क्या यही पहली नज़र का प्यार है
क्या यही पहली नज़र का प्यार है
कॉलेज का वो पहला दिन जब अचानक से तुम मुझ से टकराई थी, छूट गई थी हाथ से किताबें तुम्हारी और तुम मुस्करा कर के शरमाई थी।
जैसे ही लड़खड़ा के तुम मेरी बांहों में आ गई, मैं भी तो कुछ घबराया था। थाम के तुम को बाँहों में अपनी, इक पल के लिए हड़बड़ाया था। ना जाने कैसी शरारत की तुम्हारे नयनों ने, डूब गया था उनमें मैं।
बिन मय पीये ही मदहोशी छाई थी। निढाल सी थी तुम बाँहों में मेरी। लब तुम्हारे थे काँप रहे, जैसे दो प्याले मय के लबालब भरे छलक रहे। साँसों से साँसे टकराती हुई हमें इक नया मँज़र थी दिखला रही, ना थी तुम होश में, ना था मैं होश में, क्या यही होता है पहली नज़र का प्यार।