क्या तुम्हें याद है?
क्या तुम्हें याद है?


क्या तुम्हें याद है?
हम तुम, दो प्याला चाय और हमारा बीच चाँदनी से भरा आसमान।
तुम्हें याद है मुझे हमेशा चाय गर्म पीनी होती थी और तुम उसे शर्बत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
हमारी वो आखिरी मुलाकात याद है....
जब हम दोनों चाँद की चाँदनी से भरे हुए आसमान के नीचे बैठे हुए थे। हमारे दरमियाँ कोई गुफ़्तगू नहीं हो रही थी। तुम चाँद की चाँदनी में डूब गए थे और मैं तुममे।
अक़्सर मैं ये सोचती थी ना जाने उस आसमान में ऐसा क्या है जो तुम उसमें इस क़दर डूब जाते थे। पर उस दिन से पहले कभी पूछा नहीं था मैंने।
मैं तो बस तुम्हें देख ही रही थी एकाएक तुम्हारी आवाज मेरे कानो में गूंजी चाय नहीं पीनी है......ठण्डी हो रही है।
मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैं बोल उठी दो घंटे से ठण्डी होकर शर्बत हो गई और तुम कहते हो चाय नहीं पीनी है, ये चाय नहीं शर्बत है शर्बत समझे। मुझे समझ नहीं आता है आखिर ऐसा उस आसमान में क्या है जो तुम वहाँ इतने डूब जाते हो।
फिर तुम मुस्करा कर बोले एक दिन तुम भी उस आसमान में डूब कर यूँही देखोगी। और चाय पीने लगे।
तब तो कुछ समझ नहीं आया था लेकिन आज अर्सा गुजर गया मैं उस आसमान में यूँही डूब जाती हूँ। लेकिन अब मेरे और आसमान के बीच चाय नहीं होती है।वो दिन आखिरी था जब मैंने शर्बत नुमा चाय पी थी।एकबार मिल कर वो चाय पीना चाहती हूँ।मैं हमेशा उस आसमान में तुम्हारा अक्स ढूंढती हूँ, तुम क्या ढूँढते पता नहीं।
क्या तुम्हें याद है?उस चाय का स्वाद! तुम्हारे इंतजार में और आसमान नहीं ताकना है बस मिलके एक बार चाय ही तो पीना है।