजी (अमन)तो कभी माँजी सब मुझे मारते।

एक बार हिम्मत कर के मायके में बताया तो सबने कहा "बेटा अब तेरी किस्मत में यही लिखा था तो हम क्या कर सकते है तेरा भाग्य ही खराब है। और ये बात मैंने भी मान ली और खुद के मन को भी मना लिया।"

लेकिन, अब मैंने सोच लिया है, कि अब ना डरूँगी ना अपनी बेटी को डरपोक बनाऊंगी" चलो उठो।


दरअसल रिद्धिमा की शादी अमन से हुए अभी सिर्फ छ:महीने ही हुए थे शादी के समय बताया गया कि लड़का कोई नशा या बुरी आदत का शिकार नहीं, अमन बात भी बहुत अच्छे से करता था तो देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि अमन में कोई कमी होगी।

ससुराल भी खानदानी रईस था।

अमन ने रिद्धिमा से सबके सामने कहा "रिद्धिमा आज तुम नॉनवेज बनाओगी।

रिद्धिमा-"लेकिन अमन मुझे नानवेज नहीं आता बनाने, मैं ने नानवेज ना कभी खाया है ना कभी बनाया है, ये तो तुम जानते ही हो"

अमन-"क्या जो तुमने पहले किया वो शादी के बाद भी कर रही हो नहीं ना, तो जाकर चुपचाप नानवेज बनाओ और अगर नहीं बनाना तो अपने बाप के घर वापिस चले जाओ।"

रिद्धिमा-"अमन तमीज से बात करो ,खबरदार मेरे मायके के लिए कुछ भी कहा तो"

अमन-"तो क्या कहते हुए अमन रिद्धिमा को गाली देने लगा, और एक थप्पड़ रिद्धिमा के गाल पर दे मारा।"

पलटकर रिद्धिमा ने भी दो थप्पड़ मारते हुए कहा "गाली देना और मारना मुझे भी आता है।"

ये देखकर गीता जी का गुस्सा सातवें आसमान पर हो गया उन्होंने कहा तेरी इतनी हिम्मत की तू मेरे बेटे को मारे रुक फिर सब मिलकर रिद्धिमा को मारने लगे। किसी तरीक़े से खुद को बचाकर रिद्धिमा अपने कमरे में भागी और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। अंदर से उसने तुरंत पुलिस को फोन कर सारी जानकारी दी।

पुलिस आयी, तो उसने दरवाजा खोला और सारी बात बतायी, अमर और अमन को पुलिस साथ लेकर गयी लेकिन गीता जी की उम्र को देखकर और औरत होने के नाते उनको सिर्फ चेतावनी देकर घर पर ही छोड़ दिया। अपने साथ नहीं ले गयी।

तैयार होकर रिद्धिमा नाश्ता करने आई तो गीता जी की नजर रिद्धिमा पर गयी और वो शुरू हो गयी।


कैसी नालायक़ बहु मेरे घर में आ गयी, हमारी तो किस्मत ही फुट गयी, जिसको जरा भी शर्म नहीं ; अपने पति और जेठ को थाने भेजकर खुद खाना खा रही है,ना जाने कैसी परवरिश की है इसकी माँ ने इसकी जो थोड़ा भी लिहाज ना रहा समाज का, मैंने भी मार खाया है गाली खायी हैं अपने पति से, एकता भी मार खाती थी। मैं तो नहीं गयी पुलिस स्टेशन। जा निकल जा अभी के अभी मेरे घर से। और ये श्रृंगार किसके लिए जब पति ही नही घर मे देखने के लिए नालायक़ कही की।


रिद्धिमा-"हो गया कि अभी कुछ और बाकी है, नहीं तो अब मेरी बात बहुत ध्यान से सुनिये। ये घर सिर्फ आपका ही नहीं मेरा भी है, इस पर जितना आपका अधिकार है उतना ही मेरा भी है। कानूनी और सामाजिक दोनों तरीकों से। क्योंकि मैं इस घर की बहू और आपके बेटे की पत्नी हूँ, अभी मेरा तलाक नहीं हुआ, लेकिन अगर हुआ भी तो भी इसमें मेरा हिस्सा होगा।

जरूरी नहीं की जो आपके साथ हुआ वो मेरे साथ भी हो, दूसरी बात मेरी मां ने मेरी परवरिश बहुत ही अच्छे से की है उन्होंने ने मुझे दूसरे को मान सम्मान देना और खुद का सम्मान बचाना दोनों सिखाया है।

