लाडो
लाडो
मेरी एक ननद है। उसको शादी के पांच साल बाद तक बच्चे नहीं हुए। वो मेरे हसबैंड के ख़ाला की बेटी है नूरी। हमारी शादी उनके बाद हुई, हमारे यहाँ अल्लाह ने एक साल में ही मेरी गोद में बहुत ही प्यारी नाज़ुक सी परी सी बेटी से नवाज़ दी, घर में ख़ूब ख़ुशियाँ मनाई गई।
ख़ुशी के प्रोग्राम में वो ख़ाला की बेटी नूरी, भी शरिक़ हुई, मुझसे सबके सामने कहने लगी, भाभी मुझे अपना झूठा खिला दो या मेरे लिए भी दुआ कर दो मुझे काणी (एक आंख वाली) छोरी ही दे दे अल्लाह।
ये बात आई-गई हो गई कुछ सालों बाद उनके यहाँ भी बेटा हुआ, अब सात-आठ साल बाद नूरी को चार बेटे हो गए। हमारे यहाँ तो जैसे ही दो बच्चों हुए उसके बाद ही आपरेशन करवा लिया।
नूरी को तो बहुत घमंड आ गया, हम दंग के भई ये वो ही नूरी है जो कभी कानी छोरी ही मांगती थी। अभी कुछ दिनों पहले नूरी के छोटे भाई की शादी हमारी ननद से हुई, ख़ाला ने हमसे कहा, पहली डिलीवरी तुम रेहाना की अपने घर ही करवाना।
हम दोनों ने कहा, ख़ाला जान ये ज़िम्मेदारी का काम है, अम्मी होती तो कोई परेशानी नहीं होती, मगर हमें डर है कुछ गड़बड़ ना हो जाएं। हम अभी इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे निभा पाएंगे, आपके सामने तो हम बच्चे ही हैं।
मगर ख़ाला जान नहीं मानी तो हम ले आए अपनी ननद को, उसको ये ना फील हो माँ होती तो मना नहीं करती। डिलीवरी के दिन ख़ाला की बेटी नूरी को बुला लिया हमने हम हास्पिटल गए, रेहाना ने बहुत प्यारी सी नन्हीं कली गुलाबी इतनी सुंदर परी को जन्म दिया। नर्स लेकर आई वो हमसे पूछने लगी, सुंदर सी परी कौन लेगा?
मैंने कहा भई नूरी लेगी उनके घर की परी है, भाई की बेटी है...!
मगर ये क्या नूरी तो इतने घमंड से ये कहते हुए पीछे हट गई... अरे मैने तो चार-चार बेटों को जन्म दिया है, जिसको बेटी हुई हो वही ले।
इतनी हिकारत बेटी के लिए मेरे आंखों में आंसू आ गए। उस मासूम सी नन्हीं कली को जो अल्लाह की नियामत है। मैंने फौरन आगे बढ़ कर बेटी को गोद में लिया और चुम लिया और कहा, हां हमने तो बेटी को पहले पहल गोदी में लिया है, लाओ सिस्टर मुझे दो।
मैंने सिस्टर को इनाम के तौर कुछ रुपये नन्हीं कली पर से क्षछावर करके दिया। सिस्टर से कहा, किसी ग़रीब को दे देना। मैंने कहा अभी मिठाई मंगा कर आप लोगों को खिलाती हूँ।
नूरी का घमंड देख कर ये लगा ये वही नूरी है जो कभी काणी छोरी ही दे दे अल्लाह पाक...!