लाल टोपी वाला पक्षी
लाल टोपी वाला पक्षी
मेरे घर के पास या यूं कहूं मेरे घर से लगा हुआ था एक नीम का पेड़। जिसमें कठफोड़वा नाम का एक पक्षी रोज आकर अपनी चोंच से रोज उस पेड़ की एक जगह पर कुरेदता था। खटखट की आवाज देखने को मजबूर करती कि घर कितना बन चुका है। शायद उसे उस घर में अपना परिवार लाना था। लगातार 12 से 15 दिन उसने उस जगह को खोदा। और फिर उसमें रहने लगा कभी गर्दन बाहर निकाले तो कभी पास की टहनी में बैठकर घर की रखवाली करता। फिर एक दिन उसमें छोटे पक्षी बच्चों की आवाज आई जिसे सुनकर देखने का मन किया की वह बच्चे कैसे हैं। लेकिन शायद तब वह बहुत छोटे थे। और नजर नहीं आ रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता रोज हम देखते बच्चे कब बाहर आएंगे। और फिर एक दिन तीन से चार बच्चे एक साथ बाहर झांक रहे अपनी मां को दाना चुगने के लिए कह रहे थे। और हमें लगता था कि वो कठफोड़वा आएगा और खाना लायेगा लेकिन ये क्या था जो खाना लाकर खिला रही थी वो कठफोड़वा नहीं तोता पक्षी था। और वो बच्चे भी बाद में बड़े होकर तोता बने और उड़ कर चले गए।
लेकिन वो कठफोड़वा वहां रहने लगा और उसने बाद में एक मैना नाम के पक्षी को भी शरण दी। जो शायद मादा थी और अपने बच्चों को जन्म देने के लिए कोई सुरक्षित जगह ढूंढ रही थी। कठफोड़वा उड़ चला और मैना वहां रहने लगी। गर्मियों के दिन थे मैना ने बच्चों को जन्म दिया और दाना चुगाने के लिए घर से दूर जाती। लेकिन एक बड़ा मोटा सांप उसके बच्चों पर कितने दिनों से घात लगाए बैठा था। और एक दिन वह सांप उस पेड़ पर लिपटकर चढ़ गया। जब मैना ने जोर-जोर से चिल्ला कर शोर मचाया। तो हम सब घर से बाहर आए और देखा सांप अपना सर मैना के घर में डाले हैं। और हमने सांप को पत्थर लाठियों से भगाना चाहा तो वह अपने मुंह में मैना का बच्चा पकड़ लाया। और बहुत लंबी चाल से गायब हो गया। हम सब बहुत उदास हुए और हमने मैना के बच्चों को सुरक्षित निकालकर घर के पास ही एक घास का घोंसला बनाकर रख दिया रोज वहां पर दाना डाल कर पानी रखा और मैना दूर बैठी देखती रहती। फिर एक-एक करके अपने बच्चों को दूर कहीं ले गई। और कठफोड़वा फिर आकर रहने लगा।