अब बात मेरे श्रृंगार की तो एक औरत श्रृंगार सिर्फ अपने पति को या किसी पुरुष को दिखाने के लिए नहीं खुद के लिए भी करती है।


अब आप बताइए कि कैसी परवरिश आपने अपने बेटों की है जो औरतों को सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु और अपने पैरों की जूती समझते है, आपने झूठ बोलकर अपने नालायक शराबी बेटों की शादी करके बहु को ही नालायक़ साबित करने लगी। आपके बेटों का चित्र और चरित्र दोनों से खराब है लेकिन आपके लिए वो लायक वाह क्या पसन्द है आपकी।

एक चीज आपको बता दूँ मैं "शठे शाठ्यं समाचरेत' यानी दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार ही करना चाहिए" के नियम का पालन करती हूँ।


अच्छा, भाभी चलती हूँ कहकर रिद्धिमा पुलिस स्टेशन पहुंची तो वहाँ अमन और अमर के सुर बदले हुए थे उन्होंने रिद्धिमा को देखते उसके आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे कि हमें माफ करो दो एक आखिरी मौका बस। सबके समझाने पर रिद्धिमा ने भी माफ किया और उन के साथ वापिस घर आ गयी। घर आकर देखा तो उसके पापा आये हुए थे।

रिद्धिमा के पापा उसको देखते तुरन्त उठकर आये और पूछा "क्या हुआ बेटा"

रिद्धिमा के कुछ बोलने से पहले ही अमर और अमन एक साथ बोल पड़े कुछ तो नहीं बाबूजी, आप यहाँ कब आये, आइये बैठिए ।

समधनजी आप तो कह रही थी कि

तभी अमर और अमन ने घूरती निगाहों से अपनी माँ की तरफ देखा तो वो समझ गयी की कोई बात है, तो बीच में बोल पड़ी "अरे मैंने तो मजाक किया था समधी जी ताकि आपको घर बुला सकूँ।"

रिद्धिमा के पापा माजरा समझ चुके थे लेकिन वो अनजान बने रहे और रिद्धिमा से कहा "बेटा, शाबाश मुझे तुझ पर गर्व है, लेकिन एक बात और बेटा जब भी तुझे मेरी जरूरत हो, तो बस तू एक फोन अपने पापा को कर देना, मैं तुरंत तेरे पास आ जाऊंगा, तुझे विदा करके मैंने सामाजिक रीत निभाई है तुझे बेचा या दान नहीं दिया है।

और गीता जी से कहा "चलता हूँ समधनजी उम्मीद करता हूं ऐसे मजाक की आपको दुबारा आवश्यकता ना पड़े।

कहकर वो चले गए।


इधर गीता जी ने उनके जाते ही गुस्से में गरजती आवाज में अपने बेटों से कहा "क्या ये तुम लोग भीगी बिल्ली बने हुए हो, झूठ क्यों बोला रिद्धिमा के पापा से, बता देते इस नालायक़ की सच्चाई"

तब अमर अपनी माँ का हाथ पकड़कर कमरे में ले आया और कहा "तो क्या करें जेल में पड़े रहे हम, और हमारे साथ आप भी। वैसे भी पूरी रात थाने में बिता कर दिमाग खराब है, हमने जब पुलिस और वकील से बात की तो सबने यही कहा कि रिद्धिमा ने केस किया तो उसके जितने के चांसेज ज्यादा है। फिर वो आराम से इस घर में रहेगी और हम तीनों जेल में। हर्जाना और हिस्सा दोनों देना पड़ेगा समझ आया।

कमरे के बाहर से एकता और रिद्धिमा ने सब कुछ सुना और एक साथ मुस्कुरा पड़े।


प्रिय पाठक गण उम्मीद  करती हूँ कि मेरी ये रचना आपको पसंद आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि अगर हम महिलाएं एक दूसरे का साथ दे तो कभी कोई पुरुष हमारे साथ गलत व्यवहार नहीं कर पायेगा। ज्यादातर घरेलू हिंसा का कारण हम औरतों की चुप्पी हो होती है, जब हम चुपचाप बर्दाश्त करते है तो पुरुषों को बढ़ावा मिल जाता है इसमें काफी हद तक महिलाएं भी शामिल रहती है जो कि गलत है। समाज का नजरिया औरतों की तरफ तभी बदलेगी जब उसकी शुरुआत घर से होगी। घरेलू हिंसा के मामले में चुप ना रहे खुलकर बोले बिना समाज की फिक्र किए।


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